Mokshada Ekadashi 2020: मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) का हिन्दू धर्म में बड़ा महात्म्य है. इस दिन मां एकादशी और सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा का विधान है. इस दिन व्रत और फलाहार किया जाता है और रात्रि में भगवद् भजन करते हुए जागरण करने की परंपरा है. गीता जयंती (Gita Jayanti) के दिन ही मोक्षदा एकादशी पड़ती हैं. ऐसे में इस दिन विशेष रूप से श्रीमद्भगवदगीता (Bhagavad Gita) का पाठ किया जाता है. मान्यता है कि इस एकादशी (Ekadashi) के व्रत के प्रभाव से मनुष्य को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है. वह सांसरिक सुखों का भोग करते हुए अंत में विष्णु के परम धाम बैकुंठ को प्राप्त होता है.
मोक्षदा एकादशी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं. गीता जयंती के दिन ही इस एकादशी का व्रत किया जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह एकादशी हर साल नवंबर या दिसंबर के महीने में आती है. इस बार मोक्षदा एकादशी 25 दिसंबर को है.
मोक्षदा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
मोक्षदा एकादशी की तिथि: 25 दिसंबर 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 24 दिसंबर 2020 को रात 11 बजकर 17 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 26 दिसंबर 2020 को सुबह 1 बजकर 54 मिनट तक
पारण का समय: 26 दिसंबर 2020 को सुबह 8 बजकर 30 मिनट से सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक
मोक्षदा एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म में मोक्षदा एकादशी का विशेष महत्व है. यह मोक्षदायिनी अर्थात् मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी है. इस एकादशी का व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला है. यही कारण है कि इसे मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह एकादशी अनेक पापों का क्षमन करने वाली है. कहते हैं कि इस व्रत से बढ़कर और कोई व्रत नहीं है. यही नहीं मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है. मोक्षदा एकादशी के दिन ही विष्णु अवतार भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म हुआ था. यह वजह है कि इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है.
मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि
- एकादशी के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें.
- अब घर के मंदिर में आसन ग्रहण करें और अपने ऊपर गंगाजल की कुछ बूंदें छिड़कें.
- इसके बाद लकड़ी के पटरे या चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं.
- अब इस चौकी पर श्री गणेश, भगवान विष्णु और श्रीमद्भगवद्गीता के रचयिता महर्षि वेदव्यास की मूर्ति रखें.
- चौकी पर श्रीमद्भगवद्गीता की एक प्रति भी रखें.
- अब इन सबके ऊपर गंगाजल की कुछ बूंदें छिड़कें.
- अब इस चौकी के मध्य में गेहूं की ढेरी रखें और कलश स्थापित करें.
- अब श्री गणेश को तुलसी मंजरी अर्पित करें. मोक्षदा एकादशी के दिन गणेश को तुलसी मंजरी अर्पित की जाती है.
- अब श्री विष्णु को वस्त्र अर्पित कर तिलक व अक्षत लगाएं.
- अब श्री हरि विष्णु को फूलों की माला पहनाएं.
- फिर उन्हें फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें.
- अब मोक्षदा एकादशी व्रत कथा पढ़ें.
- इसके बाद भगवान की आरती उतारें और उन्हें भोग चढ़ाएं.
- दिन भर उपवास रखें और श्रीमद्भगवदगीता का पाठ पढ़ें.
- शाम को आरती उतारने के बाद फलाहार करें.
- रात्रि में जागरण करते हुए भगवद् भजन और गीता का पाठ करें.
- अगले दिन यानी कि द्वादश को किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर विदा करें.
- आप स्वयं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे. वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था. एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं. उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया. उसने कहा, "मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है. उन्होंने मुझसे कहा कि 'हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं. यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ.' जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं. चित्त में बड़ी अशांति हो रही है. मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता. क्या करूं?"
राजा ने कहा, "हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है. अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए. उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके. एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है. जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते." ब्राह्मणों ने कहा, "हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है. आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे.
ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया. उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे. उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे. राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया. मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी. राजा ने कहा कि "महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है." ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे. फिर बोले- "हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है. उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया. उसी पाप कर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा."
तब राजा ने कहा, "इसका कोई उपाय बताइए." मुनि बोले- "हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें. इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी." मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया. इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया. इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- "हे पुत्र तेरा कल्याण हो. यह कहकर स्वर्ग चले गए."
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