Shardiya Navratri 2020: नवरात्र के आखिरी दिन यानी कि नवमी को मां दुर्गा के नौवें रूप मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) का पूजन किया जाता है. नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं. अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा करने के बाद भक्त नौवें दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन करते हैं. इनकी पूजा करने के बाद ही भक्त की लौकिक-परलौकिक मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की आराधना भक्त को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि की प्राप्ति होती है.
मां सिद्धिदात्री का उदय
ब्रह्मांड की शुरुआत में भगवान रुद्र ने रचना के लिए आदि पराशक्ति का स्मरण किया. ऐसा माना जाता है कि आदि पराशक्ति का कोई आकार नहीं है. शक्ति की परम देवी आदि पराशक्ति मां सिद्धिदात्री के रूप में भगवान शिव के शरीर के बाएं हिस्से से अवतरित हुईं थीं. इसी कारण भगवान शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा जाता है. मां सिद्धिदात्री सभी सिद्धियों को प्रदान करती हैं. यहां तक कि सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव को सिद्ध्यिों की प्राप्ति हुई है. मां की पूजा न सिर्फ मानव बल्कि समस्त देव, गंधर्व, असुर और यक्ष करते हैं.
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप बहुत सौम्य और आकर्षक है. उनकी चार भुजाएं हैं. मां ने अपने एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख धारण किया हुआ है. सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है.
मां सिद्धिदात्री का पसंदीदा रंग और भोग
नवमी के दिन घर में कन्या पूजन करना चाहिए और मां सिद्धिदात्री को हल्वा, पूरी, नारियल और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. इस जामुनी रंग के कपड़े पहनकर मां गौरी की पूजा करनी चाहिए.
मां सिद्धिदात्री मंत्र
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
मां सिद्धिदात्री प्रार्थना
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
मां सिद्धिदात्री स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां सिद्धिदात्री ध्यान
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां सिद्धिदात्री स्तोत्र
कञ्चनाभा शङ्खचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
नलिस्थिताम् नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनीं।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
मां सिद्धिदात्री कवच
ॐकारः पातु शीर्षो माँ, ऐं बीजम् माँ हृदयो।
हीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजम् पातु क्लीं बीजम् माँ नेत्रम् घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्ववदनो॥
मां सिद्धिदात्री आरती
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता। तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि। तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम। जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है। तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो। तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे। कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया। रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली। जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा। महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता। भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
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