…..अपने सबसे मुश्किल दौर से गुज़रती कांग्रेस अब भी गांधी शरणम गच्छामि पर ही भरोसा करती है. पार्टी ने एक बार फिर सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बने रहने पर मुहर लगा कर ये साबित कर दिया. जिन 23 नेताओं ने पार्टी नेतृत्व में बदलाव के लिए चिट्ठी लिखी थी, उन्हें CWC की बैठक में जमकर फटकार लगी. यही नहीं इसे पार्टी को कमज़ोर करने की साज़िश तक करार दे दिया गया. राहुल गांधी ने ये चिट्ठी लिखने वालों पर ये इल्ज़ाम दे मारा कि उनकी तो बीजेपी से साठ-गांठ है. हालांकि, दिन भर के ट्विटस्ट ऐंड टर्न के बाद, कांग्रेस में बदलाव की गाड़ी दोबारा गांधी परिवार रूपी प्लेटफॉर्म पर जा खड़ी हुई.
ये कांग्रेस की वही कहानी है...बेताल लौट कर उसी डाल पर आ जाता है. कांग्रेस की ताक़तवर वर्किंग कमेटी की मीटिंग के बाद मीडिया में जो तस्वीर आई, उसे मामूली मत समझिए. पार्टी से ज्यादा परिवार के लॉयलिस्ट हैं. पार्टी और विचारधारा के लिए नहीं. गांधी परिवार के लिए खून बहा सकते हैं. खून से खत लिखते हैं. और ख़त लिखने वालों को सबक़ सिखा सकते हैं.
2013 में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया. कांग्रेस ने कहानी गांधी परिवार को बचाने की रच दी. अब सवाल ये है कि कांग्रेस की मुश्किल लॉयलिस्ट हैं या नए कांग्रेसी? कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े ने यूपीए को खत्म कर दिया. अब पार्टी के खत्म होने का खतरा है. अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी बीमार बतायी जाती हैं. मगर, कांग्रेस पार्टी को सोनिया गांधी किसी ख़ानदान की पुश्तैनी पूंजी की तरह बचा रहीं थीं. हालात ऐसे हैं कि दो बातों में फ़र्क़ करना मुश्किल है. गांधी-नेहरू परिवार कांग्रेस है? या कांग्रेस, नेहरू-गांधी परिवार? पार्टी किस तरह का संघर्ष कर रही है...समझना मुश्किल है. एक संकट से पार पाती नहीं, और दूसरा सिर उठा लेता है. राजस्थान का राग ख़त्म हुए चंद रोज़ न बीते थे, और ये चिट्ठी का चक्कर शुरू हो गया. कांग्रेस में गांधी परिवार के प्रति वफ़ादारी में जो दरार पड़ रही है, उसमें अब प्रियंका वाड्रा भी जगह बनाने की कोशिश कर रही हैं..मगर सबसे चौंकाने वाली है वो चिठ्ठी जो पार्टी के 23 सीनियर नेताओं ने लिखी....
चिठ्ठी में जिन नुक्तों का रोडमैप था जो सीनियर कांग्रेस नेताओं ने सुझाया था वो भी गांधी परिवार की अथॉरिटी को चैलेंज करने वाला था.
मसलन, ये ख़त लिखने वाले कांग्रेसी नेताओं ने मांग की कि पार्टी में, फुल टाइम अध्यक्ष हो जो हर वक्त कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के लिए मौजूद हो. पार्टी के अंदर चुनाव कराने वाली एक स्वतंत्र और स्वायत्त अथॉरिटी हो. पार्टी संविधान के मुताबिक कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव हो. ब्लाक से लेकर प्रदेश तक AICC का संगठन स्तर का चुनाव हो. नरेंद्र मोदी जैसे कद्दावर सियासी योद्धा से मुकाबले के लिए समान विचारधारा वाली पार्टियों से गठबंधन बने.
इस चिट्ठी को कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल माना जाए या कांग्रेस नेतृत्व का ही बवाल? सियासत को समझने वाले जानते हैं कि गांधी परिवार से मुक्त होकर कांग्रेस कुछ नहीं है.
हमे देश की आवाज़ बनकर देश के लोगो के लिए लड़ना है - श्रीमती सोनिया गाँधी जी
— Delhi Congress (@INCDelhi) August 24, 2020
"काँग्रेस परिवार एकजुट" pic.twitter.com/wqo4Kl5vpk
इस हक़ीक़त ने ही पार्टी के चिर युवा वली अहद, या क्राउन प्रिंस राहुल गांधी को ये ताक़त दी कि वो चिट्ठी लिखने वालों की चिंदी चिंदी उड़ा दें.
चिठ्ठी पर राहुल गांधी ने जिस तरह का पलटवार किया, वही अपने आप में पूरी कहानी है.
सबसे पहले तो राहुल गांधी ने बेहद तल्ख़ लहजे में चिट्ठी की टाइमिंग पर सवाल खड़े किए. उन्होंने लेटर लिखने वालों से पूछा कि जब सोनिया गांधी अस्पताल में भर्ती थीं तो ठीक उसी समय ही पार्टी नेतृत्व को लेकर पत्र क्यों भेजा गया? पार्टी लीडरशिप के बारे में सोनिया गांधी को पत्र उस समय लिखा गया था, जब राजस्थान में कांग्रेस सरकार संकट का सामना कर रही थी. राहुल ने कहा कि चिट्टी में जो लिखा गया था उस पर चर्चा करने की सही जगह CWC है, मीडिया नहीं. तो ये लेटर मीडिया में कैसे लीक हो गया. राहुल ने ये ख़त लिखने वालों पर सीधे आरोप लगा दिया कि वो बीजेपी के साथ मिले हुए हैं.
गांधी ख़ानदान के स्थायी वफ़ादारों, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने भी चिट्ठी लिखे जाने की आलोचना की. अहमद पटेल ने तो ये पूछ लिया कि आख़िर सीनियर नेताओं से ऐसी ग़लती कैसे हो गई?
अब ज़रा इस कहानी के बैकग्राउंड पर गौर करिए. कांग्रेस नेतृत्व को लेकर नई दिल्ली में सोमवार को कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक शुरू हुई. बैठक के शुरू होते ही कांग्रेस की कलह सतह पर आ गई। मगर क्या कलह सचमुच कलह थी. अगर गौर से देखें तो जिन 23 नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए चिट्ठी लिखी थी, उनमें से ज्यादातर गांधी परिवार के वफ़ादार चेहरे हैं. इसलिए इस बगावत को बगावत मानने की बजाए सियासत के जानकारों ने गांधी परिवार को मजबूत करने की योजना की तरह ही देखा
कांग्रेस के भविष्य का रोडमैप बताने वाली इस चिट्ठी पर कपिल सिब्बल, शशि थरूर, ग़ुलाम नबी आज़ाद, पृथ्वीराज चव्हाण, मुकुल वासनिक, विवेक तनखा और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के हस्ताक्षर थे. इस पर साइन करने वालों में मिलिंद देवड़ा, रेणुका चौधरी, राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली और संदीप दीक्षित जैसे नेता भी शामिल थे.
इनमें से कोई नेता ऐसा नहीं है जिसका गांधी परिवार से कोई विरोध हो। बल्कि इनमें से ज्यादातर को कांग्रेस की फ़र्स्ट फैमिली का क़रीबी ही माना जाता है. सोनिया गांधी ने भी अंत में यही कहा सब परिवार के ही लोग हैं.
कांग्रेस के भीतर डेमोक्रेसी के इस ड्रामे में ट्विस्ट तब आया जब कपिल सिब्बल ने राहुल गांधी के बयान पर जवाबी ट्वीट कर दिया. सिब्बल ने लिखा कि राहुल गांधी कहते हैं कि हमारी बीजेपी के साथ मिली भगत है. राजस्थान हाई कोर्ट में कांग्रेस का सफलता पूर्वक बचाव किया. मणिपुर में बीजेपी की सरकार गिराने के लिए पार्टी का बचाव. पिछले 30 साल में कभी भी किसी भी मुद्दे पर बीजेपी के पक्ष में बयान नहीं दिया. फिर भी हमारी बीजेपी के साथ मिली भगत है!
सिब्बल के इस ट्वीट पर बवाल मचना ही था जो मचा भी. मगर CWC की बैठक में गुलाम नबी आजा़द तो बिफर ही पड़े, उन्होने पार्टी के तमाम पदों से इस्तीफे की पेशकश कर दी। आजा़द कश्मीर जैसे सेंसिटिव राज्य से आते हैं, मगर उनकी इस रूख के पीछे लोगों ने राज्यसभा में दोबारा वापसी की बेचैनी देखी. उनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने वाला है.
ग़ुलाम नबी आज़ाद हमेशा से गांधी परिवार के वफ़ादार माने जाते रहे हैं. वो संजय गांधी की चौकड़ी के मेम्बर रहे और बाद में राजीव गांधी के भी वफ़ादार बन गए. आज़ाद इस समय राज्यसभा में पार्टी के नेता हैं, मगर अब उनका कार्यकाल खत्म होने वाला है. जब सवाल ये उठा कि जिन नेताओं ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ़ खत लिखा, उनकी बीजेपी के साथ साठ-गांठ है, तो आजा़द ने CWC की मीटिंग में ही सारे पदों से इस्तीफे का पत्ता चल दिया. तो, कांग्रेस के बचे खुचे मुख्यमंत्रियों ने सोनिया की अध्यक्षता बरकरार रखने पर अपनी मुहर लगा दी. ध्यान रखिए कि इनमें वो अशोक गहलोत भी शामिल हैं जिन्हें दरकिनार कर पार्टी ने सचिन पायलट को वापस पार्टी में जगह दी.
असल में कांग्रेस की मुश्किल अब दूसरी है. राहुल गांधी की सियासी हैसियत और क़ाबिलियत का एहसास पूरी पार्टी को हो चुका है. पार्टी के सीनियर लीडर इस सच को बखूबी समझ रहे हैं. मगर बोलना कोई नहीं चाहता. जो, पुराने सरवाइवर हैं, वो खामोश हैं. राहुल को मोदी के मुकाबले पार्टी के कार्यकर्ता भी कमजोर मानते हैं. बार बार की कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी ख़ुद को मोदी से मुक़ाबले के लायक़ नहीं साबित कर सके हैं. वो जब भी प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करते हैं, वो उल्टा पड़ता है. कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने जो चिठ्ठी लिखी उसका मकसद यही था. कपिल सिब्बल जैसे बड़े नेता का राहुल पर हमला ख़तरनाक था. जिसके बचाव में ख़ुद पार्टी के आला प्रवक्ता इसके बचाव में खुद रणदीप सुरजेवाला को मैदान में उतरना पड़ा.
कपिल सिब्बल के बोलने को बगावत की आवाज़ समझना भी गलत फहमी है. क्योंकि सियासत में जो दिखता है, वो होता नहीं. और जो होता है वो कहा नहीं जाता. ऐसे में, जब सिब्बल के ट्वीट पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सफ़ाई वाला ट्वीट लिखा, तो समझने वाले समझ गए कि साहब ये वर्किंग कमेटी की बैठक का असल मक़सद क्या है.
सुरजेवाला ने सिब्बल के बयान पर जो तर्क दिया उसे समझने की जरूरत है. ये सब पहले से स्क्रिप्टेड ड्रामे का हिस्सा भी हो सकता है. क्योंकि, सुरजेवाला का ट्वीट आते ही, कपिल सिब्बल ने तत्काल अपने ट्वीट को वापस लेने का ऐलान किया. सिब्बल के मुताबिक राहुल ने उनसे खुद बात की. बाद में जो बयान सामने आए उनसे साफ़ हो गया कि ये एक पहले से तय डायलॉग और स्टोरी लाइन थी, जिसे सिब्बल से लेकर गुलाम नबी आजा़द तक फॉलो कर रहे थे.
यहां गौर करने वाली बात ये है कि मोदी के सहारे पूरी कांग्रेस सर्वाइव कर रही है. कांग्रेस को लगता है कि वो मोदी का डर दिखा कर अपना वोट बैंक बढ़ा लेगी, मगर ऐसा हो पा रहा है, ये सवाल खुद कांग्रेस को अपने आप से करना होगा. खुद की डेमोक्रेसी का पता नहीं, मगर कांग्रेस पार्टी देश से एस्टैबलिशमेंट में डेमोक्रेसी का सवाल करने से पीछे नहीं हटती.
कांग्रेस का यही दोमुहांपन, उसके लिए घातक हो गया है.
ये हालिया ड्रामा भी, कांग्रेस के पाखंड को ही उजागर करता है. पार्टी पावर में आने को बेताब है. गांधी परिवार से भी निजात पाने की बात करती है. मगर, उसे सोनिया गांधी का इस्तीफ़ा भी मंज़ूर नहीं. क्योंकि, सच तो ये है कि गांधी परिवार के बग़ैर कांग्रेस कितने हिस्सों में बंट जाएगी कहना मुश्किल है. इसलिए, इतने दिनों की मशक़्क़त के बाद CWC की बैठक में जो हुआ वो इसी बात का सबूत है.
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