जापान के प्राइम मिनिस्टर शिंजो आबे ने अपने पद से त्यागपत्र देने का एलान किया है. आबे ने कहा है कि वो अपनी पेट की बीमारी से काफ़ी परेशान हैं. और इसी वजह से अपने पद से जुड़ी ज़िम्मेदारियां और आगे निभाने में असमर्थ हैं. उन्हें इलाज के लिए समय चाहिए. इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री का पद छोड़ने का फ़ैसला किया है.
शिंजो आबे, सबसे लंबे समय तक जापान के प्रधानमंत्री रहे हैं. अपनी प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने बताया कि उनकी पेट की वो बीमारी एक बार फिर लौट आई है, जिसने उन्हें लंबे समय तक परेशान कर रखा था. वो अल्सरेटिव कोलाइटिस यानी आंतों में घाव की समस्या से जूझ रहे हैं. 2007 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के केवल एक साल बाद ही आबे को इसी बीमारी के चलते इस्तीफ़ा देना पड़ा था. हालांकि, 2012 में वो दोबारा जापान के प्रधानमंत्री पद पर लौट आए थे.
BREAKING: Japan's PM Shinzo Abe resigns for health reasons.
— Al Jazeera News (@AJENews) August 28, 2020
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शिंजो आबे के स्वास्थ्य को लेकर आशंकाएं तब और बढ़ गई थीं, जब अगस्त महीने में ही उन्हें दो बार अस्पताल जाना पड़ा था. जापान के मीडिया में ख़बर आई थी कि उन्हें ख़ून की उल्टियां हो रही हैं. और अब शिंजो आबे ने इस्तीफ़ा देने का एलान कर दिया है. हालांकि, अभी वो सितंबर के अंत तक देश के प्रधानमंत्री बने रहेंगे. क्योंकि उनकी पार्टी, लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी LDP को अपना नया नेता चुनने में कुछ समय लगने की संभावना है.
इस दौरान ये भी हो सकता है कि शिंजो आबे के बेहद भरोसेमंद नेता और जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव योशीहिडे सुगा, कार्यवाहक प्रधानमंत्री के तौर पर आबे की ज़िम्मेदारी संभाल सकते हैं. शिंजो आबे की जगह, मौजूदा वित्त मंत्री तारो असो को भी कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है. हालांकि, उन्हें पूर्णकालिक प्रधानमंत्री बनाए जाने की संभावना नहीं के बराबर है. क्योंकि 2009 में तारो असो के प्रधानमंत्री रहते ही लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी चुनाव हार गई थी और उसे डेमोक्रेटिक पार्टी के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी थी.
शिंजो आबे के प्रधानमंत्री बनने से पहले जापान में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था. लगभग हर साल देश को नया प्रधानमंत्री देखने को मिलता था. लेकिन, शिंजो आबे के 2012 में पीएम बनने के बाद से जापान ने राजनीतिक स्थायित्व का लंबा दौर देखा. इस दौरान देश के आर्थिक विकास में भी तेज़ी देखी गई. इसी कारण से जब शिंजो आबे ने इस्तीफ़े का एलान किया तो, जापान के शेयर बाज़ारों में भारी गिरावट देखी गई. क्योंकि, निवेशकों को अंदाज़ा नहीं था कि शिंजो आबे अचानक पद छोड़ देंगे.
आबे के पद से हटने के बाद जापान में राजनीतिक अस्थिरता का नया दौर शुरू हो सकता है. ये जापान की आर्थिक शक्ति और राजनीतिक प्रभाव, दोनों के लिए नुक़सानदेह साबित होने का डर है.
कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने के बाद जापान के आस-पास के इलाक़ों में टकराव की स्थिति बढ़ गई है. चीन के विमान और नौसैनिक जहाज़ लगातार जापान की सीमा में घुस कर उसे चुनौती दे रहे हैं. वहीं, ताइवान को लेकर भी चीन ने बेहद आक्रामक रुख़ अपनाया हुआ है. इसके अलावा चीन ने हॉन्गकॉन्ग के लिए नया राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून बनाकर, उसकी स्वायत्तता भी लगभग ख़त्म कर दी है.
जापान के लिए ये चिंता की बात इसलिए है, क्योंकि उसके आर्थिक हित इन तीनों ही जगहों से जुड़े हुए हैं. हॉन्ग कॉन्ग में जापान की एक हज़ार से अधिक कंपनियां कारोबार करती हैं. तो चीन और ताइवान में भी जापान की कंपनियों ने भारी मात्रा में निवेश कर रखा है.
कोविड-19 का प्रकोप फैलने के बाद जब जापान में बुनियादी मेडिकल संसाधनों जैसे कि मास्क और वेंटिलेटर की कमी हो गई थी. तब, शिंजो आबे ने कहा था कि अब उनका देश चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश करेगा. इसके लिए क़रीब ढाई अरब डॉलर के एक फंड का भी एलान किया गया था. ताकि, जापान की कंपनियों को अपने कारखाने, चीन से हटाकर जापान लाने को प्रेरित किया जा सके.
लेकिन, अब शिंजो आबे के इस्तीफ़े के कारण, जापान का ये आत्मनिर्भरता अभियान भी खटाई में पड़ सकता है.
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