पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसान 'घेरा डालो डेरा डालो' आंदोलन चला रहे हैं. सरकार किसानों की बात सुन भी रही है और यही कारण है कि वो किसानों द्वारा बताए गए कुछ आपत्तियों पर विचार करने को तैयार भी हो गई है. लेकिन किसान जो आंदोलन कर रहे हैं उनके सवाल क्या हैं? ब्लॉगर अमित सिंघल ने किसानों के 17 सवाल और उनके जवाब तैयार किए है-
1. अगर सरकार की MSP को लेकर नीयत साफ है तो वो मंडियों के बाहर होने वाली ख़रीद पर किसानों को MSP की गारंटी दिलवाने से क्यों इंकार कर रही है?
उत्तर: अगर कोई किसान मंडी के बाहर बेच रहा है, तो यह उसका अधिकार है. आप अपनी उपज, तरकारी वाला अपनी तरकारी या हलवाई अपनी मिठाई किस दाम पर बेचता है, यह विक्रेता एवं क्रेता के मध्य का सौदा है. केवल 6% उपज MSP पर खरीदी जाती है. अभी भी 94% कृषि उत्पाद निजी क्षेत्रों को सीधे बेचा जा रहा है.
2. MSP से कम ख़रीद पर प्रतिबंध लगाकर, किसान को कम रेट देने वाली प्राइवेट एजेंसी पर क़ानूनी कार्रवाई की मांग को सरकार खारिज क्यों कर रही है?
उत्तर: केवल 6% उपज MSP पर खरीदी जाती है. अभी भी 94% कृषि उत्पाद निजी क्षेत्रों को सीधे बेचा जा रहा है. आप क्रेता एवं विक्रेता के मध्य स्वेच्छा वाले सौदे को नकार नहीं सकते.
3. कोरोना काल के बीच इन तीन क़ानूनों को लागू करने की मांग कहां से आई? ये मांग किसने की? किसानों ने या औद्योगिक घरानों ने?
उत्तर: यह BJP एवं कांग्रेस के मैनिफेस्टो में था. क्या भ्रष्ट व्यवस्था को सुधारने के लिए मांग की आवश्यकता होती है?
4. देश-प्रदेश का किसान मांग कर रहा था कि सरकार अपने वादे के मुताबिक स्वामीनाथन आयोग के सी2 फार्मूले के तहत MSP दे, लेकिन सरकार ठीक उसके उल्ट बिना MSP प्रावधान के क़ानून लाई है. आख़िर इसके लिए किसने मांग की थी?
उत्तर: स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले के अनुसार लागत से डेढ़ गुना MSP मिल रही है. अगर MSP बढ़वानी है तो उसके लिए आंदोलन चलाइए, ना कि रिफार्म पे चोट कीजिये.
5. प्राइवेट एजेंसियों को अब किसने रोका है किसान को फसल के ऊंचे रेट देने से? फिलहाल प्राइवेट एजेंसीज मंडियों में MSP से नीचे पिट रही धान, कपास, मक्का, बाजरा और दूसरी फसलों को MSP या MSP से ज़्यादा रेट क्यों नहीं दे रहीं?
उत्तर: अगर प्राइवेट एजेंसियां कम रेट दे रही है तो किसान उनके पास नहीं जाएंगे. आखिरकार मंडी में तो MSP बिना आढ़तियों के शोषण एवं भ्रष्टाचार के मिल रही है. केवल 6% उपज MSP पर खरीदी जाती है. अभी भी 94% कृषि उत्पाद निजी क्षेत्रों को सीधे बेचा जा रहा है.
6. उस स्टेट का नाम बताइए जहां पर हरियाणा-पंजाब का किसान अपनी धान, गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, सरसों, बाजरा बेचने जाएगा, जहां उसे हरियाणा-पंजाब से भी ज्यादा रेट मिल जाएगा?
उत्तर: दूसरे राज्य की सरकारी मंडी को छोड़कर पूरे देश में कही भी निजी क्षेत्र को उपज बेच सकते है.
7. जमाखोरी पर प्रतिबंध हटाने का फ़ायदा किसको होगा- किसान को, उपभोक्ता को या जमाखोर को?
उत्तर: जमाखोरी अभी भी होती है. नए कानूनों से भण्डारण व्यवस्था के द्वारा किसानों एवं उपभोक्ताओं को लाभ होगा.
8. सरकार नए क़ानूनों के ज़रिए बिचौलियों को हटाने का दावा कर रही है, लेकिन किसान की फसल ख़रीद करने या उससे कॉन्ट्रेक्ट करने वाली प्राइवेट एजेंसी, अडानी या अंबानी को सरकार किस श्रेणी में रखती है- उत्पादक, उपभोक्ता या बिचौलिया?
उत्तर: लाखों लोग अडानी-अम्बानी के विरोध में दिखेंगे, लेकिन अमेज़न से आर्डर करने में नहीं हिचकिचायेंगे. वे ITC, टाटा, डाबर, यूनिलीवर, पेप्सी, कोका कोला कंपनियों के खाद्य-पदार्थ खा लेंगे, अमेरिकन कंपनी मोनसैंटो से बीज खरीद लेंगे, लेकिन उन्हें कंपनियों को अन्न बेचने की सुविधा की आलोचना करेंगे. प्राइवेट एजेंसी, जैसा कि नाम है, प्राइवेट एजेंसी है. ठीक वैसे ही, जैसे आप को दूध, दही, ब्रेड, बटर, आटा, मसाले प्राइवेट एजेंसी से मिल जाते है.
9. जो व्यवस्था अब पूरे देश में लागू हो रही है, लगभग ऐसी व्यवस्था तो बिहार में 2006 से लागू है. तो बिहार के किसान इतना क्यों पिछड़ गए?
उत्तर: क्या 2006 के पहले बिहार के किसान पंजाब के किसान से समृद्ध थे? इन कृषि सुधारों को काम करने के लिए समय दीजिये. किसानों द्वारा आत्महत्या करने के मामले में बिहार के किसान पंजाब के किसानों की तुलना में बहुत कम है. आखिरकार ऐसा क्यों है?
10. बिहार या दूसरे राज्यों से हरियाणा में BJP-JJP सरकार के दौरान धान जैसा घोटाला करने के लिए सस्ते चावल मंगवाए जाते हैं. तो सरकार या कोई प्राइवेट एजेंसी हमारे किसानों को दूसरे राज्यों के मुकाबले मंहगा रेट कैसे देगी?
उत्तर: ऐसे घोटालों को रोकने के लिए ही नए कानून लाये गए है. आप प्राइवेट एजेंसी को बाजार एवं डिमांड-सप्लाई के अनुसार कीमत निर्धारित करने दीजिये. ठीक वैसे ही जैसे दूध-मक्खन, आलू-प्याज की कीमते निर्धारित होती है.
11. टैक्स के रूप में अगर मंडी की इनकम बंद हो जाएगी तो मंडियां कितने दिन तक चल पाएंगी?
उत्तर: ना तो मंडी, ना ही मंडी टैक्स समाप्त हुआ है. प्रश्न यह है कि सरकार को मंडियों के लिए काम करना है या किसानों एवं उपभोक्ताओं के लिए? वैसे देखते-देखते टाइपराइटर की दूकान बंद हो गयी, फोटो डेवलप करने वाले की दुकान बंद हो गयी, भारत में मैक्डोनाल्ड फेल हो गया, अमेरिकी कॉर्न फलैक्स का भट्टा बैठ गया. क्या सरकार को इन सबको चालू रखना चाहिए था?
12. क्या रेलवे, टेलीकॉम, बैंक, एयरलाइन, रोडवेज, बिजली महकमे की तरह घाटे में बोलकर मंडियों को भी निजी हाथों में नहीं सौंपा जाएगा?
उत्तर: कृषि सुधारों में बात घाटे की नहीं, शोषण की है. आखिरकार इन मंडियों के बावजूद किसान गरीब क्यों है? वैसे रेलवे, टेलीकॉम, बैंक, एयरलाइन, रोडवेज, बिजली महकमे, सभी में सुधर हुए है. दिल्ली में बिजली की व्यवस्था निजी क्षेत्र में है. टेलीकॉम, बैंक, एयरलाइन, रोडवेज में निजी क्षेत्र की बहुलता है. एयर इंडिया अरबों के घाटे में चल रही है जिसका पैसा उन भारतीयों की जेब से दिया जाता है जो जीवन में कभी भी हवाई यात्रा नहीं करेंगे.
13. अगर ओपन मार्केट किसानों के लिए फायदेमंद है तो फिर "मेरी फसल मेरा ब्योरा" के ज़रिए क्लोज मार्केट करके दूसरे राज्यों की फसलों के लिए प्रदेश को पूरी तरह बंद करने का ड्रामा क्यों किया?
उत्तर: दूसरे राज्यों की फसलों के लिए केवल प्रदेश की सरकारी मंडिया बंद है. निजी क्षेत्र नहीं.
14. अगर हरियाणा सरकार ने प्रदेश में 3 नए कानून लागू कर दिए हैं तो फिर मुख्यमंत्री खट्टर किस आधार पर कह रहे हैं कि वह दूसरे राज्यों से हरियाणा में मक्का और बाजरा नहीं आने देंगे?
उत्तर: दूसरे राज्यों की फसलों के लिए केवल हरियाणा सरकारी मंडिया बंद है. निजी क्षेत्र नहीं. आप हरियाणा के निजी क्षेत्र में बेचिये जो अभी भी हो रहा है.
15. अगर सरकार सरकारी ख़रीद को बनाए रखने का दावा कर रही है तो उसने इस साल सरकारी एजेंसी FCI की ख़रीद का बजट क्यों कम दिया? वो ये आश्वासन क्यों नहीं दे रही कि भविष्य में ये बजट और कम नहीं किया जाएगा?
उत्तर: FCI की ख़रीद का बजट इसलिए कम किया गया है क्योंकि FCI के गोदाम पूर्व में खरीदे गए अनाजों से भरे हुए है. एक तरह से FCI धनी किसानों/मंडी से उस उपज को जनता के टैक्स से खरीद रही है जिसकी सरकार को आवश्यकता ही नहीं है. वही अनाज को सड़ाकर कौड़ियों के भाव शराब की फैक्ट्री को बेच दिया जाता है.
16. जिस तरह से सरकार सरकारी ख़रीद से हाथ खींच रही है, क्या इससे भविष्य में ग़रीबों के लिए जारी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में भी कटौती होगी?
उत्तर: नहीं, सरकार सरकारी ख़रीद से हाथ नहीं खींच रही है. पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में कटौती नहीं होगी. केवल 6% उपज MSP पर खरीदी जाती है जिससे हमारे गोदाम ठसाठस भरे हुए है.
17. क्या राशन डिपो के माध्यम से जारी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम, ख़रीद प्रक्रिया के निजीकरण के बाद अडानी-अंबानी के स्टोर के माध्यम से प्राइवेट डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम बनने जा रहा है?
उत्तर: प्राइवेट डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम आप भी बना सकते है. अडानी-अम्बानी को कोसने से काम नहीं चलेगा. अगर वे इतने बुरे हैं तो अमेज़न से खरीदना बंद कीजिये. ITC, टाटा, डाबर, यूनिलीवर, पेप्सी, कोका कोला, हल्दीराम, बीकानेरवाला, MDH कंपनियों के खाद्य-पदार्थ खरीदना बंद कीजिये. ब्रिटानिया के बिस्कुट, ब्रिटिश कंपनी की ताजमहल एवं ब्रुक बांड चाय की पट्टी खरीदना बंद कीजिये.
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