डिफेंस सेक्टर में भारत ने बहुत बड़ी छलांग लगाई है. रक्षा अनुसंधान विकास संगठन DRDO ने एक ऐसी तकनीक का सफल परीक्षण किया है, जिससे भारत अब आवाज़ से छह गुना अधिक रफ़्तार से उड़ने वाली मिसाइल बना सके. DRDO के वैज्ञानिकों ने आज हाइपरसोनिक तकनीक डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) टेस्ट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वैज्ञानिकों की इस ज़बरदस्त सफलता की जानकारी देश को दी.
DRDO ने ये टेस्ट ओडिशा के व्हीलर आइलैंड स्थित डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम लॉन्च कॉम्प्लेक्स से की. DRDO ने जिस लॉन्चर व्हीकल का टेस्ट किया है, वो हवा में आवाज़ से छह गुना ज़्यादा स्पीड से चल सकता है. DRDO के इस सफल टेस्ट के बाद भारत इस तकनीक से लैस दुनिया का चौथा देश बन गया है. इससे पहले केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ये तकनीक मौजूद है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया कि भारतीय वैज्ञानिकों ने ये व्हीकल पूरी तरह स्वदेश में बने स्क्रैमजेट प्रोपल्ज़न सिस्टम की मदद से तैयार किया है.
.@DRDO_India successfully demonstrates the #hypersonic air-breathing scramjet technology with the flight test of Hypersonic Technology Demonstration Vehicle.
— PIB India (@PIB_India) September 7, 2020
Read here: https://t.co/wMEn2OnN5p pic.twitter.com/sEulNN48vl
इस तकनीक के सफल परीक्षण के बाद अब भारत ऐसी हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलें बना सकेगा, जिसका पता दुश्मन के रडार भी नहीं लगा सकेंगे. रक्षा मंत्री ने कहा कि ये आत्मनिर्भर भारत मिशन की सफलता की एक बहुत लंबी छलांग है. और इसके लिए वैज्ञानिक बधाई के हक़दार हैं.
Successful flight test of Hypersonic Technology Demonstration Vehicle (HSTDV) from Dr. APJ Abdul Kalam Launch Complex at Wheeler Island off the cost of Odisha today. pic.twitter.com/7SstcyLQVo
— रक्षा मंत्री कार्यालय/ RMO India (@DefenceMinIndia) September 7, 2020
अगर आम आदमी की ज़ुबान में इस परीक्षण की अहमियत समझाएं, तो भारत अब बिना विदेशी मदद के हाइपरसोनिक मिसाइल बना सकेगा. DRDO अगले पांच साल में स्क्रैमजेट इंजन के साथ हाइपरसोनिक मिसाइल तैयार कर सकता है, जिसकी रफ्तार दो किलोमीटर प्रति सेकेंड से ज्यादा होगी.
इसके अलावा, नई तकनीक के सफल परीक्षण के बाद, भारत बहुत कम लागत में अंतरिक्ष में सैटेलाइट भी लॉन्च कर सकेगा.
HSTDV के सफल परीक्षण से भारत को अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस-2 तैयार करने में मदद मिलेगी. ब्रह्मोस मिसाइल रूस और भारत का ज्वाइंट प्रोजेक्ट है. फिलहाल DRDO और रूस की एजेंसी मिलकर ब्रह्मोस-2 को विकसित कर रहे हैं.
I congratulate to DRDO on this landmark achievement towards realising PM’s vision of Atmanirbhar Bharat. I spoke to the scientists associated with the project and congratulated them on this great achievement. India is proud of them.
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) September 7, 2020
DRDO द्वारा तैयार स्क्रैमजेट प्रोपल्ज़न सिस्टम से दुनिया के किसी भी कोने में दुश्मन के ठिकाने को घंटे भर के भीतर निशाना बनाने वाली मिसाइल तैयार की जा सकेंगी. नॉर्मल मिसाइलें बैलिस्टिक ट्रैजेक्टरी फॉलो करती हैं. जिन्हें रडार आसानी से ट्रैक कर सकते हैं. वहीं, हाइपरसोनिक वेपन सिस्टम किसी तय रास्ते पर नहीं चलता. जिससे दुश्मन को अगर मिसाइल लॉन्च होने का पता चल भी जाए, तो उसके रास्ते का अंदाज़ा नहीं लगेगा. और हाइपरसोनिक मिसाइलों की रफ़्तार इतनी तेज़ होती है कि अमेरिका और रूस के मौजूदा एयर डिफेंस सिस्टम की मिसाइलें, हाइपरसोनिक मिसाइल को निशाना बना कर उसे ध्वस्त नहीं कर सकतीं.
अभी अमेरिका, रूस और चीन के पास ही ऐसी मिसाइलें हैं. रूस और चीन, ऐसी मिसाइलों के ज़रिए एटमी हमले करने के लिए भी तैयारी कर रहे हैं. वहीं, अमेरिका हाइपरसोनिक मिसाइलों को ट्रैक करने की तकनीक विकसित करने में जुटा हुआ है.
Chairman DRDO congratulated all the Scientists, Researchers and other personnel related with #HSTDV mission for their resolute and unwavering efforts towards strengthening Nation’s defence capabilities.
— DRDO (@DRDO_India) September 7, 2020
भारत के स्पेस मिशन के लिहाज़ से देखें, तो ये कामयाबी और भी बड़ी है. भारत अब हाइपरसोनिक तकनीक की मदद से अपने सैटेलाइट सस्ते में लॉन्च कर सकेगा. अभी, इसके लिए देश को विदेशी एजेंसियों को काफ़ी पैसा देना पड़ता है. इस तकनीक के सफल परीक्षण के बाद भारत अब दूसरे देशों के सैटेलाइट भी सस्ते में लॉन्च करके, स्पेस मार्केट को कैप्चर कर सकेगा.
Leave Your Comment