खुद को किसानों का महीसा बताने वाली पार्टी शिरोमणी अकाली दल अब किसानों के नाम पर बीजेपी के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रही है. दो दशक से भी ज्यादा समय तक भारतीय जनता पार्टी के साथ कदमताल करने वाली अकाली दल अब भगवा पार्टी को सबक सिखाने के लिए कमर कस रही है. इसके लिए पार्टी ने देश भर में विपक्षी दलों से मुलाकात का सिलसिला शुरु कर दिया है.
शिरोमणी अकाली दल बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की तैयारी कर रहा है. अकाली दल के पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा के नेतृत्व में शनिवार को एक डेलिगेशन ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी से मुलाकात की थी और आज महाराष्ट्र के सीएम और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से भी मुलाकात की. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी मुलाकात की तैयारी की जा रही है. इससे पहले चंदूमाजरा ने बीजू जनता दल के नेताओं से भी मुलाकात की थी.
दरअसल अकाली दल का मानना है कि आज संसद में विपक्ष नाम की कोई चीज़ नहीं है. कमज़ोर विपक्ष का फायदा उठाकर ही बीजेपी अपनी मनमनी कर रही है. अगर बीजेपी को मनमाने कानून पास करने से रोकना है तो एक सशक्त विपक्ष का होना जरूरी है. इसलिए अब अकाली दल नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस यानी एनडीए के खिलाफ एक राष्ट्रीय मोर्चा खड़ा करने की तैयारी में जुट गई है.
चंदूमाजरा ने कहा कि अभी तक जितने भी विपक्षी नेताओं से मुलाकात हुई है उन सभी से अच्छा रिस्पांस मिला है. सभी क्षेत्रीय दलों को लग रहा है कि एनडीए के तानाशाही रवैय्ये को रोकने के लिए सभी का एक जुट होना जरूरी है. वहीं बीजेपी इसे अकाली दल की छटपटाहट करार दे रही है. पंजाब बीजेपी अध्यक्ष अश्विनी शर्मा का कहना है कि हर राजनीतिक दल को अपनी विचारधारा के तहत काम करने का अधिकार है. नेशनल फ्रंट बनाना सिर्फ अकाली दल की छटपटाहट भर है. इस समय अकाली दल की जेब खाली है, इसीलि अब वो अपने लिए विकल्प तलाश रही है.
आपको बता दें कृषि कानूनों के विरोध में ही अकाली दल ने खुद को एनडीए से अलग कर लिया था. यहां तक कि प्रकाश सिंह बादल ने कृषि कानूनों के विरोध में पद्मविभूषण सम्मान भी लौटाने का ऐलान कर दिया है. उन्हें ये सम्मान साल 2015 में एनडीए के कार्यकाल में ही दिया गया था.
अब पूरे पंजाब और हरियाणा के किसान नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं और सरकार से तीनों कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं. जबकि सरकार कानून में सिर्फ संशोधन की बात करने की बात कर रही है और किसानों को नए कृषि कानून के फायदे समझाने की कोशिश कर रही है. लेकिन किसान सरकार की बात मानने को तैयार नहीं है. उनका साफ कहना है कि हम दिल्ली से कुछ तो वापस लेकर जरूर जाएंगे. किसानों ने नए कृषि कानूनों के विरोध में 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. देशभर के किसानों और व्यापार संघों का किसानों को समथर्न भी मिल रहा है.
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