Holi 2021: रंगों का त्योहार होली (Holi) न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह हिन्दुओं के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक हैं. असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होली पर्व मुख्य रूप से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है. यही नहीं आपसी भाईचारे, सामाजिक सद्भाव और एकता कायम करने में इस पर्व का विशेष योगदान है. इस दिन लोग रंजिश और मतभेद भूलकर प्यार के रंग में रंग जाते हैं. तभी तो कहते हैं कि होली एक ऐसा त्योहार है जिसमें दुश्मन भी गिले-शिकवे भूलकर गले मिल जाते हैं.
होली कब मनाई जाती है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन यानी कि फागुन महीने की पूर्णिमा तिथि को होली मनाई जाती है. रंगों वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. इस बार होलिका दहन 28 मार्च, जबकि रंगों वाली होली 29 मार्च को है.
होलिका दहन की तिथि और शुभ मुहूर्त
होलिका दहन की तिथि: 28 मार्च 2021
होलिका दहन का मुहूर्त: शाम 6 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक
कुल अवधि: 2 घंटे 20 मिनट
रंगवाली होली की तिथि और शुभ मुहूर्त
रंगवाली होली की तिथि: 29 मार्च 2021
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 28 मार्च 2021 को सुबह 3 बजकर 27 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 29 मार्च 2021 को रात 12 बजकर 17 मिनट तक
कैसे मनाई जाती है होली?
देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से होली मनाई जाती है. कई जगहों पर तो बसंत ऋतु की शुरुआत के साथ ही होली का उत्सव शुरू हो जाता है. ब्रज क्षेत्र यानी मथुरा, वृंदावन, गोवर्द्धन, गोकुल, नंदगांव और बरसाना में मुख्य होली से कई दिन पहले से ही लोग होली के रंग में डूब जाते हैं. उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बसंत पंचमी के साथ ही होली का जश्न शुरू हो जाता है. वैसे होली मुख्य रूप से दो दिन का त्योहार है. फागुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के दिन एक पवित्र अग्नि जलाई जाती जिसमें सभी तरह की बुराई, अंहकार और नकारात्मकता को प्रतीक स्वरूप जलाया जाता है. होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है. इसके अगले दिन मुख्य होली खेली जाती है, जिसे रंगों वाली होली, धुलेंडी, धूलि और छल्लड़ी नामों से जाना जाता है. इस दिन लोग एक-दूसरे को गले लगाकर अबीर-गुलाल लगाते हैं. घर के छोटे अपने से बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. इस दिन होली के गीत गाए जाते हैं. इन गीतों में विशेष रूप से राधा-कृष्ण और गोपियों का जिक्र होता है. होली मौज-मस्ती और स्वादिष्ट व्यंजनों का पर्व है. इस दिन घर-घर में गुझिया और चाट-पकौड़ी बनाई जाती है. कुल मिलाकर बैर भाव को मिटाकर आपसी मेलजोल की सीख देने वाला यह पर्व सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करता है.
होलिका दहन कैसे किया जाता है?
होलिका दहन उचित मुहूर्त में ही किया जाता है. होलिका दहन फागुन मास की पूर्णिमा को किया जाता है. इस दिन मुख्य रूप से दो नियमों का ध्यान रखना चाहिए. पहले नियम के अनुसार होलिका दहन के समय भद्रा नहीं हो चाहिए. दूसरा नियम यह है कि होलिका दहन के समय पूर्णिमा तिथि अवश्य होनी चाहिए. होलिका दहन की पूजा विधि इस प्रकार है:
- होलिका दहन से कुछ दिन पहले ही सूखी लकड़िया इकट्ठा कर ली जाती हैं.
- लकड़ियों के ढेर को किसी खुले स्थान पर गट्ठर बनाकर रख लिया जाता है.
- शुभ मुहूर्त से कुछ देर पहले पूजन सामग्री के साथ होलिका दहन के स्थान पर पहुंच जाए.
- पूजा सामग्री इस प्रकार है: एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, धूप, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुझिया, अबीर-गुलाल, नारियल, सप्तधान की बालियां (गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर)
- अब पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं.
- शुभ मुहूर्त में कच्चे सूत को होलिका के चारों ओर तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना चाहिए.
- सबसे पहले लोटे से शुद्ध जल को हाथ में लेकर उसे होलिका में छिड़कें.
- इसके बाद एक-एक कर होलिका को अन्य पूजन सामग्री समर्पित करें.
- अब धूप से होलिका की आरती उतारें.
- पूजा के बाद होलिका को जल से अर्घ्य दें.
- जब होलिका दहन हो जाए तब उसमें कच्चे आम, नारियल, बताशे और सप्तधान अर्पित करें.
- होली की भस्म ठंडी होने पर उसे अपने साथ घर ले आएं और सुरक्षित रख दें.
होली की कथा
होली पर्व से जुड़ी अनेक कथाएं हैं. इनमें से एक कथा प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की है. विष्णु पुराण के अनुसार एक बार अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके. न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर. यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए.
ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा. वह खुद को भगवान मनाता था और चाहता था कि हर कोई भगवान की तरह उसकी पूजा करे. हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद नाम का पुत्र पैदा हुआ जो भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर उनकी कृपा-दृष्टि थी.
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे. प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू कर दी. इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी जिनसे वह प्रभावित नहीं हुआ. उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन वो प्रभु-कृपा से बचता रहा.
इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई की वह प्रहलाद के साथ चिता पर बैठेगी. होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता. वहीं, दूसरी तरह प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी नहीं था. जैसे ही आग जली, वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रहलाद के ऊपर चला गया. इसी तरह प्रहलाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई. यही कारण है होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है.
आप सभी को होली पर्व की शुभकामनाएं.
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