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विश्‍लेषण: अयोध्या में शुरू हुआ मंदिर निर्माण, जाने BJP के अलावा किन-किन दलों को इससे मिलता रहा है लाभ

KRJ Kundan

22 Aug, 2020 06:22 pm

प्रधानमंत्री ने अयोध्या में 5 अगस्‍त को भूमि पूजन किया था और इस भूमि पूजन के साथ ही राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया. 1980 के दशक में शुरू हुए मंदिर आंदोलन ने देश की राजनीति को 3 दशक से भी अधिक समय तक लगातार प्रभावित किया. 1984 के लोकसभा चुनाव तक मजबूत दिखने वाली कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर होती चली गयी. मंदिर आंदोलन से सबसे अधिक राजनीतिक आधार बीजेपी ने मजबूत किया. लेकिन बीजेपी के अलावा भी कई राजनीतिक दल हैं जिन्हें इस आंदोलन के पक्ष या विपक्ष में खड़े रहने का फायदा मिला था. 

अब इस मुद्दे का कानूनी समाधान हो गया है ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि अब इस मुद्दे का देश की राजनीति में क्या असर रहेगा. यह देखना रोचक होगा कि मंदिर निर्माण की शुरुआत के बाद भी क्या यह एक अहम चुनावी मुद्दा बना रहेगा या अब इस पर चर्चा नहीं होगी!

1990 के दशक में उत्तर प्रदेश में मंदिर को लेकर हुए आंदोलन का परिणाम था कि 1991 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 51 लोकसभा सीटों पर चुनाव जीतकर अपने आप को उत्तर प्रदेश में काफी मजबूत बना लिया था. राज्य में भी उसकी सरकार बन गयी थी. लेकिन कई अन्य दल भी थे जिसे परोक्ष या अपरोक्ष रूप से इस आंदोलन से राजनीतिक फायदा हुआ. 

शिवसेना - बाला साहेब ठाकरे द्वारा 1966 में स्थापित शिवसेना अपने स्थापना के बाद से लगातार सत्ता में आने के लिए प्रयासरत थी. मराठा मानूष के नाम पर राजनीति कर रही इस पार्टी को मंदिर आंदोलन से राष्ट्रीय पहचान के साथ-साथ एक उग्र हिंदूवादी पार्टी के रूप में स्थापित होने में भी मदद मिली. 1978 के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने वाली शिवसेना ने 1990 के चुनाव में 52 सीटों पर जीत दर्ज कर ली थी. बाद में 1995 के विधानसभा चुनाव में 73 सीट जीत कर बीजेपी के साथ गठबंधन कर सत्ता में पहुंच गयी. राजग के पहले कार्यकाल में पार्टी के नेता मनोहर जोशी को लोकसभा अध्यक्ष भी बनाया गया था. 

राष्ट्रीय जनता दल - वैसे तो RJD की स्थापना 5 जुलाई 1997 को हुई. लेकिन पार्टी के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद द्वारा 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने के बाद उनकी अल्पसंख्यक समुदाय के बीच काफी मजबूत पकड़ बन गयी. जो बाद में उनके राजनीति का आधार बन गया. 1997 में जनता दल से अलग हटकर अलग पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाने के बाद भी मुस्लिम मतदाता उनके साथ बने रहे हैं. 1998 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें इसका फायदा मिला. अभी भी बिहार में मुस्लिम मतदाता राजद के परंपारगत वोटर माने जाते हैं. आने वाले विधानसभा चुनाव में यह देखने लायक होगा कि क्या बीजेपी और राजद अपने-अपने एजेंडे के अनुसार इस मुद्दे को उठाती है या फिर उनके रणनीति में परिवर्तन होगा. 

समाजवादी पार्टी - मुलायम सिंह यादव द्वारा स्थापित समाजवादी पार्टी ने भी मंदिर आंदोलन के समानांनतर राजनीति करते हुए कांग्रेस के आधार वोट को अपनी तरफ ले लिया था. 1990 में कारसेवकों पर हुए गोलीकांड के बाद मुलायम सिंह यादव के साथ भी पक्ष और विपक्ष में मतों का ध्रुवीकरण हुआ. 4 अक्टूबर 1992 को  समाजवादी पार्टी की स्थापना के बाद भी उन्हें मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिलता रहा. सपा को 2002 और 2012 में सत्ता में आने में अपने परंपरागत वोट बैंक का काफी सहयोग मिला. 2004 के लोकसभा चुनाव में भी सपा ने 36 सीटों पर जीत दर्ज की थी. मंदिर आंदोलन के बाद बनी इस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में हमेशा इस मुद्दे के आस पास राजनीति की है. कई मौकों पर मुलायम सिंह यादव ने बाबरी मस्जिद के पक्ष में बयान भी दिया था. लेकिन अब यह देखना है कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी का क्या स्टैंड होता है. 

बहुजन समाज पार्टी - दलित विचारक कांशीराम द्वारा स्थापित बहुजन समाज पार्टी ने हालांकि अपना आधार वोट दलित राजनीति से प्राप्त किया था. लेकिन 1990 के बाद की राजनीति में उसे भी इस मुद्दे का कई बार लाभ मिला. 2007 के विधानसभा चुनाव में सत्ता तक पहुंचने में भी मायावती को अल्पसंख्यक मतों के ध्रुवीकरण का फायदा हुआ था. 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद कांशीराम और मुलायम सिंह ने गठबंधन कर मंदिर आंदोलन के विरोध में राजनीति की शुरुआत की थी. उस दौर में एक नारा काफी चर्चा में रहा था. ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम’.

इन दलों को हुआ नुकसान

वामदल - आजादी के बाद से 1970 के दशक तक भारतीय राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाले वामदलों को इस आंदोलन ने सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया. बिहार-झारखंड जैसे राज्यों में मजबूत आधार रखने वाले कई वाम सोच वाली पार्टी की राजनीतिक जमीन खत्म हो गयी. वामदलों के परंपरागत मतदाता किसान और मजदूर 'मंडल' और 'कमंडल' की राजनीति के दौर में उनके हाथों से निकल गए. 

कांग्रेस - मंदिर आंदोलन को शुरुआती दिनों में कांग्रेस पार्टी की तरफ से अपरोक्ष तौर पर सहयोग मिलता रहा लेकिन बाद के दिनों में पार्टी इस मुद्दे पर अपने स्टैंड को क्लियर नहीं रख पायी. जो एक अहम कारक बना कांग्रेस के उत्तर प्रदेश से लेकर झारखंड तक में पतन का. 

राष्ट्रीय लोक दल - 1974 में  चौधरी चरण सिंह ने भारतीय लोकदल की स्थापना की थी. 1987 में चौधरी चरण सिंह के निधन से पूर्व तक यह पार्टी देश की राजनीति में एक अहम स्थान रखती थी. एक समय देवी लाल, नीतीश कुमार, बीजू पटनायक, शरद यादव और मुलायम सिंह यादव भी इसी लोक दल के नेता होते थे. लेकिन बाद के दौर में पार्टी बिखरती चली गयी. पिछले 3 दशक में कुछ अपवादों को अगर छोड़ दिया जाए तो पार्टी का आधार लगातार कम ही होता गया.

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