यदि भारत ने हिंसा को अपना धर्म स्वीकार कर लिया और यदि उस समय मैं जीवित रहा, तो मैं भारत में नहीं रहना चाहूंगा.
यह कहना था अहिंसा के प्रबल समर्थक, शांति के अग्रदूत और भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का. वो व्यक्ति जिनकी विचाराधाराओं से प्रभावित होकर पूरा विश्व आज के दिन विश्व अहिंसा दिवस मनाता है. आज हम उसी महान व्यक्ति महात्मा गाँधी की 151 वीं जयंती मना रहे हैं. गांधी जी ने कहा था कि मौन सबसे सशक्त भाषण है, धीरे धीरे दुनिया आपको सुनेगी. लेकिन क्या जिस तरह के भारत की कल्पना महात्मा गाँधी ने की थी, उस राह पर भारत आगे बढ़ रहा है? क्या अहिंसा के सिद्धांत पर चलने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपिता कहने वाला देश आज उनकी विचारधाराओ पर गहराई से मनन कर पा रहा है? क्या आज के परिवेश में बापू के विचारधारा लेख, आलेख निबंध भाषण में सिमटकर रह गए है?
स्त्री अधिकार और गांधी चिंतन
राज्य यूपी, जिला हाथरस, 19 साल की एक युवती के साथ दुष्कर्म किया जाता है. पीड़िता की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी जाती है, जीभ काट दी जाती है. अस्पताल में कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो जाती है. फिर बलरामपुर, आज़मगढ़, बुलंदशहर और भदोही में भी लड़कियों के साथ कथित तौर पर रेप के बाद निर्मम तरीक़े से हत्या की घटना सामने आती है. भारत में महिलाओं के साथ हो रही ये घटनाए बेहद ही आम है.
NCRB 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 4,05,861 मामले दर्ज किए गए और उत्तर प्रदेश में 59,853 ऐसी घटनाएं हुईं. वहीं साल 2018 से भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर में 7.3% की वृद्धि हुई है, देश में 2019 में हर दिन औसतन 87 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए. हर गुजरते साल के बाद बलात्कार के मामले में हो रही बढ़ोतरी ना सिर्फ हमारे देश को बल्कि गांधी जी के सिद्धांत, महिलाओं को लेकर उनकी विचारधारा को भी शर्मसार कर रहे हैं.
महात्मा गांधी के जीवन के कई पहलू रहे हैं. स्त्री के प्रति गांधी जी के जो विचार उस वक्त थे, उसे मौजूदा वक्त के हिसाब से 'फेमिनिस्ट' कहा जा सकता है. यंग इंडिया के 15 सितंबर 1921 के संस्करण में गांधी जी ने लिखा है, "आदमी जितनी बुराइयों के लिए ज़िम्मेदार है. उनमें सबसे घटिया नारी जाति का दुरुपयोग है. वह अबला नहीं, नारी है." उन्होंने आगे लिखा था, "स्त्री को चाहिए कि वह खुद को पुरुष के भोग की वस्तु मानना बंद कर दे. इसका इलाज पुरुषों के बजाय स्त्री के हाथ में ज्यादा है. उसे पुरुष की खातिर- जिसमें पति भी शामिल है, सजने से इनकार कर देना चाहिए. तभी वह पुरुष के साथ बराबर की साझीदार बनेगी."
सामान्यतया महात्मा गांधी को धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक मामलों में परंपरावादी तथा अनुदार माना जाता है. लेकिन जहां तक हिन्दू समाज में महिलाओं की स्थिति का सवाल है, गांधी जी ने महिलाओ के प्रति जो दृष्टि उस वक्त विकसित की, बल्कि उसे अपने आचरण में भी उतारा, वह 21वीं शताब्दी के इस दौर में भी काफी क्रांतिकारी लग सकती है. कभी-कभी यह बात बहुत अचरज-भरी लगती है कि अनेक सामाजिक मामलों में परंपरावादी रीति-नीति का समर्थन करने वाले गांधी जी महिलाओं से जुडे प्रश्नों पर इतनी गहरी उदारतावादी और समतावादी दृष्टि कैसे अपना पाए? लेकिन उनका आचरण, उनके लेख, भाषण, पत्र आदि इस तथ्य के जीवंत प्रमाण हैं कि वे नारी को पुरुष से किसी भी बात में कम नहीं आंकते थे और सहिष्णुता जैसे मामलों में तो औरतों को पुरुषों से अधिक समर्थ और सक्षम मानते थे.
सुप्रीम कोर्ट ने अब जाकर 158 साल पुराने सेक्शन 497 को खत्म करके स्त्री और पुरुष को बराबरी का हक दिया है. लेकिन गांधी जी इस बात के पैरोकार उस वक्त रहे हैं जब कोई इस बारे में सोचने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था. ये कहना सही होगा कि विजनरी गांधी जी के अलावा शायद ही किसी ने भारत को इतने बेहतर ढंग से समझा होगा.
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