मध्यप्रदेश के गुना के साक्षी मेडिकल कॉलेज के छात्र लंबे समय से न्याय के लिए गुहार लगा रहे हैं, मगर सिस्टम में काम कर रहे अधिकारी से लेकर सत्ता में बैठे नेता तक के कान में जूं तक नहीं रेंग रही. साक्षी मेडिकल कॉलेज के 25 छात्रों को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया यानी MCI ने डिस्चार्ज कर दिया. वजह दी गई कि इन छात्रों का नाम DME की लिस्ट में नहीं था. छात्र लचर सिस्टम से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. हाल ही में ग्वालियर हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अपना जवाब दाखिल किया. सरकार ने कहा कि छात्रों की लिस्ट DME के पास समय पर पहुंच गई थी. इससे साफ हो गया है कि जिस लिस्ट में नाम न होने का कारण देकर MCI ने छात्रों को डिस्चार्ज किया था, उस लिस्ट में छात्रों का नाम मौजूद था. ग्वालियर हाईकोर्ट ने MCI को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है.
जनवरी 2017 में, सरस्वती मेडिकल कॉलेज के छात्रों के साथ ऐसा ही हुआ था. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने छात्र के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि चूंकि DME ने छात्रों की सूची प्राप्त कर ली है, इसलिए MCI उनके प्रवेश को खारिज नहीं कर सकता है. MCI ने तब सु्प्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी लेकिन MCI की याचिका को खारिज कर दिया गया.
एक छात्र सौरभ लाड़ कहते हैं, ''हम छात्रों व हमारे परिवारों ने पिछले 3 वर्षों में जो अन्याय झेला है वो शायद देश में किसी और छात्र ने सुना तक नहीं होगा. एक ऐसा मामला जिसमें सारे संवैधानिक साक्ष्य छात्रों को निर्दोष साबित कर रहे हों फिर भी उन्हें 3 वर्षों तक शिक्षा प्राप्त करने हेतु न्यायालय व सरकार के चक्कर काटने पड़ रहें हों. गलती एमसीआई व कॉलेज प्रबंधन की और उसकी सजा देश के भावी डाक्टरों को दी जा रही है. उन्हें पढ़ाई से वंचित रखा जा रहा है.''
एक छात्रा पल्लवी सुराना कहती हैं, ''एक मध्यमवर्गीय परिवार की बिटिया के डॉक्टर बनने का सपना... कभी सपना देखा है आपने.. कितना दुःखद होता है सपनो का टूटना. पिता का क़र्ज़ लेकर भी महंगी पढ़ाई करवाने का सपना, भाई का अपनी बहन को डॉक्टर देखने का सपना, माँ का अपनी लाडो को सफ़ेद कोट में होने का सपना, बहन - जीजू को अपनी साली पर गर्व करने का सपना,न जाने एक ज्यादती से कितने सपनो का कत्ल हुआ है. कभी-कभी तो लगता है, सब कुछ ख़त्म हो गया है.''
एक छात्रा प्रज्ञा कहती हैं-
चले थे डॉक्टर बनने नीट परीक्षा पास करके, पर कर दिया हमको कॉलेज से बाहर
है खुद को सही सिद्ध करने के सारे साक्ष्य, पर हम ही कहलाये गुनहगार
दर-दर की ठोकर खाते हुए लगा रहे है न्याय के लिए गुहार, पर कोई नहीं सुन रहा हमारी पुकार
अब जीना है मुश्किल, न्याय दिलाके करो हमारी नैया पार...
क्या है पूरा मामला
29 सितंबर 2016 को, छात्रों ने नव स्थापित साक्षी मेडिकल कॉलेज, गुना में एडमिशन लिया. एडमिशन के बाद, कॉलेज को 7 अक्टूबर, 2016 तक नामांकित छात्रों की सूची चिकित्सा शिक्षा निदेशालय (DME) और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को सौंपनी थी. साक्षी मेडिकल कॉलेज ने 4 अक्टूबर 2016 को नामांकित छात्रों की सूची DME को आखिरी दिन से 3 दिन पहले सबमिट कर दी. कुछ महीनों के बाद, एक छात्र के अभिभावक ने कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों की कुल संख्या जानने के लिए एमसीआई में एक आरटीआई दायर की. आरटीआई से पता चला कि शैक्षणिक वर्ष 2016-17 के लिए कॉलेज में केवल 143 छात्र (126 सरकार कोटा + 17 एनआरआई कोटा) हैं. जिन छात्रों का नाम सूची में नहीं था, वे कॉलेज पहुंचे. कॉलेज प्रशासन ने कहा कि जानकारी गलत है और उन्हें चिंता न करने के लिए कहा है. तब तक सभी 150 छात्र विश्वविद्यालय में दाखिला ले चुके थे और उन्होंने परीक्षा फॉर्म भरा और सितंबर 2017 में प्रथम वर्ष की परीक्षा में बैठे.
अक्टूबर 2017 में, छात्रों को अखबारों में छपी खबरों से पता चला कि साक्षी मेडिकल कॉलेज में एनआरआई कोटा के 25 छात्रों को डिस्चार्ज कर दिया गया है. छात्रों ने कॉलेज अधिकारियों से संपर्क किया. प्रशासन ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. जब विश्वविद्यालय ने परिणाम घोषित किया, तो इन छात्रों ने पाया कि उनके परिणाम निलंबित कर दिए गए थे क्योंकि DME की लिस्ट में उनके नाम नहीं दे जो कि MCI को भेजी गई थी. कॉलेज ने ग्वालियर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की और उन्होंने कहा कि उन्होंने समय पर सूची सबमिट की और इसमें छात्रों की गलती नहीं थी. हालांकि कोर्ट ने इसे मेरिट न होने के आधार पर खारिज कर दिया, जिसके बाद कॉलेज ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन इसे फिर से खारिज कर दिया गया.
कॉलेज की याचिकाएं खारिज होने के बाद छात्रों ने न्याय की मांग करते हुए ग्वालियर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की लेकिन इसे भी खारिज कर दिया गया. इसके बाद छात्र सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और कोर्ट ने छात्रों को ग्वालियर हाईकोर्ट में एक रिव्यू पिटीशन फाइल करने की स्वतंत्रता दी. अब मामला ग्वालियर हाईकोर्ट में अटका हुआ है. राज्य सरकार और DME ने अपना जवाब फाइल कर दिया है कि उनके पास छात्रों की लिस्ट समय पर आ गई थी, कोर्ट ने MCI को 2 सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है.
अपने ही बनाए रूल का उल्लघंन कर रहा है MCI
एक तरफ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया यानी MCI कहता है कि वह लिस्ट में नाम न होने के आधार पर किसी छात्र को डिस्चार्ज नहीं करता. वहीं, दूसरी तरफ लिस्ट में नाम न होने का हवाला देते हुए ही एमसीआई ने इन 25 छात्रों को डिस्चार्ज कर देता है. MCI ने छात्रों द्वारा दायर की गई एक RTI के जवाब में कहा था, ''केवल सूचियों जमा न करने के आधार पर किसी छात्र को निष्कासित नहीं किया जाता.''
एक तरफ MCI कहता है कि वह लिस्ट में नाम न होने के आधार पर किसी छात्र को डिस्चार्ज नहीं करता. वहीं, दूसरी तरफ लिस्ट में नाम न होने का हवाला देते हुए ही एमसीआई ने साक्षी मेडिकल कॉलेज के 25 छात्रों को डिस्चार्ज कर दिया. . #JusticeFor25GunaMedicos #GunaMedicos pic.twitter.com/j902buyUMb
— Archit Gupta (@Architguptajii) September 6, 2020
एक छात्र के पिता महेंद्र सेन कहते हैं, ''MCI को पहले भी जवाब जमा करने की वार्निंग मिल चुकी है लेकिन जवाब MCI के गले की फांस बनता दिख रहा है क्योंकि जो उन्होंने डिस्चार्ज के बिंदु निर्धारित किये थे वे सारे गलत साबित होते दिख रहे हैं. स्टूडेंट्स की सूची तीन टुकड़ों में जमा की गई. सूची भेजने काम छात्रों का नहीं था, और सूची के आधार पर निष्कासन नहीं कर सकते, यह खुद MCI ने RTI के जवाब में कहा है. DME से कोई पत्राचार नहीं बच्चों को कोई कारण बताओ नोटिस भी नहीं फिर क्या निष्कासन वैध है? सूची भेजने का कार्य सम्बंधित महाविद्यालय का था. जब मध्यप्रदेश सरकार और प्रवेश संस्था ने ही माना है कि बच्चे सही हैं और उनकी तरफ से उनका निष्कासन भी नहीं है तो MCI ने इतना जानलेवा कृत्य क्यों किया? अभी भी समय है MCI तुरंत बच्चों के पक्ष में जवाब दाखिल कर 25 बच्चों का भविष्य बचा सकती है.''
महेंद्र सेन कहते हैं कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है वे तीन साल से कभी पूरी नींद भी नहीं सो पाये क्योंकि उन पर उनके बच्चे का भविष्य और एजुकेशन लोन का दबाव है. दो वर्ष की फीस 10 लाख, यूनिवर्सिटी एनरोलमेंट 1लाख 45 हजार, परीक्षा फीस 5500, होस्टल फीस (एवम अन्य) 1 लाख 87 हजार सब बर्बाद हो गया.
महेंद्र सेन का कहना है, ''मध्यप्रदेश सरकार और यूनिवर्सिटी से निवेदन है कि जब तक मामला कोर्ट में है तब तक बच्चों का परीक्षा परिणाम घोषित कर अस्थायी ही सही लेकिन इनकी शिफ्टिंग करे ताकि इनका सेशन खराब न हो.''
Leave Your Comment