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मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-मस्जिद विवाद को फिर ज़िंदा करने की कोशिश नाकाम

Suresh Kumar

नई दिल्‍ली 01 Oct, 2020 12:30 am

मथुरा की एक ज़िला अदालत ने कृष्ण जन्मभूमि के पास स्थित ईदगाह मस्जिद को हटाने की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी है. अदालत ने इस संबंध में याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि, 'पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991 के मुताबिक़, जो धार्मिक स्थल 1947 में जैसे थे उन्हें वैसे ही रहे दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस क़ानून से केवल राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को अपवाद के तौर पर छूट दी थी. इसलिए अब मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान को लेकर दाख़िल की गई ये याचिका ख़ारिज की जाती है.'

ये याचिका कुछ लोगों ने मिल कर दाख़िल की थी. याचिकाकर्ताओं के वक़ील हरिशंकर जैन ने कहा कि वो निचली अदालत के इस फ़ैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे. याचिकाकर्ताओं ने पिछले हफ़्ते ही कटरा केशवदेव मंदिर के 13.37 एकड़ के परिसर से ईदगाह मस्जिद को कहीं और स्थानांतरित करने की अपील कोर्ट से की थी. ये मस्जिद 17वीं शताब्दी की है. याचिका दाख़िल करने वालों में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की दोस्त के रूप में रंजना अग्निहोत्री और अन्य सात लोग शामिल थे. इन लोगों ने मथुरा के सीनियर डिवीज़न जज की अदालत में अर्ज़ी डाली थी कि इससे पहले मथुरा की अदालत ने श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान और शाही ईदगाह मैनेजमेंट कमेटी के बीच मस्जिद को लेकर हुए समझौते पर मुहर लगाई थी.

याचिकाकर्ताओं ने अपनी अर्ज़ी में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड, शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को प्रतिवादी बनाया था. याचिका कर्ताओं ने कोर्ट से गुज़ारिश की थी कि वो मस्जिद की प्रबंधन समिति को ये आदेश दे कि वो कटरा केशवदेव मंदिर परिसर में किए गए अतिक्रमण को हटाए.

याचिका में कहा गया था कि मुगल बादशाह औरंगज़ेब के दौर में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर ही ईदगाह मस्जिद बना दी गई थी. इस मसले को लेकर कोर्ट में दशकों तक मामला चला था और 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच समझौता कराया गया था. समझौते के तहत तय किया गया था कि जितने हिस्से में ईदगाह बनी है वो वहीं बने रहेगी. वर्ष  1940 में जब पंडित मदनमोहन मालवीय श्रीकृष्ण जन्मभूमि आए थे. तो उन्होंने जन्म स्थान की दुर्दशा पर अफ़सोस ज़ाहिर किया था. 1943 में मदन मोहन मालवीय की इच्छा पर उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला ने कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया. 1951 में तय किया गया कि यहां दोबारा कृष्ण मंदिर बनवाया जाएगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा. इसी उद्देश्य से ट्रस्ट का गठन किया गया. इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नाम की संस्था की स्थापना की गई. कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक़ हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरु कर दीं.

साल 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया गया लेकिन 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और मुस्लिम पक्ष के बीच समझौता कर लिया गया. मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ दी थी. लेकिन, इस याचिका में दावा किया गया था कि आज जिस जगह पर ईदगाह मस्जिद बनी है वो श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है. 

इससे पहले मथुरा के सिविल जज की अदालत में एक और मामला दाखिल किया गया था, जिसे श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान और ट्रस्ट के बीच समझौते के आधार पर बंद कर दिया गया था. मथुरा की अदालत ने इस मामले में 20 जुलाई 1973 को भी एक फ़ैसला देकर विवाद खड़ा करने की कोशिशों को नाकाम कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अयोध्या मामले पर जो फ़ैसला सुनाया था, उसमें भी ये स्पष्ट किया गया था कि 1991 के प्लेसेज़ ऑफ़ वरशिप एक्ट में सिर्फ़ अयोध्या विवाद को अपवाद के तौर पर छूट दी जा रही है. इसके बाद किसी और जगह को लेकर धार्मिक विवाद नहीं उठाया जाना चाहिए.

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