संघर्ष करने वालों को सफलता से कोई दूर नहीं कर सकता है. इसका उदाहरण बिहार के गया जिले का पटवा टोली गांव है. ये गांव कभी बुनकरी के काम के लिए जाना जाता था, लेकिन पिछले 23 सालों से इस गांव के लड़के कुछ ऐसा कमाल कर रहे हैं, जो शायद ही आपको किसी और गांव में देखने को मिले. बुनकरों के इस गांव से हर साल दर्जनों छात्र आईआईटी और एनआईटी के लिए चुने जाते हैं.
बिहार के इस गांव से हर साल एक दर्जन से ज्यादा स्टूडेंट्स बिना किसी बड़ी कोचिंग में पढ़े जेईई में सिलेक्ट होते हैं. इस गांव में एक लाइब्रेरी है जिस लोगों के आर्थिक सहयोग से चलाया जाता है. इस लाइब्रेरी में बच्चे फ्री में पढ़ सकते हैं. जो बच्चे आईआईटी के लिए तैयारी कर रहे हैं उन्हें आईआईटी में पढ़ाई कर चुके हैं या कर रहे हैं छात्र फ्री में ऑनलाइन कोचिंग देते हैं.
बता दें कि साल 1996 में यहां के बच्चों ने आईआईटी में एडमिशन की जो शुरुआत की, उसके बाद से हर साल यहां के बच्चे एडमिशन पाते हैं.
पहला छात्र जिसे IIT में एडमिशन मिला
साल 1992 में एक बुनकर के बेटे जितेंद्र सिंह को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में एडमिशन मिला. पटवा टोली गांव का ये पहला आईआईटी छात्र था और यही लड़का गांव के लिए रोल मोडल बना. जितेंद्र को देखकर गांव के अन्य छात्र प्रेरित हुए जिसके बाद हर साल इस गांव से आईआईटियन्स निकलते गए.
लगभग हर घर से IIT में सिलेक्ट होते हैं बच्चे
भारत का यह एकलौता ऐसा गांव है जहां लगभग हर घर से एक आईआईटियन्स निकल रहा है. इस गांव से अब तक 300 से अधिक छात्र IIT में पहुंचे हैं. सबसे खास बात यह है कि यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव होने के बावजूद भी गांव के लोग अपने बच्चों का भविष्य बना रहे हैं.
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