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BLOG: डॉनल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस नहीं छोड़ा तो क्या होगा?

Suresh Kumar

नई दिल्‍ली 09 Nov, 2020 01:04 am

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में अनौपचारिक तौर पर, डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी जो बाइडेन को जीत हासिल हुई है. जो बाइडेन ने अपनी विक्ट्री स्पीच में अमेरिका की जनता का शुक्रिया अदा किया और कहा कि वो अब पूरे देश के राष्ट्रपति होंगे और इसे एकजुट करेंगे.

दुनिया के कई देशों के प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों ने जो बाइडेन को बधाई भी दे दी है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन, जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रों समेत दुनिया के बहुत से बड़े देशों ने जो बाइडेन को राष्ट्रपति चुनाव जीतने की मुबारकबाद दी है.

लेकिन, मौजूदा राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अब तक कनशेसेसन स्पीच (Concession Speech) नहीं दी है. आम तौर पर परंपरा रही है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद हारने वाले उम्मीदवार पहले भाषण देते हैं. हार स्वीकार करते हैं और जीतने वाले प्रत्याशी को बधाई देते हैं. लेकिन, डॉनल्ड ट्रंप ने हार मानने से ही इनकार कर दिया है. ट्रंप ने ट्वीट किया कि, अमेरिकी जनता ने उन्हें 7 करोड़ दस लाख से ज़्यादा वोट दिए हैं. जो किसी भी राष्ट्रपति को अब तक मिले सबसे अधिक वोट हैं.

बाइडेन की विक्ट्री स्पीच के बाद उन्होंने चुनाव के नतीजों पर सवाल उठाए. चुनाव में धांधली के आरोप लगाए और कहा कि वो राष्ट्रपति चुनाव जीतने की क़ानूनी लड़ाई जारी रखेंगे.

ट्रंप के इन बयानों से साफ़ है कि अमेरिका में हारे हुए राष्ट्रपति से निर्वाचित राष्ट्रपति को सत्ता हस्तांतरण की जो परंपरा रही है, शायद उसका पालन नहीं होगा.

सवाल उठाए जा रहे हैं कि अगर डॉनल्ड ट्रंप ने हार नहीं मानी और व्हाइट हाउस ख़ाली नहीं किया, तो क्या होगा?

वैसे ये सवाल, तो चुनाव के पहले से ही उठ रहे थे. इसकी सबसे बड़ी वजह डॉनल्ड ट्रंप का मिज़ाज और चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए उनके बयान थे.

इन्हीं हालात को लेकर तमाम एक्सपर्ट ये आशंका जता रहे थे कि ट्रंप शायद आसानी से सत्ता की बागडोर जो बाइडेन को न सौंपें.

फिलहाल तो अमेरिका में चुनावी प्रक्रिया ही औपचारिक तौर पर पूरी नहीं हुई है. अभी बाइडेन को अनौपचारिक तौर पर विजेता माना गया है. इसकी औपचारिकता के लिए अभी कई पड़ाव पार करने होंगे. 

अमेरिकी संविधान में किए गए बीसवें संशोधन में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को क़दम दर क़दम विस्तार से तय किया गया है.

पहले, अमेरिका में नए राष्ट्रपति 4 मार्च को शपथ लिया करते थे. हालांकि, चुनाव नवंबर में ही हो जाते थे. यानी चार महीने तक, कार्यवाहक राष्ट्रपति ही सरकार चलाते थे. इस समय अवधि को कम करने के लिए 1933 में अमेरिकी संविधान में 20वें संशोधन के माध्यम से नए राष्ट्रपति को ट्रांसफर ऑफ़ पावर के लिए समय ढाई महीने से कम कर दिया गया.

अमेरिकी संविधान के मुताबिक़, चुनाव वाले साल के अगले वर्ष जनवरी में 20 तारीख़ की दोपहर को मौजूदा राष्ट्रपति का कार्यकाल ख़त्म हो जाएगा. उसके बाद नए राष्ट्रपति शपथ लेकर पद भार ग्रहण करेंगे.

वैसे तो अमेरिका में चीफ़ जस्टिस नए राष्ट्रपति को शपथ दिलाते हैं लेकिन, इसकी कोई क़ानूनी बाध्यता नहीं है. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को उनके परिवार का ही कोई वरिष्ठ सदस्य राष्ट्रपति पद की शपथ दिला सकता है. लेकिन, उससे पहले राष्ट्रपति चुनाव की औपचारिकताओं की लंबी प्रक्रिया होती है.

अमेरिका का संघीय क़ानून कहता है कि चुनाव वाले साल में 8 दिसंबर तक हर राज्य को अपने इलेक्टोरल कॉलेज का चुनाव कर लेना होगा. इलेक्टोरल कॉलेज ही अमेरिका का राष्ट्रपति चुनता है. हर राज्य में पड़े जनता के वोट के आधार पर ही, 14 दिसंबर को इलेक्टोरल कॉलेज औपचारिक रूप से वोट डालेगा और देश का राष्ट्रपति चुनेगा. जो इस बार जो बाइडेन होंगे.

इसके बाद, 23 दिसंबर को सभी राज्यों के इलेक्टोरल कॉलेज के नतीजे अमेरिकी संसद को बता दिए जाते हैं. 6 जनवरी को संसद, नए राष्ट्रपति के चुनाव पर मुहर लगा देती है.

यानी, अगर सब कुछ ठीक रहा तो, अगले साल 6 जनवरी को अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में जो बाइडेन को राष्ट्रपति निर्वाचित घोषित किया जाएगा. जिसके बाद 20 जनवरी 2021 को बाइडेन, अमेरिका के नए राष्ट्रपति शपथ लेंगे.

अगर राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित कोई क़ानूनी विवाद है, तो वो सारे विवाद 14 दिसंबर को इलेक्टोरल कॉलेज की औपचारिक वोटिंग से पहले निपटा लिए जाने होंगे और इसीलिए डॉनल्ड ट्रंप ने अब तक हार नहीं मानी है. उन्होंने कई राज्यों में वोटों की गिनती को क़ानूनी तौर पर चुनौती दी है. हालांकि, धोखाधड़ी के उनके आरोपों में कोई दम नहीं.

चूंकि, अमेरिका में हर राज्य अपने स्तर पर चुनाव कराता है, तो ट्रंप को हर राज्य में अलग अलग मुक़दमे दायर करने होंगे. फिर मामला वहां के सुप्रीम कोर्ट में जाएगा और यहीं से डॉनल्ड ट्रंप को सबसे अधिक उम्मीद है.

इसकी वजह उन्हें साल 2000 के चुनाव की मिसाल लगती है. तब, रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज डब्ल्यू बुश को अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने विजेता घोषित किया था.

वो मुक़ाबला भी बेहद कांटे का रहा था. उस समय के उप राष्ट्रपति अल गोर, बुश के मुक़ाबले मैदान में थे और चुनाव वाली रात उन्होंने हार भी मान ली थी. लेकिन, मामला फ्लोरिडा स्टेट पर जाकर अटक गया. वहां, बुश और गोर के बीच वोटों का फ़ासला महज़ कुछ सौ वोट का था. बुश केवल 537 वोटों से आगे चल रहे थे और रिकाउंटिंग में ये अंतर 300 से कुछ ज़्यादा वोटों का चल रहा था. तब अल गोर ने दोबारा वोटों की गिनती के लिए अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन, जॉर्ज बुश ने वोटों की गिनती जारी न रखने के ख़िलाफ़ याचिका डाली.

अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में उस समय रिपब्लिकन पार्टी समर्थक जजों का बहुमत था. जिन्होंने 4 के मुक़ाबले 5 वोटों से, फ्लोरिडा में वोटों की गिनती रोकने का फ़ैसला सुनाया और जॉर्ज बुश जूनियर को राष्ट्रपति घोषित कर दिया. उस मामले का फ़ैसला देने वाले जजों ने कहा भी था कि जो आदेश वो दे रहे हैं, वो भविष्य की नज़ीर न माना जाए.

आज अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में रिपब्लिकन पार्टी समर्थक जजों का बहुमत है. कुल 9 जजों में से 6 रूढ़िवादी यानी रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक माने जाते हैं. ऐसे में डॉनल्ड ट्रंप को उम्मीद है, उन्हें चुनाव नतीजे पलटने में सुप्रीम कोर्ट से मदद मिलेगी. इसी आशंका को देखते हुए ट्रंप ने सितंबर में ही सुप्रीम कोर्ट में एक नई जज की नियुक्ति की थी. जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस पर कड़ा ऐतराज़ जताया था. ट्रंप को आशंका थी कि चुनाव विवादित होगा और मामला अदालत में जाएगा.

लेकिन, वो जिस बात को आधार बना रहे हैं, उस पर ट्रंप को राहत मिलेगी, क़ानूनी जानकार इसकी उम्मीद कम ही जता रहे हैं.

अगर क़ानूनी राहत न मिलने पर भी ट्रंप, व्हाइट हाउस में डटे रहते हैं तो फिर क्या होगा?

अमेरिकी एक्सपर्ट कहते हैं कि नए राष्ट्रपति के शपथ लेने के बाद अमेरिका की सीक्रेट सर्विस, ब्यूरोक्रेसी और मिलिट्री सभी नए राष्ट्रपति को रिपोर्ट करेंगे. तब ट्रंप के पास कोई अधिकार नहीं होगा. फिर भी वो व्हाइट हाउस में जमे रहते हैं, तो अमेरिकी राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार सीक्रेट सर्विस उन्हें खींचकर व्हाइट हाउस से बाहर कर देगी.

वैसे, व्हाइट हाउस कोई सत्ता का केंद्र नहीं है. सत्ता की ताक़त राष्ट्रपति में होती है. तो अगर जो बाइडेन चाहेंगे तो कहीं और से भी शासन चला सकते हैं.

क्योंकि, नए राष्ट्रपति को सभी राज्यों और देश की संसद से वैधानिक ताक़त मिल चुकी होगी. तो ट्रंप की मदद के लिए न तो सेना आएगी और न ही सीक्रेट सर्विस. जो सीक्रेट सर्विस आज उनकी सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है. वही उन्हें एक घुसपैठिए की तरह व्हाइट हाउस से बेआबरू करके बाहर निकालेगी.

हालांकि, बहुत से जानकारों का मानना है कि ट्रंप शायद हालात को इस स्थिति तक न ले जाएं. उनकी पार्टी के सांसद और कैबिनेट के सदस्य उन्हें इस बात के लिए राज़ी कर लेंगे कि वो पद त्याग कर दें.

लेकिन, ट्रंप तो ट्रंप हैं. उनके बारे में भरोसे से कुछ भी कहना ख़तरे से ख़ाली नहीं.

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