GST परिषद की बैठक हंगामेदार हो सकती है. विपक्षी दल शासित राज्य जीएसटी लागू करने के कारण राजस्व में हुए नुकसान की भरपाई के लिये केंद्र पर वादे के अनुसार क्षतिपूर्ति देने को लेकर दबाव बना सकते हैं. सूत्रों के अनुसार जीएसटी परिषद की 41वीं बैठक वीडियो कांफ्रेन्सिंग के जरिये होगी. बैठक का एकमात्र एजेंडा-राज्यों के राजस्व में कमी की भरपाई है. बैठक में जिन विकल्पों पर विचार किया जा सकता है, उनमें बाजार से कर्ज, उपकर की दर में वृद्धि या क्षतिपूर्ति उपकर के दायरे में आने वाले वस्तुओं की संख्या में वृद्धि, शामिल हैं. सूत्रों ने कहा कि कपड़ा और जूता-चप्पल जैसे कुछ उत्पादों पर उल्टा शुल्क ढांचा यानी तैयार उत्पादों के मुकाबले कच्चे माल पर अधिक दर से टैक्स को ठीक करने पर भी चर्चा होने की संभावना है.
Finance Minister Smt. @nsitharaman will chair the 41st GST Council meeting via video conferencing at 11 AM in New Delhi today. The meeting will be attended by MOS Shri. @ianuragthakur besides Finance Ministers of States & UTs and Senior officers from Union Government & States. pic.twitter.com/HeqCaGwMbc
— Ministry of Finance (@FinMinIndia) August 27, 2020
संभावना है कि बैठक में कई राज्य सरकार की तरफ से केंद्र पर दवाब बनाया जा सकता है. बताते चले कि पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर कहा है कि राज्यों को जीएसटी राजस्व संग्रह में कमी को पूरा करने के लिये बाजार से कर्ज लेने के लिये नहीं कहा जाना चाहिए. मित्रा ने मंगलवार को सीतारमण को लिखे पत्र में कहा, ‘‘केंद्र को उन उपकर से राज्यों को क्षतिपूर्ति दी जानी चहिए जो वह संग्रह करता है और इसका बंटवारा राज्यों को नहीं होता. जिस फार्मूले पर सहमति बनी है, उसके तहत अगर राजस्व में कोई कमी होती है, यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह राज्यों को पूर्ण रूप से क्षतिपूर्ति राशि देने के लिये संसाधन जुटाये.’’
सचिवालय स्थित कार्यालय कक्ष में आगामी GST कॉउन्सिल की बैठक से संबंधित समीक्षा बैठक करते हुए। pic.twitter.com/L4jTpXTD03
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) August 26, 2020
वहीं बिहार के वित्त मंत्री सुशील मोदी ने केंद्र सरकार का बचाव करते हुए कहा है कि जीएसटी व्यवस्था के चलते राज्यों के राजस्व की कमी की प्रतिपूर्ति के लिए मुआवजा देना केंद्र सरकार की नैतिक बाध्यता है. लेकिन यह सही है कि केंद्र सरकार इसके लिए कानूनी तौर पर बाध्य नहीं है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार या तो बाजार धन उठा सकती है या राज्यों की ऋण लेने पर गारंटर बन सकती है.
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