Dhanteras 2020: धनतेरस (Dhanteras) के साथ ही हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्व दीपावली (Diwali) की शुरुआत हो जाती है. धनतेरस को धनत्रयोदशी (DhanTrayodashi) के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मंथन (Samundra Manthan) के दौरान धन के देवता कुबेर के साथ मां लक्ष्मी क्षीर सागर से प्रकट हुईं थीं. इस पर्व को धन्वंतरि त्रयोदशी (Dhanvantari Trayodashi) भी कहते हैं क्योंकि इसी दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था. धनवंतरि के जन्म के कारण ही इसे धनवन्तरि जयंती (Dhanvantari Jayanti) भी कहते हैं. भारत सरकार का आयुष मंत्रालय 2016 से इस दिवस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस (National Ayurveda Day) के रूप में मनाता आ रहा है. नए सामान, नए बर्तन, गाड़ी, घर और विशेषकर सोने-चांदी के आभूषण खरीदने के लिए धनतेरस का दिन बेहद शुभ माना जाता है.
धनतेरस कब मनाया जाता है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी यानी कि तेरहवें दिन धनतेरस मनाया जाता है. यह पर्व रमा एकादशी के दो दिन बाद और दीपावली से एक दिन पहले पड़ता है. इस बार धनतेरस 13 नवंबर को है.
धनतेरस की तिथि और शुभ मुहूर्त
धनतेरस की तिथि: 13 नवंबर 2020
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 12 नवंबर 2020 को रात 9 बजकर 30 मिनट से
त्रयोदशी समाप्त: 13 नवंबर 2020 को शाम 5 बजकर 59 मिनट तक
धनतेरस पूजा मुहूर्त: 13 नवंबर 2020 को शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 5 बजकर 59 मिनट तक
धनतेरस का महत्व
हिन्द धर्म में धनतेरस का विशेष महत्व है. इस दिन विशेष रूप से भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान धन्वंतरि एक हाथ में अमृत का कलश और दूसरे हाथ में आयुर्वेद की पुस्तक लेकर क्षीर सागर से प्रकट हुए थे. भगवा धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य यानी कि डॉक्टर माना जाता है.
धन प्राप्ति और स्वास्थ्य वृद्धि के लिए धनतेरस का दिन अत्यंत शुभ माना जाता है. इस दिन शाम के समय धन्वंतरि के साथ ही मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा भी की जाती है. इसके बाद घर के अंदर और बाहर दीपक जलाए जाते हैं और इसी के साथ शुरू हो जाता है दीपावली का महापर्व. इस दिन घर के बाहर यमदीप यानी कि मृत्यु के देवता यमराज के नाम का दीपक भी जलाया जाता है. मान्यता है कि धनतेरस के दिन यमदीप जलाने से परिवार में अकाल मृत्यू का खतरा टल जाता है.
इसके अलावा लोग इस दिन लक्ष्मी-गणेश की नई मूर्तियों के साथ अपने घर के लिए नए बर्तन, सामान और आभूषण खरीदते हैं. मान्यता है कि इस दिन धातु का सामान खरीदने से घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य आता है.
धनतेरस पूजा सामग्री
धनतेरस की पूजा सामग्री इस प्रकार है: चांदी के सिक्के (लक्ष्मी-गणेश के चित्र वाले), 5 सुपारी, कुछ साधारण सिक्के, 21 कमलगट्टे, मिठाई, पान के पत्ते, लौंग, कपूर, धूप, दीपक, घी, रोली, चंदन, अक्षत, शहद, फूल, फूलों की माला, फल, नारियल और गंगा जल.
धनतेरस की पूजा विधि
धनतेरस की पूजा प्रदोष काल में की जाती है. प्रदोष काल यानी कि सूर्यास्त के बाद का समय. धनतेरस के दिन प्रदोष काल के स्थिर लग्न में भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी की पूजा करना सर्वाधिक शुभकारी माना गया है. स्थिर यानी कि जो ठहरा हुआ हो. आमतौर पर दीपावली के दौरान प्रदोष काल में वृषभ लग्न को स्थिर माना जाता है. स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी की पूजा करने से लक्ष्मीजी घर पर ही निवास करती हैं. धनतेरस की पूजा विधि इस प्रकार है:
- धनतेरस के दिन घर की अच्छी तरह साफ-सफाई कर लें.
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- प्रदोष काल में घर के मंदिर में एक लकड़ी के पटरे पर मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और भगवान कुबेर की प्रतिमा स्थापित करें. अगर प्रतिमाएं न हों तो बाजार से मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और भगवान कुबेर के चित्रों वाला कैलेंडर लाकर भी पूजा कर सकते हैं.
- सबसे पहले श्रीणेश को नमस्कार करें और इसके बाद मां लक्ष्मी समेत धन्वंतरि और कुबेर का ध्यान करें.
- इसके बाद पहले पंचामृत और फिर स्वच्छ जल से सभी प्रतिमाओं को स्नान कराएं. अगर कैलेंडर की पूजा का रहे हैं तो सांकेतिक रूप से गंगाजल छिड़क दें.
- इसके बाद रोली, चंदन और अक्षत से तिलक लगाएं.
- फिर फूल अर्पित करें और फूलों की माला पहनाएं.
- अब फल और नैवेद्य अर्पित करें.
- अब घी का दीपक जलाएं और धूप-दीप से आरती उतारें.
- इसके बाद भगवान धन्वंतरि को पीले रंग और कुबेर जी को सफेद मिठाई का भोग लगाएं.
- मां लक्ष्मी को नारियल का भोग लगाएं.
- अब मां लक्ष्मी की आरती उतारें.
- इसके बाद घर के बाहर यम के नाम का दीपक जलाएं. इस दीपक में चावल, चीनी और फूल अर्पित करें.
- अब घर के अंदर और बाहर भी दीपक प्रज्ज्वलित करें.
- घर के सभी सदस्यों को तिलक लगाएं और प्रसाद वितरित करें.
भगवान धन्वंतरि का मंत्र
ऊं नमो भगवते महा सुदर्शनाया वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व भय विनाशाय सर्व रोग निवारणाय त्रैलोक्य पतये त्रैलोक्य निधये श्री महा विष्णु स्वरुप श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा.
भगवान कुबेर का मंत्र
ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:
मां लक्ष्मी का मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:
भगवान धन्वंतरि जी की आरती
जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.।।
भगवान कुबेर की आरती
ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे,
स्वामी जै यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े भगतों के,
भण्डार कुबेर भरे।
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
शिव भक्तों में भक्त कुबेर बड़े,
स्वामी भक्त कुबेर बड़े।
दैत्य दानव मानव से,
कई-कई युद्ध लड़े ॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
स्वर्ण सिंहासन बैठे,
सिर पर छत्र फिरे,
स्वामी सिर पर छत्र फिरे।
योगिनी मंगल गावैं,
सब जय जय कार करैं॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
गदा त्रिशूल हाथ में,
शस्त्र बहुत धरे,
स्वामी शस्त्र बहुत धरे।
दुख भय संकट मोचन,
धनुष टंकार करें॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
भांति भांति के व्यंजन बहुत बने,
स्वामी व्यंजन बहुत बने।
मोहन भोग लगावैं,
साथ में उड़द चने॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
बल बुद्धि विद्या दाता,
हम तेरी शरण पड़े,
स्वामी हम तेरी शरण पड़े,
अपने भक्त जनों के,
सारे काम संवारे॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
मुकुट मणी की शोभा,
मोतियन हार गले,
स्वामी मोतियन हार गले।
अगर कपूर की बाती,
घी की जोत जले॥
॥ ऊँ जै यक्ष कुबेर हरे...॥
यक्ष कुबेर जी की आरती,
जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे ।
कहत प्रेमपाल स्वामी,
मनवांछित फल पावे।
॥ इति श्री कुबेर आरती ॥
मां लक्ष्मी जी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥
उमा, रमा, ब्रम्हाणी,
तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
दुर्गा रुप निरंजनि,
सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
तुम ही पाताल निवासनी,
तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,
भव निधि की त्राता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
जिस घर तुम रहती हो,
ताँहि में हैं सद्गुण आता ।
सब सभंव हो जाता,
मन नहीं घबराता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
तुम बिन यज्ञ ना होता,
वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव,
सब तुमसे आता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
शुभ गुण मंदिर सुंदर,
क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
महालक्ष्मी जी की आरती,
जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता,
पाप उतर जाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता...॥
ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥
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