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Karwa Chauth 2020: जानिए करवा चौथ का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

Babita Pant

नई द‍िल्‍ली 03 Nov, 2020 11:23 pm

Karwa Chauth 2020: करवा चौथ (Karva Chauth or Karwa Chauth) यूं तो मुख्‍य रूप से दिल्‍ली, राजस्‍थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश का व्रत है, लेकिन यह इसकी लोकप्रियता का ही असर है कि आज देश के लगभग सभी हिस्‍सों में हिन्‍दू धर्म को मानने वाली सुहागिन महिलाएं इस व्रत को रखती हैं. यही नहीं विदेशों में रह रहे हिन्‍दू महिलाएं भी पूरे धूमधाम और विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत (Karwa Chauth Vrat) रखती हैं. यह व्रत पति की लंबी उम्र, अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य, उन्नति और खुशहाली के लिए रखा जाता है.

इस व्रत में महिलाएं सूर्योदय होने के साथ ही निर्जला व्रत रखती हैं और रात के समय चांद को अर्घ्‍य देने के बाद ही उसे खोलती हैं. व्रत रखने वाली महिलाएं श्री गणेश समेत भगवान शिव के परिवार के सभी सदस्‍यों की पूजा करती हैं. इस व्रत में अखंड सौभाग्‍य का वरदान देने वाली मां पार्वती और माता करवा की पूजा विशेष रूप से की जाती है. माता करवा मां पार्वती का ही रूप हैं. करवा चौथ का व्रत अत्‍यंत कठिन माना जाता है क्‍योंकि इस दिन चंद्र को अर्घ्‍य देने तक पानी की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती है.

करवा चौथ कब है? 
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने की चतुर्थी को करवा चौथ मनाया जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार करवा चौथ हर साल अक्‍टूबर या नवंबर के महीने में आता है. इस बार करवा चौथ 4 नवंबर को है.

करवा चौथ का महत्‍व
हिन्‍दू धर्म में करवा चौथ के व्रत का विशेष महत्‍व है. करवा चौथ को करक चतुर्थी (Karak Chaturthi) भी कहा जाता है. करवा या करक मिट्टी के उस घड़े को कहा जाता है जिससे करवा चौथ के व्रत के दिन चांद को अर्घ्‍य दिया जाता है. इस व्रत की पूजा में करवे का विशेष महत्‍व है जिसे बाद में किसी ब्राह्मण या सुयोग्‍य महिला को दान दे दिया जाता है.

करवा चौथ की लोकप्रियता देखकर ही आप इसके महात्‍म्‍य का अंदाजा लगा सकते हैं. पति की लंबी उम्र की कामना के लिए किए जाने वाले सभी व्रतों में करवा चौथ का व्रत सबसे अधिक लोकप्रिय है. कहते हैं कि अगर कोई सुहागिन महिला पूरे भक्ति-भाव और पूजा विधि से करवा चौथ का व्रत करे तो उसके पति दीर्घायु को प्राप्‍त होते हैं. इतना ही नहीं इस व्रत के प्रभाव से कुंवारी कन्‍याओं को सुयोग्‍य और मनवांछित वर की प्राप्‍ति होती है. आजकल कई पुरुष भी अपनी पत्‍नयिों के लिए करवा चौथ का व्रत रखते हैं. व्रत के चार दिन बाद अहोई अष्‍टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत रखा जाता है. यह व्रत पुत्रों के लिए किया जाता है.

करवा चौथ की तिथि और शुभ मुहूर्त
चतुर्थी तिथि आरंभ: 4 नवंबर 2020 को सुबह 3 बजकर 24 मिनट से
चुतुर्थी तिथि समाप्‍त: 5 नवंबर 2020 को सुबह 5 बजकर 14 मिनट तक
करवा चौथ पूजा मुहूर्त: शाम 5 बजकर 34 मिनट से शाम 6 बजकर 52 मिनट तक
करवा चौथ के दिन उपवास का समय: सुबह 6 बजकर 35 मिनट से रात 8 बजकर 12 मिनट तक
करवा चौथ के दिन चंद्रोदय का समय: रात 8 बजकर 12 मिनट 

करवा चौथ के व्रत की पूजन सामग्री
करवा चौथ के व्रत से पहले ही पूजन सामग्री एकत्र कर लें. पूजन सामग्री इस प्रकार है:
मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, लोटा, गंगाजल, दीपक, रूई, धूप-अगरबत्ती, चंदन, कुमकुम, रोली, अक्षत, फूल, फल, कच्‍चा दूध, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, चीनी, हल्‍दी, चावल, मिठाई, चीनी का बूरा, मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिन्‍दी, लाल चुनरी, चूड़ियां, बिछुए, छलनी, करवा चौथ का कैलेंडर, पीली मिट्टी (अगर खुद से मां गौरा की प्रतिमा बनाएंगे तो मिट्ठी चाहिए अन्‍यथा कैलेंडर भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं), लकड़ी का आसन, आठ पूरियों की अठावरी, हल्‍वा और दक्षिणा.

करवा चौथ की पूजा विधि
- व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्‍नान करें और नए वस्‍त्र पहनें.
- इसके बाद व्रत का संकल्‍प लें. 
- संकल्‍प लेते वक्‍त इस मंत्र का उच्‍चारण करें: 
मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
- करवा चौथ की पूजा संध्‍या काल में की जाती है.
- सूर्यास्‍त के बाद पील मिट्टी से मां गौरी और करवा माता का चित्र बनाएं. आजकल बाजार में पहले से तैयार चित्र भी मिल जाते हैं, जिसे करवा चौथ पूजा कैलेंडर कहते हैं.
- पूजा के स्‍थान पर इस कैलेंडर को चिपका दें.
- सबसे पहले श्री गणेश में दूब रखकर पूजा का शुभारंभ करें.
- इसके बाद इस मंत्र का जाप करें:
नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
- अब मां पार्वती को पहले पंचामृत और फिर गंगाजल से स्‍नान कराएं.
- अगर कैलेंडर की पूजा कर रही हैं तो सांकेतिक रूप से पंचामृत और गंगाजल छिड़क दें.
- इसके बाद मां पार्वती को अच्‍छी तरह पोंछकर वस्‍त्र पहनाएं और लाल चुनरी अर्पित करें.
- फिर मां को सुहाग सामग्री अर्पित करें.
- अब मां को रोली, कुमकुम और अक्षत का तिलक लगाएं.
- अब एक लोटी में पानी भरकर रख दें.
- अब टोंटीदार करवे में गेहूं और उसके ढक्‍कन में चीनी का बूरा भर दें. चीनी के ऊपर दक्षिणा के पैसे रख दें.
- इसके बाद करवे में रोली से स्‍वास्तिक बनाएं.
- अब हाथ जोड़कर श्री गणेश, मां पार्वती और माता करवा की पूजा करें.
- इसके बाद करवा पर 13 बिन्‍दी रखें.
- अब अपपने हाथ में 13 दाने गेहूं या चावल के लेकर करवा चौथ कथा पढ़ें या सुनें.
- कथा सुनने के बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद लें.
- रात के समय चंन्‍द्रमा के निकलने के बाद छलनी की ओट से दर्शन करें और पानी से अर्घ्‍य दें.
- फिर पति को छलनी से देखें और उनकी आरती उतारें.
- पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलें.
- फिर पति-पत्‍नी साथ में बैठकर भोजन करें.
- करवा चौथ की पूजा महिलाएं एक साथ किसी के घर में पास-पड़ोस के मंदिर में करती हैं.
- अगर आप चाहें तो अपने घर पर अकेली भी इस पूजा को कर सकती हैं.

करवा चौथ व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी. सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे. यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे. एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी. शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी. सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है. चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है.

सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है. दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो. इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो. बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है. वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है. दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है. वह बौखला जाती है.

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है.

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी. वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है. उसकी देखभाल करती है. उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है. एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है. उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं. जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से "यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो" ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है.

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है. यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना. ऐसा कह कर वह चली जाती है. सबसे अंत में छोटी भाभी आती है. करवा उनसे भी सुहागिन बनाने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है. इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है. भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है.

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है. करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है. इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है.

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