×

Navratri 2020: नवरात्र के पांचवें दिन ऐसे करें स्‍कंदमाता की पूजा

Babita Pant

नई द‍िल्‍ली 22 Oct, 2020 11:37 am

Navratri 2020: नवरात्र के पांचवें दिन स्‍कंदमाता (Skandamata) की पूजा की जाती है. कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्‍हें स्‍कंदमाता कहा जाता है. मान्‍यता है कि भगवान स्कंद यानी कि कुमार कार्तिकेय देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे. कहते हैं कि मां स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. इस मृत्यु लोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है. उसके लिए मोक्ष का द्वार सुलभ हो जाता है. स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी हो जाती है.

स्‍कंदमाता का उदय
जब मां पार्वती भगवान स्‍कंद यानी कार्तिकेय की माता बनीं तो उन्‍हें स्‍कंदमाता कहा जाने लगा. स्‍कंदमाता की पूजा के साथ ही भगवान कार्तिकेय की पूजा भी अपने आप हो जाती है. स्‍कंदमाता को बुध ग्रह की स्‍वामिनी माना जाता है. 

स्‍कंदमाता का स्‍वरूप
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है. बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प है. मां की गोद में बाल स्‍कंद बैठे हुए हैं. इनका वर्ण सफेद है. कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. इनका वाहन सिंह है.

स्‍कंदमाता का प्रिय भोग
नवरात्र के पांचवें दिन भक्‍त को स्‍कंद माता को केले का भोग लगाना चाहिए. कहते हैं कि केले के भोग से देवी प्रसन्न होती हैं और करियर में ग्रोथ मिलती है.

स्‍कंदमाता मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

स्‍कंदमाता प्रार्थना
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

स्‍कंदमाता स्‍तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

स्‍कंदमाता ध्‍यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्॥
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्‍कंदमाता स्‍तोत्र
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागरम् पारपारगहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्ति भास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार संस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलाद्भुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालङ्कार भूषिताम् मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेदमार भूषणाम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्र वैरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम्
तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्।
सहस्रसूर्यराजिकां धनज्जयोग्रकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभृडवृन्दमज्जुलाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरम् सतीम्॥
स्वकर्मकारणे गतिं हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहम् सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवी पाहिमाम्॥

स्‍कंदमाता कवच
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयम् पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥
श्री ह्रीं हुं ऐं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।
सर्वाङ्ग में सदा पातु स्कन्दमाता पुत्रप्रदा॥
वाणवाणामृते हुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्या तथाग्ने च वारुणे नैॠतेअवतु॥
इन्द्राणी भैरवी चैवासिताङ्गी च संहारिणी।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

स्‍कंदमाता आरती
जय तेरी हो स्कन्द माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता॥
सबके मन की जानन हारी। जग जननी सबकी महतारी॥
तेरी जोत जलाता रहूं मैं। हरदम तुझे ध्याता रहूं मै॥
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाड़ों पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मन्दिर में तेरे नजारे। गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥
इन्द्र आदि देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए। तू ही खण्ड हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी। भक्त की आस पुजाने आयी॥

  • \
Leave Your Comment