Navratri 2020: नवरात्र यानी कि नौ रातें और इन नौ रातों में शक्ति की आदि देवी मां दुर्गा (Maa Durga) के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है. ये नौ स्वरूप आदि शक्ति के ही अलग-अलग रूप हैं, जिनकी सम्मिलित शक्तियों ने अत्याचारी और परम बलशाली राक्षस महिषासुर (Mahishasur) का वध कर उसके आतंक से ब्रहृमांड को मुक्ति दिलाई. महिषासुर के वध के साथ ही यह पुन: स्थापित हो गया कि अत्याचारी कितना ही ताकतवर क्यों न हो उसे अच्छाई के सामने हारना ही होता है, धर्म के आगे अधर्म की कोई बिसात नहीं, बुराई पर अच्छाई की जीत होकर ही रहती है और सत्य के आगे असत्य झुकता ही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये अत्याचारी महिषासुर कौन था और किस तरह उसके वध के लिए आदि स्वरूपा मां दुर्गा की रचना की गई. आइए आज उसी महिषासुर और आदि शक्ति मां दुर्गा के बारे में जानते हैं.
तीनों लोकों में हाहाकार और आतंक मचाने वाले क्रूर व अत्याचारी दानव महिषासुर का जन्म दैत्य राज रम्भ और एक महिष यानी मादा भैंस के विवाह के बाद हुआ था. असुर और भैंस की संतान होने के कारण वह परम बलशाली था. वह अमर होकर देवताओं को हमेशा-हमेशा के लिए पराजित करना चाहता था. इस उद्देश्य से उसने 10 हजार सालों तक सृष्टि के रचयिता श्री ब्रह्मा की कठोर तपस्या की. वह ब्रह्मा जी से वरदान पाने के लिए एक पेड़ के नीचे एक पैर पर खड़े होकर तब तक तपस्या करता रहा जब तक कि भगवान प्रसन्न होकर स्वयं उसके सामने उपस्थित नहीं हो गए. महिषासुर के निकट आकर ब्रह्माजी कहने लगे, "वत्स! उठो, अब तुम्हारी तपस्या सफल हो गई. मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूंगा इच्छानुसार वर मांगो".
ब्रह्मा जी के वचन सुन महिषासुर आह्लादित हो उठा और उसने भगवान से अमर होने का वरदान मांगा. महिषासुर के ऐसे वरदान से ब्रह्माजी संकोच में पड़ गए और उससे कहने लगे, "वत्स! जो प्राणी जन्म लेता है उसकी मृत्यु होना सुनिश्चित है. तुम मुझसे मृत्यु को छोड़कर, जो चाहो मांगोगे वो मैं तुम्हें दूंगा."
इस पर महिषासुर पहले तो उदास हो गया लेकिन कुछ क्षण सोचने के बाद बोला, "हे भगवन् मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि देवता, दैत्य या मानव किसी के हाथों भी मेरी मृत्यु न हो. अगर मुझे मरना ही है तो किसी स्त्री के हाथों मेरी मृत्यु सुनिश्चित करें."
ब्रह्माजी ने तथास्तु बोलते हुए कहा कि तुम्हारी मृत्यु किसी स्त्री के ही हाथों होगी. ऐसा कहकर ब्रह्माजी वहां से अंतर्ध्यान हो गए.
ब्रह्माजी के जाते ही महिषासुर विजयी अट्हाहस करते हुए बोला, "अब कोई मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकता. मेरे आगे अब ये देवता टिक नहीं पाएंगे."
इसके बाद महिषासुर ने राक्षसों की सेना बनाई और पृथ्वी पर आतंक मचा दिया. जो कोई भी महिषासुर की बात नहीं बात मानता था उसे वो क्षण भर में मृत्यु लोक पहुंचा देता था. पृथ्वी वासी उसके आतंक के साए में जीने लगे.
शीघ्र ही यह बात चारों ओर फैल गई कि महिषासुर अपराजेय है. पृथ्वी और पाताल पर विजय प्राप्त करने के बाद महिषासुर ने इन्द्र लोक पर आक्रमण किया. देवताओं के सभी अस्त्र-शस्त्र उसकी ताकत के आगे निष्क्रिय हो गए. इस युद्ध में भगवान विष्णु और शिव भी देवराज इन्द्र की सहायता के लिये आए. भगवान विष्णु ने महिषासुर पर गदे से तीव्र प्रहार किया, वह क्षण भर के लिए गिरा जरूर, लेकिन तुरंत संभलकर पूर्ण शक्ति के साथ खड़ा हो गया. फिर विष्णु जी ने उसका सिर धड़ से अलग करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र चलाया, लेकिन चक्र वापस आ गया और महिषासुर को खरोंच तक नहीं आई. इस प्रहार के बदले में महिषासुर ने विष्णु जी को ही पछाड़ दिया.
हालात को देखते हुए इंद्र ने अपना शक्तिशाली वज्र महिषासुर पर छोड़ा, लेकिन वज्र का प्रहार उस परम बलशाली दैत्य के ऊपर से ऐसे गुजर गया, मानो कोई ठंडी हवा का झोंका हो. फिर क्या था महाबली महिषासुर ने विशाल भैंसे का रूप लेकर एक-एक कर सबको पराजित कर दिया. देवता त्राहि माम करते हुए स्वर्ग से पलायन करने लगे. इस तरह देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया.
देवता मारे-मारे एक जगह से दूसरे जगह फिर रहे थे. इस तरह कई सालों तक ऐसे छिप-छिप कर और डर-डर कर रहने से वे परेशान हो उठे और अंत में मदद के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जा पहुंचे. तब विष्णु जी बोले, तीनों लोकों में रह रही कोई भी स्त्री इतनी शक्तिशाली नहीं है कि वो महिषासुर का वध कर सके. हम सभी को आदि कारण भगवती महाशक्ति की आराधना कर अपनी सम्मिलित शक्तियों से उनकी रचना करनी होगी.
ब्रह्मा, विष्णु और महेश समेत सभी देवताओं ने नेत्र बंद किए और उस शक्ति स्वरूपा देवी की रचना के लिए प्रार्थना करने लगे. सभी देवताओं के शरीर से आकाश में एक दिव्य तेज प्रकट हुआ. यह तेज इतना चमकीला और प्रकाशमान था कि स्वयं देवता भी अपनी आंखें खोलकर उसे देख नहीं पा रहे थे. उस शक्ति पुंज से देवताओं ने आदि शक्ति की रचना की. भगवान शिव ने चेहरा बनाया, भगवान विष्णु ने उन्हें अपनी भुजाएं दीं, श्री ब्रहृमा ने अपने पैर दिए, क्षीर सागर ने लाल साड़ी और हीरों हार दिया. देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने उन्हें कर्णफूल, चूड़िया और अन्य जवाहारात दिए. इस तरह सभी देवताओं ने उन्हें कोई न कोई आभूषण दिया.
फिर भगवान विष्णु ने सभी देवताओं से कहा कि अब वे आदि शक्ति को अस्त्र-शस्त्र प्रदान करें. सबसे पहले श्री विष्णु ने उन्हें अपना सुदर्शन चक्र दिया. इसके बाद महादेव ने उन्हें त्रिशूल तो ब्रह्माजी ने पवित्र गंगाजल से भरा कमंडल प्रदान किया. वरुण देव ने उन्हें हमेशा पल्लवित रहने वाला कमल दल और शंख दिया. अग्नि देव ने उन्हें सदाग्नि नाम का हथियार दिया जो अपने एक ही प्रहार से हजारों दुश्मनों का सर्वनाश कर सकता था. धनुष व कभी न खत्म होने वाले बाणों से भरे हुए दो तरकश पवन देव ने अर्पित किए. इंद्र देव ने उन्हें वज्र के समान ही अत्यंत शक्तिशाली वज्र सौंपा. इसी के साथ इंद्र ने मां को अपने ऐरावत हाथी के गले से उतार कर एक घंटा भी दिया. विश्वकर्मा ने उन्हें फरसा भेंट किया तो काल ने उन्हें तलवार-ढाल से सुशोभित किया. यमराज ने अपने दंड से कालदंड भेंट किया. इस तरह सभी देवताओं ने एक-एक कर मां आदि शक्ति को अपने शक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र भेंट कर दिए.
अंत में पर्वत राज हिमालय ने उन्हें सवारी करने के लिए सिंह भेंट किया. इसके बाद मां को महादेवी या दुर्गा नाम दिया गया. मां दुर्गा के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहा गया है,
ॐ अक्षस्त्रक्परशुं गदेशुकुलिशं पद्मं धनुषकुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तै: प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोज स्थितां।।
आदि शक्ति ने सभी देवताओं को महिषासुर के वध का आश्वासन दिया. फिर देवी मां अपने सिंह पर आरूढ़ होकर अमरावती यानी इंद्र लोक पहुंची जहां अत्याचारी महिषासुर भोग-विलास में डूबा हुआ था.
अमरावती में मां के आगमन की ऐसी धमकी उठी कि पहाड़ थर्रा गए और समुद्र में भीषण लहरें उठने लगीं. इस धमक से भोग-विलास में डूबे महिषासुर की तंद्रा भंग हुई और उसने अपने सैनिकों को इस हलचल का पता लगाने के लिए भेजा.
महिषासुर को जब पता चला कि एक स्त्री उसे ललकारने आई है तो वह अहंकारी और मूर्ख राक्षस अट्टाहस करने लगा. अपनी ताकत के मद में चूर महिषासुर ने अपने दैत्यों को भेजकर देवी मां से विवाह की इच्छा जताई. तब मां आदि शक्ति ने महिषासुर को एक और मौका देते हुए संदेश भिजवाया कि वो कोई साधारण स्त्री नहीं बल्कि महादेव की अर्धांगिनी दुर्गा हैं. और जितना जल्दी हो सके वो देवलोक छोड़कर पाताल में चला जाए.
देवी के इस संदेश से महिषासुर भड़क उठा और उनसे लड़ने के लिए आतुर हो उठा. लेकिन महिषासुर की तरह ही उसके दैत्य भी अज्ञानी थे. उन्होंने अपने राजा से कहा कि उस तुच्छ स्त्री से निपटने के लिए हम ही काफी हैं और आपको चिंतित होने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है.
ऐसा कहकर दैत्य मां को ललकारने पहुंच गए. लेकिन देवी मां ने पल भर में ही उनका समूल नाश कर दिया. महिषासुर को जब यह बात पता चली तो वह क्रोधित हो उठा, लेकिन उसने मां को रिझाने के लिए सुंदर पुरुष का रूप धारण किया. फिर वह आदि शक्ति के पास जाकर कहने लगा कि देवी आप अपने अस्त्र-शस्त्र फेंक दें और मुझसे विवाह कर अमरावती की रानी बन जाएं.
देवी ने उसके आग्रह को तुरंत ठुकरा दिया. अपनी उपेक्षा से महिषासुर क्रोधित हो उठा और उसने आदि शक्ति पर हमला बोल दिया. लेकिन दुर्गा मां ने उससे युद्ध करने के लिए तुरंत विशाल सेना खड़ी कर दी. महिषासुर ने देवी को हराने के लिए हर संभव कोशिश की. वह भेष बदल-बदल कर मां के सामने आ खड़ा होता. लेकिन मां ने उसके हर रूप को पहचानकर उस पर वार किया और उसे बुरी तरह घायल कर दिया.
इस तरह मां दुर्गा और महिषासुर के बीच पूरे नौ दिनों तक युद्ध चलता रहा. युद्ध के दौरान महिषासुर ने विशाल भैंसे का रूप धारण कर लिया, लेकिन आखिरकार नौवें दिन मां ने भगवान विष्णु के चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. इस तरह मां ने अत्याचारी महिषासुर के आतंक से समस्त देवों और भू-लोक वासियों को छुटकारा दिलाया.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तभी से शक्ति का महापर्व नवरात्र हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. ये नौ रातें बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं. महिषासुर के वध के कारण ही मां दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है.
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