संसद में विपक्ष के विरोध को दरकिनार कर भले ही मोदी सरकार ने कृषि बिल पास करा लिया हो लेकिन अब उसे इसका खामियाज़ा भी भुगतना पड़ रहा है. इस नये कृषि कानून के विरोध में भारतीय जनता पार्टी के सबसे पुराने सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल ने 40 साल पुराना रिश्ता खत्म कर खुद को NDA से अलग कर लिया है. अकाली दल की कोर कमिटी की बैठक में ये बड़ा फैसला लिया गया है.
Shiromani Akali Dal core committee decides unanimously to pull out of the BJP-led #NDA because of the Centre’s stubborn refusal to give statutory legislative guarantees to protect assured marketing of crops on #MSP and its continued insensitivity to Punjabi and #Sikh issues. pic.twitter.com/WZGy7EmfFj
— Sukhbir Singh Badal (@officeofssbadal) September 26, 2020
इस बात के संकेत उसी वक्त मिल गए थे जब अकाली दल कोटे से मंत्री हरसिमरत कौर ने कृषि बिल के विरोध में मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि तब अकाली दल का एनडीए को समर्थन जारी था. हरसिमरत कौर बादल केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग मंत्री थीं. केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग मंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद हरसिमरत कौर बादल ने कहा था कि किसान विरोधी अध्यादेशों और कानून के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है. किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने का गर्व है.
I have resigned from Union Cabinet in protest against anti-farmer ordinances and legislation. Proud to stand with farmers as their daughter & sister.
— Harsimrat Kaur Badal (@HarsimratBadal_) September 17, 2020
अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने पहले ही कह दिया था कि हम पंजाब की जनता के खिलाफ गठबंधन नहीं चला सकते. अब अकाली दल ने कृषि बिल के विरोध में एनडीए से अलग होने का फैसला लिया है. इसके साथ ही अकाली दल ने एनडीए से समर्थन वापस ले लिया है.
केंद्र द्वारा लाए गए कृषि संबंधी अध्यादेशों को संसद से मंज़ूरी दिलाने के लिए लोकसभा में पेश किया गया है. इसके ख़िलाफ़ देश के कई किसान संगठन लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने भी सरकार के इन विधेयकों पर कड़ा ऐतराज़ जताया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने भी सरकार से कहा था कि वो इन विधेयकों को ज़बरदस्ती संसद से पास कराने के बजाय, स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दे. क्योंकि, अध्यादेश अभी लागू हैं और सरकार के पास इन विधेयकों को पास कराने के लिए दिसंबर तक का समय है.
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विरोध का कारण बने ये बिल हैं- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा)बिल, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण बिल) और आवश्यक वस्तु संशोधन बिल. इन तीनों विधेयकों के विरोध में पिछले कुछ दिनों से हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शन के दौरान पुलिस के साथ किसानों की झड़प भी हुई थी. जिसके कारण पंजाब और हरियाणा में ज़बरदस्त तनाव पैदा हो गया था.
संसद से विधेयक के पास होने के बाद यह क़ानून के रूप में लागू हो गया है. अब व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे. पहले किसानों की फसल को सिर्फ मंडी से ही खरीदा जा सकता था. वहीं केंद्र ने अब दाल, आलू, प्याज, अनाज, इडेबल ऑयल आदि को आवश्यक वस्तु के नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा खत्म कर दी है. इन दोनों के अलावा केंद्र सरकार ने ठेके पर खेती को बढ़ावा देने की भी नीति पर काम शुरू किया है. किसान इसे खेती का कॉरपोरेटाइज़ेशन कह कर विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस से लेकर भारतीय किसान यूनियन जैसे बड़े संगठन भी शामिल हैं, जिन्हें अब अकाली दल का भी समर्थन मिल गया है.
लोकसभा में सुखबीर सिंह बादल ने साफ कहा था कि अकाली दल केंद्र के इन विधेयकों का सख्त विरोध करता है. सुखबीर बादल ने कहा था कि किसानों को लेकर बनाए गए इन तीन कानूनों से पंजाब के 20 लाख किसान प्रभावित होने जा रहे हैं. इन क़ानूनों से 30 हजार आढ़ती, तीन लाख मंडी मजदूर और 20 लाख खेतिहर मज़दूरों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा.
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