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Indira Ekadashi 2020: जानिए इंदिरा एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्‍व

PujaPandit Desk

नई द‍िल्‍ली 11 Sep, 2020 08:27 pm

Indira Ekadashi 2020: हिन्‍दू धर्म में इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का विशेष महत्‍व है. इस एकादशी को पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार श्रद्धापूर्वक और नियमपूर्वक इस एकादशी (Ekadashi) का व्रत करने से व्‍यक्ति के सभी पापों का नाश होता है. यही नहीं इंदिरा एकादशी व्रत (Indira Ekadashi Vrat) के प्रताप से पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है. यानी इस एकादशी का व्रत करने से पितरों को मुक्ति मिलती है. गौरतलब है कि हिन्‍दू धर्म में हर महीने दो और पूरे साल में कुल 24 एकादशियां पड़ती हैं, लेकिन इस बार अधिकमास (Adhikmas) होने के कारण दो एकादशियां और जुड़ गईं हैं, जिनके कारण इनकी संख्‍या 26 हो गई है. आपको बता दें कि प्रत्‍येक तीसरे वर्ष अधिकमास लगता है. 

इंदिरा एकादशी कब है?
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार अश्विन माह की कृष्‍ण पक्ष एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं. आमतौर पर यह अगस्‍त या सितंबर के महीने में आती है. इस बार इंदिरा एकादशी 13 सितंबर को है.

इंदिरा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
इंदिरा एकादशी की तिथि: 13 सितंबर 2020
एकादशी तिथि आरंभ: 13 सितंबर 2020 को सुबह 4 बजकर 13 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्‍त: 14 सितंबर 2020 को सुबह 3 बजकर 16 मिनट तक
पारण का समय: 14 सितंबर 2020 को रात 1 बजकर 30 मिनट से रात 3 बजकर 59 मिनट तक

इंदिरा एकादशी का महत्‍व
अन्‍य एकादशियों की तरह ही इंदिरा एकादशी का भी बड़ा महात्‍म्‍य है. ज्ञात और अज्ञात पितरों की मुक्ति के लिए इससे बड़ा कोई दूसरा व्रत नहीं है. कहते हैं कि जो भी भक्‍त विधि पूर्वक सच्‍चे मन से इंदिरा एकादशी का व्रत करता है, उसके पितरों को मुक्ति मिलती है और वे विष्‍णु के परम धाम बैकुंड चले जाते हैं. यही नहीं इस व्रत के प्रभाव से भक्‍त के सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं और वह सुख-समृद्धि के साथ जीवन व्‍य‍तीत करते हुए अंत में स्‍वयं भी बैकुंठ लोक प्राप्‍त करता है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार इंदिरा एकादशी की व्रत कथा सुनने मात्र से ही भक्‍त को वाजपेय यज्ञ के बराबर फल मिलता है.

इंदिरा एकादशी की पूजा विधि
 अगर आप एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं तो दशमी यानी एक दिन पहले से ही व्रत के नियमों का पालन करें.
- दशमी से ही ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें.
- दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी में जाकर स्नान करें. 
- फिर श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें.
- एकादशी के दिन स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें.
- अब एक लोटे में पानी लेकर उसमें गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं और उसे अपने ऊपर छिड़कें.
- इसके बाद घर के मंदिर में आसन ग्रहण कर हाथ जोड़ें और मन ही मन व्रत का संकल्‍प लें.
- अब एक चौकी पर भगवान का आसन लगाएं और उस पर गेहूं की ढेरी रखें.
- एक कलश में जल भरकर उसे गेहूं की ढेरी के ऊपर रखें.
- कलश पर पान के पत्ते लगाकर नारियल रखें.
- अब श्रीहरि विष्‍णु की मूर्ति या फोटो में गंगाजल छिड़कें. 
- अब उन्‍हें वस्‍त्र अर्पित कर तिलक व अक्षत लगाएं. 
- अब श्री हरि विष्‍णु को फूलों की माला पहनाएं.
- फिर उन्‍हें फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें.
- इसके बाद शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करें. 
- पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूंघकर गाय को दें.
- अब ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें.
- योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएं और दक्षिणा दें.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय विधि-विधान से आरती उतारें और व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
- अब विष्‍णु जी को भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्‍यों में प्रसाद वितरित करें.
- रात्रि में फलाहार ग्रहण करें. रात्रि जागरण कर भगवद् भजन गाएं.
- अगले दिन यानी कि द्वादश को किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर प्रणाम करें व विदा करें.
- स्‍थापित किए गए कलश के जल को अपने घर में छिड़क दें. बचे हुए जल को किसी पौधे या तुलसी में चढ़ा दें.
- इसके बाद आप घर के सभी सदस्‍यों के साथ मौन रहकर भोजन करते हुए व्रत का पारण करें.

इंदिरा एकादशी कथा
इंदिरा एकादशी व्रत कथा इस प्रकार है: प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम के एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करते थे. वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु के परम भक्त थे. एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठे थे तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उनकी सभा में आए. राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़े हो गए और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया.

सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा- "हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? आपकी बुद्धि धर्म में और आपका मन विष्णु भक्ति में तो रहता है?" देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- "हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है तथा मेरे यहां यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं. आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए." तब ऋषि कहने लगे- "हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो."

नारद जी कहने लगे- "मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहां श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की. उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा. उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूं. उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है."

इतना सुनकर राजा कहने लगे- "हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए." नारदजी कहने लगे- "अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें. फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें. प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों का भक्तिपूर्वक पालन करते हुए हुआ प्रतिज्ञा करें कि "मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा. हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए." 

"इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएं और दक्षिणा दें. पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूंघकर गाय को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें."

"रात में भगवान के निकट जागरण करें. इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं. भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें." व्रत की विधि बताने के बाद नारद जी कहने लगे- "हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएंगे." इतना कहकर नारद जी अंतर्ध्यान हो गए.

नारद जी के कथनानुसार राजा ने अपने बांधवों ओर दासों सहित व्रत किया, जिससे आकाश से पुष्पवर्षा हुई और राजा के पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक चले गए. राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को प्राप्‍त हुए.

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