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अर्थव्यवस्था में गिरावट, ‘ईश्वर का प्रकोप’ है: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

Atit

नई दिल्‍ली 28 Aug, 2020 01:37 am

इस वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ेगी नहीं, बल्कि घटेगी. ये बात ख़ुद देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कही है. जीएसटी काउंसिल की बैठक में वित्त मंत्री ने ईश्वर के जिस प्रकोप का इशारा दिया, वो दरअसल कोरोना वायरस की महामारी है.

निर्मला सीतारमण का ये बयान उस वक़्त आया है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को ये यक़ीन दिला रहे थे कि लॉकडाउन के बाद जब से देश में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई है, तो सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में जुंबिश के संकेत दिखने लगे हैं. नौ जुलाई को ही प्रधानमंत्री ने देश को भरोसा दिया था कि भारत की अर्थव्यवस्था अधिक उत्पादक बन रही है. यहां निवेश का माहौल दोस्ताना हो रहा है. और हम दुनिया के अन्य देशों से मुक़ाबले के लिए भी आज बेहतर स्थिति में हैं.

लेकिन, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ़ कर दिया है कि इस साल, देश की अर्थव्यवस्था का विकास नकारात्मक ही रहेगा. यानी इकॉनमी बढ़ेगी नहीं, बल्कि घटेगी.

जीडीपी ग्रोथ नकारात्मक रहने का मतलब है. लोगों की आमदनी नहीं बढ़ेगी. उनको नौकरी मिलनी मुश्किल होगी. और, पैसे कम होंगे तो लोग ख़रीदारी करने से भी परहेज़ करेंगे.

पिछले चालीस वर्षों में ऐसा पहली बार होगा, जब भारत में आर्थिक विकास का पहिया आगे की तरफ़ नहीं, बल्कि पीछे की ओर घूमेगा.

अलग अलग एजेंसियां अर्थव्यवस्था में नेगेटिव ग्रोथ के अलग अलग अनुमान लगा रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन है कि इस वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था 4.5 प्रतिशत घट जाएगी. वहीं, रेटिंग एजेंसी ICRA कहती है कि इस साल भारत की अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. तो विश्व बैंक, भारत की इकॉनमी में 3.2 प्रतिशत की कमी आने की चेतावनी दे चुका है. हालांकि, देश की जीडीपी में कितनी गिरावट आएगी, ये तो 31 अगस्त को ही पता चल सकेगा, जब सरकार जीडीपी के आंकड़े जारी करेगी.

वैसे, इससे पहले देश के बैंकिंग रेग्युलेटर यानी रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी चेतावनी दी थी कि इस वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था में विकास की कोई उम्मीद नहीं है.

मतलब साफ़ है कि इस साल रोज़गार के अवसर कम होंगे. काम-धंधा मंदा रहेगा. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अर्थव्यवस्था में हरियाली के संकेत देख रहे थे. मगर, ज़्यादा व्यवाहरिक अनुमान यही बताते हैं कि इस साल देश के पॉकेट की हालत पतली ही रहने वाली है.

वित्त मंत्री सीतारमण के अर्थव्यवस्था में गिरावट को ईश्वर का क़हर बताने के साथ ही विपक्षी दलों ने उन पर हमला कर दिया.

कांग्रेस की ओर से ट्वीट किए गए कि-

देश में बेरोज़गारी की दर पिछले 45 वर्षों में सबसे अधिक है.
जीडीपी ग्रोथ चालीस बरस में पहली बार नेगेटिव है.
किसानों की आमदनी 14 साल के सबसे कम स्तर पर है.
20 लाख करोड़ का आत्मनिर्भर भारत पैकेज हवा-हवाई है.
टैक्स वसूलने से सरकार की कमाई 46 प्रतिशत घट गई है. और
पंद्रह करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं.

और ये सब ऊपरवाले की ग़लती है. इसमें मोदी और निर्मला सीतारमण का कोई दोष नहीं?

राजनीति से इतर, वित्त मंत्री का ये बयान लोगों के लिए डराने वाला है. क्योंकि, इससे ख़राब माली हालत का एक दुष्चक्र शुरू होता है. लोगों को नौकरियां नहीं मिलती तो वो ख़र्च कम करते हैं. क़र्ज़ डूबने के डर से बैंक, कारोबार के लिए क़र्ज़ नहीं बांटते. पैसे की कमी होने से लोग नए काम-धंधे नहीं शुरू करते.

इन हालात में सबसे बुरा प्रभाव तो उस ख़्वाब पर पड़ेगा, जो ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया है. भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनाने का.

वैसे, प्रधानमंत्री मोदी ये भी कहते रहे हैं कि आपदा में भी अवसर होता है. तो वाक़ई भारत के पास भी आगे चल कर तरक़्क़ी के अवसर आएंगे. लेकिन ये कब आएंगे, इनका जवाब तो कोरोना वायरस ही दे सकता है.

क्योंकि जब, 6 अगस्त को रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास से पूछा गया था कि आख़िर जीडीपी की ग्रोथ पॉजिटिव कब होगी, तो उन्होंने कहा था कि पहले आप ये बताएं कि कोविड-19 का प्रकोप कब ख़त्म होगा, तो मैं आपके सवाल का जवाब दे दूंगा.

यानी आने वाले समय में रोज़ी-रोटी और काम-धंधे का क्या होगा, ये कोरोना वायरस तय करेगा. या फिर जैसा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा-जब ईश्वर चाहेंगे.

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