सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को चुनाव आयुक्त के रूप में सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों की नियुक्ति नहीं करनी चाहिए. जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि किसी सरकारी अधिकारी को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार सौंपना संविधान का मखौल उड़ाना है. पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव आयोग (EC) की स्वतंत्रता से समझौता कदापि स्वीकार्य नहीं है, और केवल स्वतंत्र व्यक्ति ही चुनाव आयुक्त होने चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह सही नहीं है कि सरकारी सेवा में रहते हुए किसी सरकारी कर्मचारी को गोवा में चुनाव आयोग का प्रभार दिया गया.
कोर्ट ने कहा, "चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से लोकतंत्र में कोई समझौता नहीं किया जा सकता है."
इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में गोवा चुनाव आयोग को 10 दिनों के भीतर पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी करने और 30 अप्रैल तक चुनाव प्रक्रिया पूरी करने का आदेश भी दिया.
गौरतलब है कि गोवा सरकार ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसने कानून के अनुसार महिलाओं के लिए वॉर्ड आरक्षित न करने के लिए राज्य के पांच नगरपालिकाओं के चुनावों को रद्द कर दिया था.
गोवा सरकार ने राज्य में नगर परिषद चुनाव कराने के लिए अपने कानून सचिव को राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उद्देश्य चुनाव आयोग की स्वतंत्रता की रक्षा करना है.
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