Anant Chaturdashi 2020: अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु (Vishnu) के अनंत रूप की पूजा की जाती है. हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु का स्वरूप अनंत है. अनंत यानी जिसका न आदि है और न अंत. अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने का विधान है. कहते हैं कि अगर सच्चे मन और पूरे विधि-विधान के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाए तो भक्त के संकटों का सर्वनाश हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
इस दिन हाथ या गले में अनंत सूत्र (Anant Sutra) धारण किया जाता है. यह सूत्र रेशम या सूत का होता है और इसमें 14 गांठें लगाई जाती हैं. यह 14 गाठें 14 लोक और श्री हरि विष्णु के 14 अलग-अलग अवतारों का प्रतीक हैं.
कहते हैं कि भगवान ने 14 लोक बनाए जिनमें सत्य, तप, जन, मह, स्वर्ग, भुव:, भू, अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल शामिल हैं. अपने बनाए इन लोकों की रक्षा करने के लिए श्री हरि विष्णु ने अलग-अलग 14 अवतार लिए. अनंत सूत्र की हर एक गांठ में श्री हरि के विभिन्न नामों से पूजा की जाती है. यह नाम इस प्रकार हैं: अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द. मान्यता है कि अनंत सूत्र बांधने से विप्त्तियां दूर हो जाती है और श्री हरि विष्णु स्वयं भक्त की रक्षा करते हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणपति विसर्जन (Ganpati Visarjan) किया जाता है, इसलिए भी इस दिन का महत्व बढ़ जाता है.
अनंत चतुर्दशी कब मनाई जाती है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्र पद यानी कि भादो महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में आती है. इस बार
अनंत चतुर्दशी 1 सितंबर को है.
अनंत चतुर्दशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
अनंत चतुर्दशी की तिथि: 1 सितंबर 2020
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 31 अगस्त 2020 को सुबह 8 बजकर 48 मिनट से
चतुर्दशी तिथि समाप्त: 1 सितंबर 2020 को सुबह 9 बजकर 38 मिनट तक
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त: 1 सितंबर 2020 को सुबह 5 बजकर 59 मिनट से सुबह 9 बजकर 38 मिनट तक
कुल अवधि: 3 घंटे 39 मिनट
अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि
- अगर आप अनंत चतुर्दशी का व्रत कर रहे हैं तो सुबह-सवेरे उठकर स्नान करें.
- अब घर के मंदिर में पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं
- हाथ में जल लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए व्रत का संकल्प लें:
'ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये
- अब एक कलश की स्थापना करें. कलश के ऊपर अष्ट दलों वाला कमल रखें और कुश से बनी सात फणों वाली शेष स्वरूप गवान अनन्त की मूर्ति स्थापित करें.
- आप चाहें तो भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर भी पूजा कर सकते हैं.
- अब स्थापित की गई मूर्ति को 14 गांठों वाला अनंत सूत्र अर्पित करें. आपको बता दें कि कच्चे सूत को हल्दी, सिंदूरी लाल रंग और केसर लगाकर अनंत सूत्र तैयार किया जाता है.
- इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सूत्र की पूजा करें:
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
- इसके बाद आम पत्र, नैवेद्य, गंध, पुष्प और धूप-दीप से भगवान अनंत की पूजा करें.
- अब अनंत चतुर्दशी की कथा पढ़ें और भगवान की आरती उतारें.
- अंत में भगवान विष्णु के अनंत रूप को पंचामृत, पंजीरी, केला और मोदक प्रसाद में चढ़ाएं.
- परिवार के सभी समदस्यों में प्रसाद वितरण करें.
- पूजा के बाद अनंत सूत्र बांधें. पुरुष इस सूत्र को बाएं हाथ और महिलाएं दाएं हाथ में बांधती हैं.
- अनंत सूत्र बांधते वक्त इस मंत्र का उच्चारण करें:
अनंत संसार महासमुद्रे
मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व
ह्यनंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
- सूत्र बांधने के बाद यथा शक्ति ब्राह्मण को भोज कराएं
- आप स्वयं दिन भर व्रत रखें और रात के समय बिना नमक वाला भोजन ग्रहण करें.
अनंत चतुर्दशी कथा
अनंत चतुर्दशी की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था. उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था. उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी, जिसका नाम सुशीला था. सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई.
पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया. सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया. विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए.
कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए. परंतु रास्ते में ही रात हो गई. वे नदी तट पर संध्या करने लगे. सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं. सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई. सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गईं.
कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी. उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ. परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे. उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई. इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कही.
पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए. वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े. तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- 'हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा. तुम दुखी हुए. अब तुमने पश्चाताप किया है. मैं तुमसे प्रसन्न हूं. अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो. चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा. तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे. कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई.
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