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अकाली दल का NDA से 40 साल पुराना रिश्ता खत्म, सरकार से समर्थन वापस लिया

Fauzia

चंडीगढ़ 27 Sep, 2020 12:02 am

संसद में विपक्ष के विरोध को दरकिनार कर भले ही मोदी सरकार ने कृषि बिल पास करा लिया हो लेकिन अब उसे इसका खामियाज़ा भी भुगतना पड़ रहा है. इस नये कृषि कानून के विरोध में भारतीय जनता पार्टी के सबसे पुराने सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल ने 40 साल पुराना रिश्ता खत्म कर खुद को NDA से अलग कर लिया है. अकाली दल की कोर कमिटी की बैठक में ये बड़ा फैसला लिया गया है. 

इस बात के संकेत उसी वक्त मिल गए थे जब अकाली दल कोटे से मंत्री हरसिमरत कौर ने कृषि बिल के विरोध में मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि तब अकाली दल का एनडीए को समर्थन जारी था. हरसिमरत कौर बादल केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग मंत्री थीं. केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग मंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद हरसिमरत कौर बादल ने कहा था कि किसान विरोधी अध्यादेशों और कानून के विरोध में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है. किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने का गर्व है.

अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने पहले ही कह दिया था कि हम पंजाब की जनता के खिलाफ गठबंधन नहीं चला सकते. अब अकाली दल ने कृषि बिल के विरोध में एनडीए से अलग होने का फैसला लिया है. इसके साथ ही अकाली दल ने एनडीए से समर्थन वापस ले लिया है.

केंद्र द्वारा लाए गए कृषि संबंधी अध्यादेशों को संसद से मंज़ूरी दिलाने के लिए लोकसभा में पेश किया गया है. इसके ख़िलाफ़ देश के कई किसान संगठन लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने भी सरकार के इन विधेयकों पर कड़ा ऐतराज़ जताया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने भी सरकार से कहा था कि वो इन विधेयकों को ज़बरदस्ती संसद से पास कराने के बजाय, स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दे. क्योंकि, अध्यादेश अभी लागू हैं और सरकार के पास इन विधेयकों को पास कराने के लिए दिसंबर तक का समय है.

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विरोध का कारण बने ये बिल हैं- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा)बिल, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण बिल) और आवश्यक वस्तु संशोधन बिल. इन तीनों विधेयकों के विरोध में पिछले कुछ दिनों से हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शन के दौरान पुलिस के साथ किसानों की झड़प भी हुई थी. जिसके कारण पंजाब और हरियाणा में ज़बरदस्त तनाव पैदा हो गया था.

संसद से विधेयक के पास होने के बाद यह क़ानून के रूप में लागू हो गया है. अब व्यापारी मंडी से बाहर भी किसानों की फसल खरीद सकेंगे. पहले किसानों की फसल को सिर्फ मंडी से ही खरीदा जा सकता था. वहीं केंद्र ने अब दाल, आलू, प्याज, अनाज, इडेबल ऑयल आदि को आवश्यक वस्तु के नियम से बाहर कर इसकी स्टॉक सीमा खत्म कर दी है. इन दोनों के अलावा केंद्र सरकार ने ठेके पर खेती को बढ़ावा देने की भी नीति पर काम शुरू किया है. किसान इसे खेती का कॉरपोरेटाइज़ेशन कह कर विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस से लेकर भारतीय किसान यूनियन जैसे बड़े संगठन भी शामिल हैं, जिन्हें अब अकाली दल का भी समर्थन मिल गया है.

लोकसभा में सुखबीर सिंह बादल ने साफ कहा था कि अकाली दल केंद्र के इन विधेयकों का सख्त विरोध करता है. सुखबीर बादल ने कहा था कि किसानों को लेकर बनाए गए इन तीन कानूनों से पंजाब के 20 लाख किसान प्रभावित होने जा रहे हैं. इन क़ानूनों से 30 हजार आढ़ती, तीन लाख मंडी मजदूर और 20 लाख खेतिहर मज़दूरों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा.

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