पूर्व केंद्रीय मंत्री एम जे अकबर (MJ Akbar) को दिल्ली के राउज़ एवेन्यू कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने एम जे अकबर की ओर से प्रिया रमानी (Priya Ramani) के खिलाफ दायर मानहानि केस खारिज कर दिया है और उन्हें बरी कर दिया है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला को दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा, "यौन शोषण आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को ख़त्म कर देता है, किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा की सुरक्षा किसी के सम्मान की क़ीमत पर नहीं की जा सकती है, महिलाओं के पास दशकों बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है, सामाजिक प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति भी यौन शोषण कर सकता है."
फैसले में कोर्ट ने महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य का उदाहरण देते हुए कहा कि ये एक महिला की गरिमा का महत्व बताते हैं. चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रविंद्र कुमार पांडे ने कहा, ''यह शर्मनाक है कि इस तरह की घटनाएं भारत में हो रही हैं."
कोर्ट ने यह भी कहा, "इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यौन उत्पीड़न के ज्यादातर मामले बंद दरवाजों के पीछे होते हैं. विक्टिम कई बार यह नहीं समझ पाती कि उनके साथ क्या हुआ है इसलिए महिलाओं को दशकों बाद भी अपनी शिकायत बताने का अधिकार है. संविधान ने अनुच्छेद 21 और समानता का अधिकार दिया है. प्रिया रमानी को अपनी पसंद के प्लेटफॉर्म पर आपबीती बताने का पूरा हक था."
कोर्ट के फैसले के बाद प्रिया रमानी ने अपने वकील और उनकी टीम को धन्यवाद दिया.
आपको बता दें कि साल 2017 में रमानी ने वोग मैगज़ीन के लिए एक लेख लिखा, जहां उन्होंने नौकरी के इंटरव्यू के दौरान पूर्व बॉस द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने के बारे में बताया था. एक साल बाद 2018 में जब देश में #MeToo कैम्पेन शुरू हुआ तब उन्होंने बताया कि उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति एमजे अकबर थे. इन आरोपों के चलते 17 अक्टूबर 2018 को अकबर को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था. इसके बाद अकबर ने रमानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था.
एम.जे अकबर ने प्रिया रमानी के खिलाफ यह कहते हुए आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था कि #MeToo कैंपेन के दौरान किए गए रमानी के ट्वीट से उनकी मानहानि हुई है. जबकि उनके ऊपर इस तरीके के आरोप इससे पहले कभी नहीं लगे थे.
ट्रायल के दौरान अकबर ने अदालत को बताया कि रमानी के आरोप काल्पनिक हैं. इससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा है. दूसरी ओर, रमानी अपने दावों पर टिकी रहीं. 1 फरवरी को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
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