Navratri 2020: मां कूष्मांडा (Maa Kushmanda) की पूजा नवरात्र के चौथे दिन की जाती है. मां के इस स्वरूप को ब्रह्मांड की रचना की आदि शक्ति माना जाता है. यानी जब ये ब्रहृमांड नहीं था तब देवी कूष्मांडा ने ही इसकी रचना की. मां का निवास सूर्यमंडल के भीतर का लोक है. वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल कूष्मांडा में ही है. मान्यता है कि मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है.
मां कूष्मांडा का उदय
सिद्धिदात्री का रूप धारण करने के बाद मां पार्वती सूर्य के केंद्र पर जाकर रहने लगीं ताकि वह पूरे ब्रहृमांड में ऊर्जा का विकेंद्रिकरण कर सकें. ऐसा माना जाता है कि मां कूष्मांडा सूर्य को ऊर्जा और निर्देशन देती हैं. यही वजह है कि देवी मां को सूर्य की स्वामिनी माना जाता है. कहते हैं कि मां ने अपनी हल्की सी मुस्कान से ही इस ब्रह्मांड की रचना कर दी थी. देवी मां को कद्दू यानी कि कुष्मांड की बलि प्रिय है. ब्रहृमांड की रचना और कुष्मांड से संबंध होने के कारण ही इन्हें मां कूष्मांडा कहा जाता है.
मां कूष्मांडा का स्वरूप
मां कूष्मांडा की काया सूर्य के समान ही चमकीली है. उनकी आठ भुजाएं हैं इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है. मां सिंह की सवारी करती हैं.
मां कूष्मांडा का प्रिय रंग और भोग
मां कूष्मांडा पृथ्वी पर हरियाली और वनस्पति की द्योतक भी हैं, इसलिए चौथी नवरात्रि का रंग हरा है. इस दिन हरे कपड़े पहनकर मां की पूजा करनी चाहिए और उन्हें हरी इलायची का भोग लगाना सर्वोत्तम माना गया है.
कूष्मांडा मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
कूष्मांडा प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
कूष्मांडा स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
कूष्मांडा ध्यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
कूष्मांडा स्तोत्र
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
कूष्मांडा कवच
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥
कूष्मांडा आरती
कूष्माण्डा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली। शाकम्बरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
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