सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को रिपब्लिक टीवी (Republic TV) के संपादक अर्नब गोस्वामी (Arnab Goswami) को अंतरिम बेल दे दी. आपको बता दें कि अर्नब को पिछले हफ्ते महाराष्ट्र पुलिस ने साल 2018 के आत्महत्या के एक मामले में गिरफ्तार किया था. अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर राज्य सरकारें व्यक्तियों को टारगेट करती हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए शीर्ष अदालत है.
#ArnabIsBack | Republic Media Network is grateful to the Honourable Supreme Court of India for its order today that granted bail to our Editor-in-Chief Arnab Goswami. We are also deeply thankful & ever-indebted to Senior Advocate Harish Salve and the entire team at Phoenix Legal pic.twitter.com/5qqUMdru8Z
— Republic (@republic) November 11, 2020
जस्टिस चंद्रचूड़ वाली बेंच ने अर्नब और दो अन्य आरोपियों को 50 हजार के मुचलके पर अंतरिम जमानत दे दी. बेंच ने इसी के साथ पुलिस कमिश्नर को यह भी निर्देश दिया कि आदेश की तुरंत तामील की जाए. कोर्ट के आदेश के बाद अर्नब जेल से बाहर आ गए हैं.
#ArnabIsBack, Republic Media Network's Editor-in-Chief Arnab Goswami out of Taloja jail amid massive wave of support; Tune in to watch #LIVE here - https://t.co/rGQJsiKgt2 pic.twitter.com/lx8iHR7e36
— Republic (@republic) November 11, 2020
अर्नब गोस्वामी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश सीनियर वकील हरीश साल्वे ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की. उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति महाराष्ट्र में आत्महत्या करता है और सरकार को दोषी ठहराता है, तो क्या मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया जाएगा? उन्होंने जमानत पर बहस के दौरान दलील देते हुए कहा, "द्वेष और तथ्यों को अनदेखा करते हुए राज्य की शक्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है. हम एफआईआर के चरण से आगे निकल गए हैं. इस मामले में मई 2018 में एफआईआर दर्ज की गई थी. दोबारा जांच करने के लिए शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है."
सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने "राज्य सरकारों द्वारा विचारधारा और विचारों में मतभेद के आधार पर व्यक्ति विशेष को टारगेट करने पर" चिंता जताई और कहा कि सरकारों को पता होना चाहिए कि नागरिकों की आजादी की रक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट मौजूद है.
इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि "भारत का लोकतंत्र असाधारण रूप से लचीला है", महाराष्ट्र सरकार को इस सब (अर्नब के टीवी पर ताने) को नजरअंदाज करना चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "उनकी विचारधारा कुछ भी हो, मैं तो उनका चैनल भी नहीं देखता, लेकिन अगर इस मामले में आज संवैधानिक न्यायालय ने दखल नहीं दिया तो हम अविवादित रूप से विध्वंस के रास्ते पर चल रहे हैं." उन्होंने यह भी कहा, "कहने का मतलब यह है कि क्या इन आरोपों के आधार पर आप किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता देने से मुकर सकते हैं."
ममाले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हम एक बाद एक कई ऐसे केस देख रहे हैं जिनमें हाईकोर्ट जमानत न देकर लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने में असफल हो रहे हैं."
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र से पूछा कि क्या अर्नब गोस्वामी के मामले में हिरासत में लेकर पूछताछ किए जाने की जरूरत है? जस्टिस चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र पुलिस से पूछा, "अगर उन पर पैसा बकाया है और कोई आत्महत्या करता है, तो क्या यह अपहरण का मामला है? क्या यह कस्टोडियल पूछताछ का मामला है? अगर एफआईआर अभी भी लंबित है तो क्या उसे जमानत नहीं दी जाएगी?"
आपको बता दें कि अर्नब गोस्वामी को 4 नवंबर को महाराष्ट्र पुलिस ने साल 2018 के एक सुसाइड मामले में गिरफ्तार किया था. इसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया था. हाईकोर्ट ने आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के मामले में अर्नब और दो अन्य लोगों को अंतरिम जमानत देने से इन्कार करते हुए उन्हें राहत के लिए स्थानीय अदालत जाने को कहा था. इसके बाद अर्नब ने बेल के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
जानकारी के मुताबिक इंटीरियर डिजाइनर अनवय नाइक और उनकी मां कुमुद नाइक मई 2018 में मृत पाए गए थे. सुसाइड नोट के अनुसार अनवय और उनकी मां अपनी जिंदगी खत्म करने पर इसलिए मजबूर हुए क्योंकि अर्नब और दो अन्य लोग फिरोज शेख और नितेश सारदा ने उनके 5 करोड़ 40 लाख रुपये नहीं लौटाए.
Leave Your Comment