हिन्दू धर्म में सभी पर्व-त्योहार विशेष तिथि पर ही मनाए जाते हैं. इन तिथियों की गणना बेहद वैज्ञानिक और पृथ्वी तथा चंद्रमा की गतियों पर आधारित है. हिन्दू पंचांग इसी आधार पर पर्व-त्योहार की तिथि निश्चित करता है. आमतौर पर हर साल पितृ पक्ष (Pitru Paksha) की समाप्ति के बाद से ही हिन्दू धर्म में सभी बड़े त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. पितृ अमावस्या के अगले दिन प्रतिपदा के साथ घट स्थापना होती है और मां दुर्गा का आवाह्न कर पूरे नौ दिनों तक मां की उपासना की जाता है. शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों की उपासना के इस महापर्व को नवरात्र (Navratri) कहते हैं. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा. यानी पितृ पक्ष की समाप्ति के बाद नवरात्र प्रारंभ नहीं होंगे.
दरअसल, इस बार पितृ अमावस्या के अगले दिन से अधिकमास (Adhikmas) लग जाएगा. इस तरह अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा. ज्योतिषीय गणना के अनुसार ऐसा संयोग पूरे 165 साल बाद आया है, जब श्राद्ध समाप्त होते ही नवरात्र (Navratra) प्रारंभ नहीं होंगे, और अधिकमास शुरू हो जाएगा.
कब शुरू होगा अधिकमास?
इस बार श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर को समाप्त होगा और 18 सितंबर से अधिकमास शुरू हो जाएगा. ये अधिक मास 16 अक्टूबर तक चलेगा.
अधिकमास लगने से क्या होगा?
अधिकमास होने की वजह से इस बार पर्व-त्योहार पिछले सालों की तुलना में देरी से आएंगे. 16 अक्टूबर को अधिकमास खत्म होगा और उसके अगले दिन यानी 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू होंगे. 24 अक्टूबर को नवमी और 25 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा. इसी तरह दीपावली भी देरी से आएगी.
क्या होता है अधिकमास?
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त महीना आता है. इस अतिरिक्त मास यानी कि महीने को अधिकमास, अधिमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है. दरअसल,सौर वर्ष और चंद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चंद्रमास की वृद्धि कर दी जाती है. भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और लगभग 6 घंटे काहोता है. जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है.
इस तरह दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास या महीने के बराबर हो जाता है. इस अंतर को\मिटाने के लिए हर तीन साल में एक चंद्रमास आता है. अतिरिक्त मास होने के कारण ही इसे अधिमास कहा जाता है.
क्यों कहते हैं मलमास?
अधिकमास को मलमास भी कहते हैं. इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे कि मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह, गृह प्रवेश आदि वर्जित माना जाता है. दरअसल, जिस महीने में सूर्य संक्रांति नहीं आती है उस मलिन या मलमास मान लिया जाता है. अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है क्योंकि यह पूरा महीना सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु को समर्पित है. भगवान विष्णु का नाम पुरुषोत्तम भी है, इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. अधिकमास में भगवान विष्णु का जाप करना बेहद कल्याणकारी माना गया है.
मलमास का महत्व
हिन्दू सनातन धर्म में मलमास का विशेष महत्व है. इस दौरान कोई शुभ कार्य तो नहीं होते, लेकिन दान-पुण्य और भगवद् भजन के लिए इस महीने को सर्वोत्तम माना गया है. हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मलमास में किए गए धार्मिक कार्यों का फल दूसरे महीनों की तुलना में 10 गना ज्यादा होता है.
अधिकमास से जुड़ी पौराणिक मान्यता
अधिकमास का पौराणिक आधार भी है और इस संबंध में एक कथा भी प्रचति है. कथा के मुताबिक, एक बार दानवों के राजा हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया. जब ब्रह्माजी ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिए कहा तो उसने अमरता का वरदान मांगा. अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, ऐसे में ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा.
इस पर हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके. वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो. जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का. वह नाकिसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से. उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके. इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया. यहां तक कि वह अपने स्वयं के पुत्र प्रह्लाद पर भी अत्याचार करने से नहीं चूका. प्रह्लाद श्री हरि विष्णु के परम भक्त थे. जब हिरण्यकश्यप के पाप का घड़ा भर गया तब भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानी आधा पुरुष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीर कर उसे मृत्यु के द्वार पहुंचा दिया.
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