जम्मू-कश्मीर में हुए जिला विकास परिषद (DDC Polls) के पहले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी सिंगल पार्टी बनकर उभरी है. अब तक घोषित डीडीसी की 280 सीटों वाले जिला विकास परिषद (DDC Results) के परिणामों में से NC ने 67 सीटें जीती हैं, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) ने 27, पीपल्स कॉन्फ्रेंस (PC) 3, CPI(M) 5 सीटें जीती हैं. कांग्रेस ने 26, अल्ताफ बुखारी की अगुवाई वाली JKAP ने 12, जेके पैंथर्स पार्टी (JKNPP) ने 2, पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (PDF) ने 2 और बीएसपी ने एक सीट हासिल की है. वहीं, 50 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के पास गई हैं. खास बात यह है कि श्रीनगर जिले में 14 सीटों में से 7 सीटें पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने कब्जा जमाया है. केंद्रीय मंत्री जनरल वी. के. सिंह ने इस चुनाव का कुछ इस तरह विश्लेषण किया है...
1. घाटी के जिन क्षेत्रों में न के बराबर मतदान होता था, वहां पर उत्साहवर्धक मतदान दर आंकी गयीं.
2. घाटी में जहां भाजपा का चुने हुए प्रतिनिधियों में अस्तित्व नहीं था, वहां 4 सीटें जीतना एक युगान्तकारी उपलब्धि है.
3. जैसा प्रायः सुनते हैं, शुरू में EVM पर शक किया गया, अन्य प्रकार की धांधली की
4. अफवाह उड़ाई गयी. अब जब गठबंधन को परिणाम संतोषजनक लग रहे हैं तो सब ठीक था. राजनैतिक दलों ने EVM इत्यादि को अपनी जीत की बीमा योजना बना लिया है. हारे तो विरोध, जीते तो सब ठीक.
उपरोक्त बिंदुओं को देखें तो यह पता चलेगा कि सबसे बड़ी विजय लोकतंत्र की हुई है. एक लंबे समय से कश्मीर भारत की विकास यात्रा से कटा हुआ था. कश्मीरी भी निराश थे और उन्हें पत्थर या बंदूक उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. अनुच्छेद 370 और 35A के कारण एक बहुत बड़ी कश्मीरी जनसंख्या कल्याण एवं समृद्धि से अछूती रह गयी थी. वे देख सकते थे कि इस मानवरचित स्थिति से कुछ एक परिवार अपनी रोटियां सेंक रहे थे और वे कुछ नहीं कर सकते थे. वोट मांगते समय उनसे वादे किए जाते थे और फिर बस वही क्रम यथावत चलने लगता था.
बढ़े हुए मतदान दर एवं भाजपा की उन युगान्तकारी विजयों से यह स्पष्ट होता है कि अंततः लोगों को Narendra Modi जी की राजनैतिक इच्छाशक्ति में विश्वास जागा है. उन्हें फिर यह आशा मिली है कि उनसे कुछ परिवारों के लाभ के लिए सौतेला व्यवहार नहीं होगा. जो ऐतिहासिक त्रुटियां उन्हें न्यायोचित अधिकारों से वंचित रख रहीं थीं, उनका निर्मूलन होगा, भले ही उसके लिए क्या मूल्य चुकाना पड़े. इन चुनावों से भारत सरकार की प्रतिबद्धता पर जम्मू कश्मीर के लोगों ने मोहर लगा दी है.
यह वहां पर स्थिति सामान्य होने के लिए एक मील का पत्थर सिद्ध होगा.
परन्तु जितना यह चुनाव हर्ष एवं उन्नति का द्योतक है, उतना ही सीमा पार कश्मीरियों के मूल शत्रुओं के लिए खतरे की घंटी है. उनका मायाजाल अब अंतिम सांस ले रहा है और वे अवश्य तिलमिला रहे होंगे. पाकिस्तान ने जो कश्मीर अवैध प्रकार से हथियाया हुआ है, वहां रह रहे कश्मीरी अपने भाइयों के निर्णय को आस भरी निगाह से अवश्य देख रहे होंगे.
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद ये इस केंद्र शासित प्रदेश का पहला चुनाव था. आठ चरणों में हुए जिला विकास परिषद की शुरुआत 28 नवंबर को हुई थी. इस दौरान कुल 280 सीटों पर चुनाव हुआ. 280 सीटों में से 140 सीट जम्मू संभाग में है और 140 सीट कश्मीर संभाग में हैं.
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