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Ganesh Chaturthi 2020: जानिए गणेश चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और जन्‍म कथा

PujaPandit Desk

21 Aug, 2020 05:52 pm

Ganesh Chaturthi 2020: विघ्‍नहर्ता, मंगल मूर्ति और रिद्धि-सिद्धी के दाता भगवान गणेश (Lord Ganesha) के जन्‍मदिन को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के रूप में मनाया जाता है. हिन्‍दू धर्म में श्री गणेश प्रथम पूज्‍य हैं. प्रथम पूज्‍य यानी कि सभी देवताओं में सबसे पहले गणेश की पूजा का विधान है. उनकी पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य शुरू ही नहीं हो सकता. माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र गणेश का जन्‍मोत्‍सव पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है. गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बप्‍पा की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं और पूरे मान-सम्‍मान, प्रेम भाव और निश्‍छल श्रद्धा से उनकी सेवा करते हैं. फिर 10 दिन बाद यानी कि अनंत चतुर्दशी के दिन बेहद भावुक होकर उन्‍हें विदा करते हैं. विदाई गणेश विसर्जन के रूप में संपन्‍नहोती है.

गणेश चतुर्थी कब मनाई जाती है?
ऐसी मान्‍यता है कि भाद्रपद महीने की शुक्‍ल पक्ष चतुर्थी को भगवान श्री गणेश का जन्‍म हुआ था. हर साल अगस्‍त या सितंबर के महीने में गणेश चतुर्थी आती है. इस बार गणेश चतुर्थी 22 अगस्‍त को है, जबकि अनंत चतुर्दशी यानी कि 1 सितंबर को विसर्जन किया जाएगा.

गणेश चतुर्थी की तिथि और शुभ मुहूर्त
गणेश चतुर्थी की तिथि: 22 अगस्‍त 2020
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 21 अगस्‍त 2020 को रात 11 बजकर 2 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्‍त: 22 अगस्‍त 2020 को शाम 7 बजकर 57 मिनट तक

गणेश स्‍थापना और पूजा मुहूर्त
गणेश जी की पूजा मध्‍याह्न में करने का विधान है. दरअसल, हिन्‍दू पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार भगवान गणपति का जन्‍म मध्‍याह्न काल यानी दिन के समय हुआ था. गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्‍थापना और पूजा मध्‍याह्न में ही की जाती है.

गणेश पूजा का मध्‍याह्न मुहूर्त
22 अगस्‍त 2020 को सुबह 11 बजकर 6 मिनट से 1 बजकर 42 मिनट तक
कुल अवधि: 2 घंटे 36 मिनट

हिन्‍दू पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन यानी कि चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए. कहते हैं कि ऐसा करने से व्‍यक्ति के ऊपर झूठा दोष लगता है.  

गणेश चतुर्थी के दिन इस दौरान न करें चंद्र दर्शन: सुबह 9 बजकर 7 मिनट से रात 9 बजकर 26 मिनट तक
कुल अवधि: 12 घंटे 19 मिनट

इसे लेकर एक पौराणिक कथा भी है, जिसके अनुसार एक बार चतुर्थी के चंद्रमा के दर्शन करने से भगवान कृष्‍ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप लगा था. यही सिद्धिविनायक व्रत करने के बाद ही वो दोष मुक्‍त हो पाए थे. मान्‍यता है कि अगर भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो मिथ्‍या दोष से बचाव के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए.

सिंह: प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हत: ।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकर: ।। 

गणेश चतुर्थी की पूजा विधि
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चतुर्थी के दिन सुबह-सवेरे उठकर नित्‍य कर्म से निवृत होकर स्‍नान करें और स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें.
- मध्‍याह्न के समय घर के मंदिर या स्‍वच्‍छ स्‍थान पर गणेश की प्रतिमा रखें. आप ये प्रतिमा अपने हाथों से भी बना सकते हैं, या बाजार से खरीदकर भी ला सकते हैं.
- अब दाहिने हाथ में पानी, अक्षत और फूल लेकर व्रत का संकल्‍प लें.
- पानी, अक्षत और फूल को गणेश जी की प्रतिमा के आगे छोड़ दें.
- अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए श्री गणेश का ध्‍यान करें:

 गजाननं भूतगणादि-सेवितं कपित्थ-जम्बूफल चारूभक्षणम्।
 उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्‍नेश्‍वर-पादपड्कजम्।।

अर्थात् हाथी के मुख वाले, भूत-गणों के द्वारा सेवित, कैथ एवं जामुन का चाव से भक्षण करने वाले, शोक यानी दुःख या कष्ट के नाशकर्ता, उमा-पुत्र का मैं नमन करता हूं, विघ्नों के नियंता श्री गणेश के चरण-कमलों के प्रति मेरा प्रणमन.

- अब गणेश जी को पुष्‍प अर्पित करें.
- इसके बाद ॐ गं गणपतये नमः।। लं पृथिव्यात्मकं गन्धं श्रीवल्लभमहागणपतये समर्पयामि नमः मंत्र का उच्‍चारण करते हुए भगवान गणेश को चंदन और अक्षत से तिलक लगाएं.
- अब ॐ गं गणपतये नमः।। हं आकाशात्मकं पुष्पं श्रीवल्लभमहागणपतये समर्पयामि नमः। मंत्र का उच्‍चारण करते हुए गणेश प्रतिमा को पुष्‍प अर्पित करें.
- अब ॐ गं गणपतये नमः।। यं वाय्वात्मकं धूपं श्रीवल्लभमहागणपतये घ्रापयामि नमः मंत्र का उच्‍चारण करते हुए सुगंधित धूप से गणेश जी की आरती उतारें.
-इसके बाद ॐ गं गणपतये नमः।। रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीवल्लभमहागणपतये दर्शयामि नमः मंत्र का उच्‍चारण करते हुए दीपक से आरती उतारें.
- फिर ॐ गं गणपतये नमः।। वं अमृतात्मकं नैवेद्यं श्रीवल्लभमहागणपतये निवेदयामि नमः मंत्र का उच्‍चारण करते हुए गणेश जी को भोग अर्पित करें. भगवान गणेश को मोदक अति प्रिय हैं. संभव हों तो उन्‍हें मोदक का भोग लगाएं. मोदक का भोग लगाने से गणपति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं.
- अब ॐ गं गणपतये नमः।। सं सर्वात्मकं ताम्बूलं श्रीवल्लभमहागणपतये समर्पयामि नमः मंत्र का उच्‍चारण करते हुए श्री गणेश को पुष्‍प अर्पित करें और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें.
- इसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर विदा करें.

श्री गणेश की जन्‍मकथा
भगवान श्री गणेश के जन्‍म को लेकर तीन कथाएं प्रचलित हैं.

एक कथा के मुताबिक देवादि देव महादेव ने गणेशजी को पचंतत्वों से बनाया. जब भगवान शिव गणेश जी को बना रहे थे तो उन्होंने विशिष्ट और अत्यंत रुपवान रूप पाया. ये खबर जब देवताओं को मिली तो उन्‍हें डर सताने लगा कि कहीं ये सबके आकर्षण का केंद्र ना बन जाए. इस डर को भगवान शिव ने भांप लिया. फिर क्‍या था उन्‍होंने गणेश के पेट को बड़ा कर दिया और मुख हाथी का लगा दिया.

वहीं, एक अन्‍य कथा के मुताबिक माता पार्वती ने एक बार अपने शरीर पर उबटन लगाया था. स्‍नान से पूर्व जब उन्‍होंने अपने शरीर से इस उबटन को निकालना शुरू किया तो उस मैल को उन्‍होंने पुतले का रूप दे दिया. फिर उन्होंने उस पुतले में प्राण डाल दिए. इस तरह गणेश का जन्‍म हुआ. माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिया कि तुम मेरे द्वार पर बैठ जाओ और उसकी रक्षा करो, किसी को भी अंदर नहीं आने देना.

कुछ देर बाद वहां शिवजी आए और उन्‍होंने माता पार्वती से मिलने की इच्‍छा जताई. लेकिन गणेश जी ने मना कर दिया. शिवजी गणेश जी के बारे में नहीं जानते थे. फिर क्‍या था दोनों में विवाद हो गया और युद्ध की स्थिति आ गई. क्रोध में आकर शिवजी ने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर काट डाला.

पार्वती जी ने जब ये दृश्‍य देखा तो वो भीषण रुदन करने लगीं. उन्होंने शिवजी से कहा कि आपने मेरे बेटा का सिर काट दिया. शिवजी ने पूछा कि ये तुम्हारा बेटा कैसे हो सकता है. इसके बाद पार्वती ने शिवजी को पूरी बात बताई और उन्‍हें गणेश को फिर से जीवित करने के लिए कहा. शिवजी के लाख मनाने पर भी पार्वतीजी नहीं मानीं. अंत में शिवजी ने पार्वती को मनाते हुए कहा कि ठीक है मैं इसमें प्राण डाल देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए. इस पर उन्होंने गरुड़ जी से कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना. गरुड़ जी भटकते रहे पर उन्हें ऐसी कोई मां नहीं मिली. आखिरकार एक हथिनी दिखाई दी. हथिनी का शरीर का प्रकार ऐसा होता हैं कि वह बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती है. गरुड़ जी उस शिशु हाथी का सिर ले आए. 
भगवान शिव ने उस सिर को बालक गणेश के शरीर से जोड़ दिया. उसमें प्राणों का संचार कर दिया. गणेश को तभी से गजानन कहा जाने लगा.

तीसरी कथा के अनुसार माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया. इस तप से प्रसन्न होकर स्वयं श्री गणेश ब्राह्मण का रूप धारण कर पहुंचे और उन्हें ये वरदान दिया कि मां आपको बिना गर्भ धारण किए ही दिव्य और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी. ऐसा कह कर वे अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक के रूप में आ गए. भगवान शिव और मां पार्वती ने उत्‍सव का आयोजन किया. इस उत्‍सव में देवी-देवता, सुर, गंधर्व और ऋषि-मुनि भी पधारे. भगवान शनि भी नवजात को आशीर्वाद देने पहुंचे. माता पार्वती ने उनसे बालक को देखने और आशीष देने आग्रह किया. शनि महाराज अपनी दृष्टि की वजह से बच्चे को देखने से बच रहे थे, लेकिन माता पार्वती बुरा मान गईं. उन्होंने शनिदेव से कहा कि आपको यह उत्सव नहीं भाया, बालक का आगमन भी पसंद नहीं आया. शनि देव सकुचा कर बालक को देखने पहुंचे, लेकिन जैसे ही शनि की किंचित सी दृष्टि बालक पर पड़ी, बालक का सिर आकाश में उड़ गया. माता पार्वती विकल हो गईं. चारों तरफ हाहाकार मच गया. गरुड़ जी को तुरंत सिर लाने को कहा गया. फिर क्‍या था गरुड़ जी हाथी का सिर लेकर आए. फिर भगवान शंकर ने बालक के शरीर से सिर जोड़ दिया और उसमें प्राण फूंक दिए. इस तरह भगवान गणेश पुन: जीवित हो उठे.

भगवान गणेश की जन्‍म कथा समाप्‍त हुई. 

आप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं. गणपति बप्‍पा आप सभी का कल्‍याण करें.

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