सरकार ने मंगलवार को कहा कि ऐसा कभी नहीं कहा गया है कि वह कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के खिलाफ देश की पूरी आबादी को वैक्सीन यानी कि टीका लगवाएगी. आपको बता दें कि भारत में अब तक 9,462,809 लोग कोविड-19 से संक्रमित हो चुके हैं, जबकि 137,621 लोगों की इस महमारी से मौत हो चुकी है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण (Rajesh Bhushan) के मुताबिक, "मैं यह साफ करना चाहता हूं कि सरकार ने ऐसा कभी नहीं कहा कि वह पूरे देश को कोरोना का टीका लगवाएगी. यह जरूरी है कि हम ऐसे वैज्ञानिक मुद्दों की चर्चा तथ्यात्मक जानकारी के आधार पर ही करें."
भूषण ने यह भी कहा कि विश्व के बड़े देशों में भारत में प्रति दस लाख लोगों पर मामले सबसे कम हैं. हमारे देश में 3.72 फीसदी की दर से प्रति 10 लाख 211 मामले हैं. वहीं अनेक ऐसे देश हैं जहां पर भारत से प्रति दस लाख लोगों पर आठ गुना तक ज़्यादा मामले हैं. यही नहीं भारत में कोरोना से होने वाली मौतें प्रति मिलियन दुनिया में सबसे कम है. भूषण ने कहा, "पिछले एक हफ्ते के डेटा से पता चलता है कि यूरोपीय देशों में मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन भारत में गिरावट देखी गई है."
स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि नवंबर में कोविड-19 संक्रमण के बाद ठीक होने की संख्या औसत मामलों से अधिक थी. उन्होंने कहा, "औसतन 43,152 कोविड -19 मामले थे जो नवंबर में हर दिन रिपोर्ट किए गए थे. इसकी तुलना में, हर रोज ठीक होने वालों की संख्या 47,159 थी."
इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि भारत में अब तक 14 करोड़ से अधिक कोविड-19 टेस्ट किए गए हैं और राष्ट्रीय सकारात्मकता दर 6.69 फीसदी है. भूषण ने कहा कि देश में 11 नवंबर को पॉजिटिविटी रेट 7.15% था और 1 दिसंबर को ये 6.69 फीसदी हो गया है.
जब भूषण से सीरम इंस्टीट्यूट (SII) की वैक्सीन Covishield पर लगे आरोपों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि किसी भी तरह की प्रतिकूल घटनाओं के बावजूद भारत में वैक्सीन की टाइमलाइन में कोई फर्क नहीं आएगा. आपको बता दें कि हाल ही में चेन्नई के एक वॉलियंटर ने सीरम इंस्टीट्यूट को लीगल नोटिस भेजा है, जिसमें कहा गया है कि वैक्सीन लगाने के बाद उसकी मेडिकल स्थिति खराब हो गई. इन आरोपों को नकारते हुए SII ने कहा है कि उसकी वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित और इम्यूनिटी देने वाली है. अब दोनों ही पार्टियों ने इस मुद्दे को लेकर लीगल नोटिस भेजा है.
भूषण के मुताबिक, ''जब क्लीनिकल ट्रायल शुरू होते हैं तो लोगों की सहमति से फॉर्म साइन कराया जाता है. यही प्रक्रिया दुनियाभर में है. अगर कोई ट्रायल में शामिल होने का फैसला लेता है तो इस फॉर्म में ट्रायल के संभावित उल्टे प्रभाव के बारे में बताया जाता है. उन्होंने आगे कहा कि दवाई या वैक्सीन का बुरा प्रभाव पड़ता है. क्लीनिकल ट्रायल अनेक जगहों पर होते हैं. हर साइट पर एक इंस्टिट्यूशन इथिक्स कमेटी होती है, जो कि सरकार या मैन्युफैक्चरर से स्वतंत्र होती है. किसी बुरे प्रभाव के बाद यह कमेटी उसका संज्ञान लेती है और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया को रिपोर्ट भेजती है. यह रेग्युलेटर की जिम्मेदारी है कि डेटा जुटा कर पता लगाए कि क्या इवेंट और इंटरवेंशन के बीच कोई लिंक है?"
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