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Adhikmaas Purnima 2020: जानिए अधिकमास पूर्णिमा की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Babita Pant

नई द‍िल्‍ली 29 Sep, 2020 01:22 pm

Adhikmaas Purnima 2020: अधिकमास की पूर्णिमा तीन साल में एक बार आती है. विष्‍णु भक्‍तों को इस पूर्णिमा (Purnima) का विशेष रूप से इंतजार रहता है. मान्‍यता है कि सांसारिक इच्‍छाओं की पूर्ति के लिए इस पूर्णिमा से बढ़कर कोई दूसरा व्रत नहीं है. हिन्‍दू पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार जो भक्‍त श्रद्धापूर्वक और पूरे विधि-विधिान से अधिकमास पूर्णिमा (Adhikmaas Purnima) का व्रत करते हैं उनके घर सुख-संपत्ति, खुशहाली और वैभव का आगमन होता है. यही नहीं तन-मन और समर्पण से अधिकमास पूर्णिमा करने वाले भक्‍त के घर में मां लक्ष्‍मी स्‍वयं विराजमान होती हैं.

अधिकमास पूर्णिमा कब है?
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास में मनाई जाने वाली पूर्णिमा को अधिकमास पूर्णिमा कहते हैं. इस प्रकार अधिकमास पूर्णिमा के लिए कोई तिथि तय नहीं हैं, लेकिन जब अधिकमास के महीने में पूर्णिमा पड़ती है तो उसे अधिकमास की पूर्णिमा कहा जाता है. अधिकमास तीन साल में एक बार आता है और इसी तरह अधिकमास की पूर्णिमा भी तीन साल में एक बार मनाई जाती है. इस बार अधिकमास की पूर्णिमा 1 अक्‍टूबर को है.

अधिकमास पूर्णिमा की तिथि अैर शुभ मुहूर्त
अधिकमास पूर्णिमा की तिथि:
1 अक्‍टूबर 2020
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 1 अक्‍टूबर 2020 को सुबह 12 बजकर 25 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: 2 अक्‍टूबर 2020 को सुबह 2 बजकर 34 मिनट तक
पूजा का मुहूर्त: 1 अक्‍टूबर 2020 को सुबह 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 40 मिनट तक

अधिकमास पूर्णिमा का महत्‍व
हिन्‍दू धर्म में अधिकमास पूर्णिमा का विशेष महत्‍व है. पूर्णिमा के दिन लक्ष्‍मी-नारायण की पूजा के साथ ही श्री हरि विष्‍णु के सत्‍यनारायण रूप की पूजा की जाती है. लेकिन अधिकमास का महीना विष्‍णु जी को समर्पित है, ऐसे में अधिकमास पूर्णिमा का महत्‍व कई गुना बढ़ जाता है. मान्‍यता है कि मलमास की पूर्णिमा का व्रत बेहद मंगलकारी और पुण्‍यकारी होता है. इस पूर्णिमा के दिन लोग पवित्र नदियों में स्‍नान करने के साथ ही यथाशक्ति दान-दक्षिणा भी देते हैं. कहते हैं कि मलमास की पूर्णिमा में किए गए दान का कई गुना फल मिलता है. यही नहीं अगर कोई विष्‍णु भक्‍त किसी कारणवश मलमास पूर्णिमा का व्रत न रख पाए तो वह श्री सत्‍यनारायण की कथा सुनकर भी पुण्‍य अर्जित कर सकता है.

अधिकमास पूर्णिमा की व्रत विधि
- पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे उठकर घर की साफ-सफाई करें.
- अब स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें और व्रत का संकल्‍प लें.
- अब घर के मंदिर में पूर्व दिशा की ओर मुख कर आसन पर बैठ जाएं.
- इसके बाद एक चौकी या लकड़ी का पटरा लें और उसे अच्‍छी तरह धोकर पोंछ लें.
- अब इस चौकी के आधे हिस्‍से में लाल और आधे हिस्‍से में पीला कपड़ा बिछाएं.
- अब लाल कपड़े के ऊपर मां लक्ष्‍मी और पीले कपड़े के ऊपर श्री हरि विष्‍णु की प्रतिमा रखें.
- लक्ष्‍मी-नारयाण की प्रतिमा को पहले स्‍वच्‍छ जल से और फिर पंचामृत से स्‍नान कराएं.
- अंत में गंगाजल से स्‍नान कराने के बाद प्रतिमाओं को अच्‍छी तरह पोंछकर रख दें.
- अब मां लक्ष्‍मी और भगवान विष्‍णु को वस्‍त्र और आभूषण पहनाएं.
- अब श्री गणेश को कुमकुम, रोली और अक्षत से तिलक लगाएं और उन्‍हें फूलों की माला अर्पित करें.
- इसके बाद मां लक्ष्‍मी और भगवान विष्‍णु को तिलक लगाकर माला पहनाएं.
- मां लक्ष्‍मी को अगर कमल का पुष्‍प और सुहाग की सामग्री अर्पित कर पाएं तो उत्तम रहेगा.
- इसके बाद गणेश, लक्ष्‍मी और विष्‍णु जी को फूल, ऋतु फल और नैवेद्य अर्पित करें.
- अब धूपी-दीप से भगवान की आरती उतारें.
- आरती के बाद भगवान को मखाने की खीर और घी में बने आटे के कसार का भोग लगाएं.
- अब श्री सत्‍यनारायण की कथा पढ़ें या सुनें.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय प्रतिदिन की तरह भगवान की पूजा करें और चंद्रमा को अर्घ्‍य दें.
- परिवार के सभी सदस्‍यों में भोग वितरित कर आप स्‍वयं भी ग्रहण करें और व्रत का पारण करें.

श्री सत्‍यनारयण की आरती
जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी,
जन पातक हरणा ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

रतन जड़ित सिंहासन,
अदभुत छवि राजे ।
नारद करत नीराजन,
घंटा वन बाजे ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

प्रकट भए कलिकारण,
द्विज को दरस दियो ।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर,
कंचन महल कियो ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

दुर्बल भील कठोरो,
जिन पर कृपा करी ।
चंद्रचूड़ एक राजा,
तिनकी विपत्ति हरि ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

वैश्य मनोरथ पायो,
श्रद्धा तज दीन्ही ।
सो फल भाग्यो प्रभुजी,
फिर स्तुति किन्ही ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

भव भक्ति के कारण,
छिन-छिन रूप धरयो ।
श्रद्धा धारण किन्ही,
तिनको काज सरो ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

ग्वाल-बाल संग राजा,
बन में भक्ति करी ।
मनवांछित फल दीन्हो,
दीन दयालु हरि ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

चढत प्रसाद सवायो,
कदली फल मेवा ।
धूप-दीप-तुलसी से,
राजी सत्यदेवा ॥

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।

सत्यनारायणजी की आरती,
जो कोई नर गावे ।
ऋद्धि-सिद्ध सुख-संपत्ति,
सहज रूप पावे ॥

जय लक्ष्मी रमणा,
स्वामी जय लक्ष्मी रमणा ।
सत्यनारायण स्वामी,
जन पातक हरणा ॥

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