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अमेरिका ने ईरान पर लगाए नए प्रतिबंध, नहीं मिला किसी और देश का साथ

TLB Desk

वाशिंग्‍टन डी सी 22 Sep, 2020 04:03 pm

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने ईरान पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं. इससे ईरान नई मिसाइलों और एटमी हथियारों का विकास नहीं कर पाएगा. ईरान पर प्रतिबंध लगाने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने कार्यकारी आदेश या एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर जारी किया है. ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि जब तक वो अमेरिका के राष्ट्रपति हैं, तब तक ईरान किसी भी सूरत में एटमी हथियार हासिल नहीं कर सकेगा.

इससे पहले अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव को चिट्ठी लिख कर ईरान के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने की दिशा में आगे बढ़ने की अपील की थी. पॉम्पियो ने कहा था कि ईरान विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है. उससे खाड़ी देशों की स्थिरता को लगतार चुनौती मिलती रही है. इसीलिए, अमेरिका ने ईरान पर नई पाबंदियां लगाने की घोषणा की है.

माइक पॉम्पियो ने कहा कि अमेरिका का मक़सद ईरान को विश्व बिरादरी से पूरी तरह से अलग थलग रखना है. अमेरिका के विदेश मंत्री  ने उम्मीद जताई कि यूरोपीय देश भी ईरान पर प्रतिबंध लगाने की ज़रूरतों को समझेंगे और अमेरिका का साथ देंगे. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य रूस और चीन, ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंध लगाने का विरोध करते रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के कई अन्य सदस्य भी अमेरिका द्वारा ईरान पर पाबंदियां लगाने के ख़िलाफ़ हैं.

लेकिन, अमेरिका लगातार ये कहता रहा है कि उसने ईरान पर जो पाबंदियां लगाई हैं, उससे पूरी दुनिया का भला होगा.

क्योंकि, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को विकसित करके पूरी दुनिया के लिए ख़तरा बनता जा रहा है. अमेरिका ने ईरान पर जो नए प्रतिबंध लगाए हैं, वो 25 संस्थाओं और ईरानी नागरिकों के ऊपर हैं. ये वो लोग और संस्थाएं हैं जिन्हें अमेरिका आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोपी ठहराता है. ईरान पर लगाए गए इन प्रतिबंधों को अमेरिका ने ‘ईरान स्नैपबैक सैंक्शन्स’ का नाम दिया है.

डोनाल्ड ट्रंप के इस क़दम को अमेरिका की घरेलू राजनीति से जोड़ कर देखा जा रहा है. अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. और उससे पहले ट्रंप आतंकवाद के ख़िलाफ़ सख़्त रुख़ रखने वाले नेता की छवि को और चमकाने में जुटे हैं.

इसी वजह से राष्ट्रपति बनने के बाद वो ईरान और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते से भी हट गए थे. ये समझौता बराक ओबामा के शासन काल में वर्ष 2015 में हुआ था. जिसमें ईरान और अमेरिका के अलावा, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और यूरोपीय संघ भी शामिल थे. इस समझौते के तहत ईरान को शांतिपूर्ण उपयोग के लिए अपना परमाणु कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की निगरानी में चलाने की इजाज़त दी गई थी.

लेकिन, 2018 में ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से अलग करके ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए थे.

ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिका के सख़्त रुख़ का नतीजा भारत को भी भुगतना पड़ रहा है. अमेरिका के दबाव में भारत ने ईरान से तेल ख़रीदना बंद कर दिया है. जबकि, एक समय में ईरान, भारत को तेल निर्यात करने वाले टॉप के तीन देशों में से एक हुआ करता था. और भारत इसके एवज़ में उसे डॉलर के बजाय भारतीय मुद्रा में भुगतान कर सकता था. इसके लिए, भारत ने ईरान के बैंकों को अपने यहां शाखाएं खोलने की भी इजाज़त दे दी थी.

अमेरिका के साथ खड़े होने के चलते, ईरान और भारत के सामरिक संबंधों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है. ईरान ने अपने चाबहार बंदरगाह से अफ़ग़ानिस्तान तक बिछाई जाने वाली रेलवे लाइन के प्रोजेक्ट से भारत को अलग कर दिया है. जबकि, बिना पाकिस्तान के अफ़ग़ानिस्तान पहुंचने के लिहाज़ से ये रेलवे लाइन भारत के लिए काफ़ी अहम थी. हालांकि, ईरान अभी भी भारत को अपने चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल करने दे रहा है.

अभी इसी महीने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर ईरान के दौरे पर गए थे. दोनों ही नेता मॉस्को में SCO की बैठक के बाद वापसी में एक दिन के लिए तेहरान गए थे.

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