हिन्दू धर्म में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन पवित्र गंगा नदी का पानी अमृत में बदल जाता है. यही वजह है कि मौनी अमावस्या के दिन गंगा में स्नान करना बेहद शुभ और फलदाई माना जाता है. यही नहीं कई लोग मौन रहकर दिन भर उपवास करते हैं, इसलिए इसी मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है.
मौनी अमावस्या कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ महीने के मध्य में आने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह अमावस्या हर साल जनवरी के महीने में आती है. इस बार मौनी अमावस्या 11 फरवरी को है.
मौनी अमावस्या की तिथि और शुभ मुहूर्त
मौनी अमावस्या की तिथि: 11 फरवरी 2020
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 11 फरवरी 2021 को सुबह 1 बजकर 8 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 12 फरवरी 2021 को सुबह 12 बजकर 35 मिनट तक
मौनी अमावस्या का महत्व
कहते हैं कि मुनि शब्द से ही मौन की उपत्ति हुई है. मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर व्रत करने को मुनि पद की प्राप्ति होती है. इस दिन पवित्र नदियों विशेषकर गंगा में स्नान करने और दान-पुण्या का बेहद खास महत्व है. हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा का पवित्र जल अमृत में बदल जाता है और उसमें स्नान करने से लंबी उम्र मिलती है, साथ ही कई रोगों का नाश हो जाता है. इस दिन दान-पुण्य करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. यही नहीं ज्योतिषीय गणना के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन सूर्य तथा चंद्रमा मकर राशि में आते हैं. ऐसे में यह दिन संपूर्ण शक्ति से भरा हुआ माना जाता है.
मौनी अमावस्या की पूजा विधि
- मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा में स्नान करें. अगर गंगा स्नान संभव न हो तो घर पर ही अपने नहाने के जल में गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाकर स्नान करें.
- अब घर के मंदिर में आसन लगाकर बैठ जाएं और व्रत का संकल्प लें.
- अब विधिवत् भगवान की पूजा करें और आरती उतारें
- इसके बाद भगवान को भोग लगाएं.
- अब ब्रह्म देव तथा गायत्री मंत्र का जाप करें.
- मौनी अमावस्या की व्रत कथा पढ़ें
- दिन भर मौन रहकर उपवास करें.
- शाम के समय भी पूजा और आरती उतारें
- सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
मौनी अमावस्या व्रत कथा
मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समस पूर्व की बात है. कांचीपुरी में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था. उसके साथ बेटे थे और एक बेटी गुणवती थी. पत्नी का नाम धनवती था. उसने अपने सभी बेटों का विवाह कर दिया. उसके बाद बड़े बेटे को बेटी के लिए सुयोग्य वर देखने के लिए नगर से बाहर भेजा. उसने बेटी की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई. उसने कहा कि कन्या का विवाह होते ही वह विधवा हो जाएगी. यह बात सुनकर देवस्वामी दुखी हो गया.
तब ज्योतिषी ने उसे एक उपाय बताया. कहा कि सिंहलद्वीप में सोमा नामक की धोबिन है. वह घर आकर पूजा करे तो कुंडली का दोष दूर हो जाएगा. यह सुनकर देवस्वामी ने बेटी के साथ सबसे छोटे बेटे को सिंहलद्वीप भेज दिया. दोनों समुद्र के किनारे पहुंचकर उसे पार करने का उपाय खोजने लगे. जब कोई उपाय नहीं मिला तो वे भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे.
उस पेड़ पर एक गिद्ध परिवार वास करता था. गिद्ध के बच्चों ने देखा दिनभर इन दोनों के क्रियाकलाप को देखा था. जब उन गिद्धों की मां उन्हें भोजन देने लगी तो उन्होंने खाना न खाकर उस भाई बहन के बारे में बताने लगे. उनकी बातें सुनकर गिद्धों की मां को दया आ गई. उसने पेड़ के नीचे बैठे भाई-बहन को भोजन दिया और कहा कि वह उनकी समस्या का समाधान कर देगी. यह सुनकर दोनों ने भोजन ग्रहण किया.
अगले दिन सुबह गिद्धों की मां ने दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया. वे उसे लेकर घर आए. सोमा ने पूजा की. फिर गुणवती का विवाह हुआ, लेकिन विवाह होते ही उसके पति का निधन हो गया. तब सोमा ने अपने पुण्य गुणवती को दान किए और इससे उसका पति भी जीवित हो गया. इसके बाद सोमा सिंहलद्वीप आ गई, लेकिन उसके पुण्यों की कमी से उसके बेटे, पति और दामाद का निधन हो गया.
इस पर सोमा ने नदी किनारे पीपल के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु की आराधना की. पूजा के दौरान उसने पीपल की 108 बार प्रदक्षिणा की. इस पूजा से उसे महापुण्य प्राप्त हुआ और उसके प्रभाव से उसके बेटे, पति और दामाद जीवित हो गए. उसका घर धन-धान्य से भर गया. इस वजह से ही मौनी अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष तथा भगवान विष्णु जी की पूजा की जाने लगी.
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