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Navratri 2020: मां दुर्गा के नौ रूप, नौ रंग और नौ भोग

Babita Pant

नई द‍िल्‍ली 20 Oct, 2020 09:23 pm

Navratri 2020: नवरात्रि (Navratri) के नौ दिनों में शक्ति की देवी मां दुर्गा (Maa Durga) के अलग-अलग नौ रूपों की उपासना का विधान है. हिन्‍दू पंचांग के अनुसार एक साल में चार बार नवरात्र का उत्‍सव मनाया जाता है. नवरात्र साल में चार बार यानी कि माघ, चैत्र, आषाढ़ और अश्विन माह में आते हैं. इनमें चैत्र माह की नवरात्रि को चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri) या बसंत नवरात्र कहते हैं. चैत्र नवरात्र से ही हिन्‍दू नव वर्ष प्रारंभ होता है. अश्विन माह की नवरात्रि शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri) कहा जाता है. इसके अलावा माघ और आषाढ़ माह के नवरात्र को गुप्‍त नवरात्रि (Gupt Navratri) कहते हैं.

इन चारों नवरात्रों का अपना अलग-अलग महत्‍व है, लेकिन शारदीय नवरात्र का महात्‍म्‍य सबसे ज्‍यादा है. मान्‍यता है कि शरद नवरात्र में मां दुर्गा अपने पूरे परिवार के साथ अपने मायके यानी धरती पर आती हैं.

शारदीय नवरात्र को मां दुर्गा के महाउत्‍सव के रूप में मनाया जाता है. कहते हैं कि इन नौ दिनों में देवी मां ने मानवता के दुश्‍मन अत्‍याचारी राक्षस महिषासुर (Mahishasura) के साथ युद्ध किया और नौवें दिन उसका वध कर उसके आतंक से पूरे ब्रह्मांड को मुक्ति दिलाई. महिषासुर के वध के कारण ही मां दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. ये नौ रातें महिषासुर के साथ देवी के महायुद्ध और बुराई पर अच्‍छाई की विजय का प्रतीक हैं. इन नौ रातों का प्रत्‍येक दिन देवी के एक-एक अवतार को समर्पित है. आइए जानते हैं देवी के इन्‍हीं नौ स्‍वरूपों और उनकी विशेषताओं के बारे में:

1. मां शैलपुत्री (Maa Shailputri) 
नवरात्रि के पहले दिन घट स्‍थापना के साथ मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है. सती के रूप में अपने प्राणों की आहुति देने के बाद मां सती ने देवी पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर में जन्‍म लिया. संस्‍कृत में शैल का अर्थ है पर्वत. हिमालय की पुत्री होने के कारण ही इन्‍हें शैलपुत्री नाम दिया गया है. मां शैलपुत्री को हेमवती और पार्वती भी कहा जाता है. शक्ति के सभी नौ रूपों में मां शैलपुत्री अग्रणी हैं, इसलिए इनका पूजन भी नवरात्र के पहले दिन किया जाता है. जिस तरह मां सती का विवाह भोले नाथ से हुआ था उसी तरह शैलपुत्री के रूप में जन्‍मीं मां पार्वती भी महादेव के साथ विवाह बंधन में बंधी थीं.

मां शैलपुत्री का स्‍वरूप
मां शैलपुत्री का रूप बेहद मनोरम, शांत और भक्‍तों की हर मनोकामना पूरा करने वाला है. मां की दो भुजाएं हैं. उनके एक हाथ में त्रिशूल तो दूसरे में कमल सुशोभित है. मां शैलपुत्री बैल की सवारी करती हैं इसलिए उन्‍हें वृषारूढ़ा भी कहा गया है. मां शैलपुत्री के माथे पर अर्द्ध चंद्र हैं और इन्‍हें चंद्रमा की स्‍वामिनी माना जाता है. मान्‍यता है कि आदि शक्ति मां शैलपुत्री का पूजन करने से चंद्रमा का दोष दूर हो जाता है.

मां शैलपुत्री का प्रिय रंग, फूल और भोग
मां शैलपुत्री का प्रिय रंग सफेद है. लाल रंग शांति, आरोग्‍य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को सफेद रंग के वस्‍त्र और लाल रंग की चुनरी पहनानी चाहिए. साथ ही भक्‍त को स्‍वयं भी सफेद रंग के कपड़े पहनकर मां की आराधना करनी चाहिए. मां शैलपुत्री को भोग में सफेद रंग की वस्‍तुएं पसंद हैं. मां को गाय के दूध से बना शुद्ध घी अर्पित करना सर्वोत्तम माना गया है. कहते हैं कि मां शैलपुत्री को घी का भोग लगाने से आरोग्‍य का वरदान मिलता है. मां का प्रिय फूल चमेली है. मां शैलपुत्री का पूजन करते वक्‍त उन्‍हें चमेली के फूलों से बनी माला अवश्‍य पहनाएं.

2. मां ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini)
नवरात्र के दूसरे दिन जो भक्‍त सच्‍चे मन और श्रद्धा से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है तप करने की शक्ति प्राप्‍त होती है. मां ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि बिना तप यानी परिश्रम के सफलता प्राप्‍त नहीं की जा सकती और ईश्‍वर तक नहीं पहुंचा जा सकता है.

ब्रह्मचारिणी दो शब्‍दों से मिलकर बना है. ब्रह्मा यानी तपस्‍या और चारिणी यानी आचरण करने वाली देवी से है. मां पार्वती ने दक्ष प्रजापति के घर पुत्री रूप में जन्‍म लिया. मां पार्वती के इस सती रूप ने देवर्षि नारद के कहने पर महादेव को पाने के लिए हजारों सालों तक तपस्‍या की.

कहा जाता है कि भोले नाथ को पति रूप में पाने के लिए मां ने हजारों सालों तक केवल पुष्‍प और पत्ते कहाकर जीवन व्‍यतीत किया. यही नहीं आगे चलकर उनका तप और कठिन हो गया. उन्‍होंने भगवान शिव शंकर की पूजा करते हुए 3 हजार सालों तक केवल बिल्‍व पत्र खाए. बाद में उन्‍होंने बिल्‍व पत्र खाने भी छोड़ दिए और भूखे-प्‍यासे रहकर महादेव की आराधना में लीन हो गईं. भीषण गर्मी के थपेड़े और और तूफान के झंझावात भी मां के तप को भंग नहीं कर पाए. सती के कुंवारे रूप को ही ब्रह्मचारिणी कहा जाता है. 

मां ब्रह्मचारिणी का स्‍वरूप
मां ब्रह्मचारिणी को तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा नामों से भी पुकारा जाता है. मां ब्रह्मचारिणी का स्‍वरूपत अत्‍यंत निर्मल, शांत और पावन है. माता अपने इस स्वरूप में बिना किसी वाहन के नजर आती हैं. मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है. माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह की स्‍वामिनी हैं. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है.

मां ब्रह्मचारिणी का प्रिय भोग
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को चीनी और पंचामृत का भोग लगाएं. मान्‍यता है कि इस भोग से देवी मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्‍त को लंबी आयु का वरदान देती हैं. आज के दिन ब्राह्मण को भी दान में चीनी देनी चाहिए.

3. मां चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) 
नवरात्र के तीसरे दिन शक्ति की देवी मां दुर्गा के तीसरे रूप मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है्. देवी मां का यह स्‍वरूप वीरता, निर्भयता, सौम्‍यता और विनम्रता का प्रतीक है. मां चंद्रघंटा की कृपा से भक्‍त पराक्रमी और निर्भय हो जाता है. इनकी आराधना से सौम्यता और विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया का भी विकास होता है. मां चंद्रघंटा की उपासना से मनुष्य समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाता है.

देवी पार्वती का वैवाहिक रूप मां चंद्रघंटा हैं. महादेव शिव शंकर से विवाह करने के बाद देवी महागौरी अपने मस्‍तक पर अर्द्धचंद्र सुशोभित करने लगीं और तभी से मां पार्वती को चंद्रघंटा कहा जाने लगा. शक्ति का यह स्‍वरूप बेहद शांत और भक्‍तों की हर मनोकामना पूरा करने वाला है. अपने इस स्‍वरूप में देवी मां अपने सभी शस्‍त्रों के साथ युद्ध के लिए तैयार हैं. ऐसी मान्‍यता है कि मां के मस्‍तक पर सुशोभित चंद्रघंटी की ध्‍वनि से उनके भक्‍त के जीवन में व्‍याप्‍त सभी बुरी शक्तियों का नाश होता है. 

मां चंद्रघंटा का स्‍वरूप
माता चंद्रघंटा का रंग स्‍वर्ण के समान चमकीला है और उनके तीन नेत्र व 10 भुजाएं हैं. मां चंद्रघंटा सिंह की सवारी की सवारी करती हैं. वह अपने मस्‍तक पर अर्द्ध चंद्र धारण करती हैं. उनके मस्‍तक पर सुशोभित अर्द्धचंद्र घंटी की तरह दिखाई देता है, इसलिए भक्‍त उन्‍हें चंद्रघंटा के नाम से पुकारते हैं. मां चंद्रघंटा के 10 हाथ हैं. अपनी चार बाईं भुजाओं में वह त्रिशूल, गदा, खड्ग और कमल दल धारण करती हैं, जबकि उनकी पांचवीं भुजा वर मुद्रा में है. मां चंद्रघंटा अपनी चार दाईं भुजाओं में कमल का फूल, तीर, धनुष और जप माला धारण करती हैं, जबकि पांचवीं दाईं भुजा अभय मुद्रा में है.   

मां चंद्रघंटा का प्रिय रंग और भोग
मां चंद्रघंटा को सुनहरा रंग बेहद पसंद है. नवरात्र के तीसरे दिन भूरे या सुनहरे रंग के कपड़े पहनने चाहिए. मां को भोग में सफेद रंग का भोग लगाया जाना चाहिए. मां चंद्रघंटा को दूध, खीर और शहद का भोग लगाना सर्वोत्तम माना गया है.

4. मां कूष्‍मांडा (Maa Kushmanda)
मां कूष्‍मांडा की पूजा नवरात्र के चौथे दिन की जाती है. मां के इस स्‍वरूप को ब्रह्मांड की रचना की आदि शक्ति माना जाता है.  यानी जब ये ब्रहृमांड नहीं था तब देवी कूष्‍मांडा ने ही इसकी रचना की. मां का निवास सूर्यमंडल के भीतर का लोक है. वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल कूष्‍मांडा में ही है. मान्‍यता है कि मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है. 

मां कूष्‍मांडा का स्‍वरूप
मां की आठ भुजाएं हैं इसलिए इन्‍हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है. इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है. मां सिंह की सवारी करती हैं. 

मां कूष्‍मांडा का प्रिय रंग और भोग
मां कूष्‍मांडा पृथ्‍वी पर हरियाली और वनस्‍पति की द्योतक भी हैं, इसलिए चौथी नवरात्रि का रंग हरा है. इस दिन हरे कपड़े पहनकर मां की पूजा करनी चाहिए और उन्‍हें हरी इलायची का भोग लगाना सर्वोत्तम माना गया है.

5. स्‍कंदमाता (Skandmata)
नवरात्र के पांचवें दिन स्‍कंदमाता की पूजा की जाती है. कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्‍हें स्‍कंदमाता कहा जाता है. मान्‍यता है कि भगवान स्कंद यानी कि कुमार कार्तिकेय देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति थे. कहते हैं कि मां स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं. इस मृत्यु लोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है. उसके लिए मोक्ष का द्वार सुलभ हो जाता है. स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी हो जाती है.

स्‍कंदमाता का स्‍वरूप
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है. बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प है. इनका वर्ण सफेद है. कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. इनका वाहन सिंह है.

स्‍कंदमाता का प्रिय भोग
नवरात्र के पांचवें दिन भक्‍त को स्‍कंद माता को केले का भोग लगाना चाहिए. कहते हैं कि केले के भोग से देवी प्रसन्न होती हैं और करियर में ग्रोथ मिलती है.

6. मां कात्‍यायनी (Maa Katyayani)
नवरात्र के छठे दिन कात्‍यायनी की पूजा की जाती है. महर्षि कात्यायन की कठीन तपस्या से प्रसन्न होकर, मां ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्‍म लिया. महर्षि कात्‍यायन ने सबसे पहले इनकी पूजा की थी इसलिए इनका नाम कात्‍यायनी हो गया. ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं. भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा यमुना के तट पर की थी. मां कात्‍यायनी के पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है. मां अपने भक्‍तों को दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती हैं. माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं. 

मां कात्‍यायनी का स्‍वरूप
मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला है. इनकी चार भुजाएं हैं. माता के दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है. बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है. इनका वाहन सिंह है.

मां कात्‍यायनी का प्रिय भोग
मां कात्‍यायनी का प्रिय रंग लाल है. नवरात्र के छठे दिन भक्‍त को लाल कपड़े पहनकर इनकी पूजा करनी चाहिए और माता रानी को भी लाल वस्‍त्र पहनाने चाहिए. इस दिन मां को शहद और मीठे पान का भोग लगानाचाहिए. कहते हैं कि ऐसा करने से घर से नकारात्‍मक शक्तियों का नाश होता है.

7. मां कालरात्रि (Maa Kalratri)
नवरात्र के सातवें दिन यानी महासप्‍तमी को मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. मां काली को कई नामों से जाना जाता है, जिनमें प्रमुख हैं- काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा और चंडी. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं. दानव, दैत्य, राक्षस, भूत और प्रेत इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं. मां के भक्‍तों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय और रात्रि-भय कभी नहीं होते. अर्थात् इनकी कृपा से भक्‍त सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है. नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और दुश्मनों का नाश होता है.

मां कालरात्रि का स्‍वरूप
मां कालरात्रि का स्‍वरूप देखने में अत्‍यंत भयानक है. लेकिन मां का यह स्‍वरूप दुष्‍टों के संहार के लिए है और भक्‍तों के लिए शुभप्रद है. मां कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है और उनके बाल बिखरे हुए हैं. उन्‍होंने अपने गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला रुंड माला धारण की हुई है. मां के तीन नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं. मां की नासिका यानी नाक के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. मां अपने ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं. दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है. इनका वाहन गदहा है. 

मां कालारात्रि का प्रिय रंग और भोग
नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाना चाहिए. मान्‍यता है कि ऐसा करने से रोग व शोक से मुक्ति मिलती है और घर में सकारात्‍मक ऊर्जा प्रवेश करती है. मां के इस स्‍वरूप की पूजा नीले रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए.

8. महागौरी (Mahagauri)
नवरात्र के आठवें दिन महागौरी का पूजन किया जाता है. मां महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन और आराधना भक्तों के लिए बेहद कल्याणकारी है. मां की कृपा से भक्‍त को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि मां के इस स्‍वरूप की पूजा करने से घर में कभी धन-धान्‍य की कमी नहीं रहती है.

महागौरी का स्‍वरूप
महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर है और मां का यह स्‍वरूप अत्‍यंत शांत है.  मां के समस्त वस्त्र और आभूषण भी श्वेत हैं. इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है. महागौरी की चार भुजाएं हैं. इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है. ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे का बायां हाथ वर-मुद्रा मे है. 

महागौरी का प्रिय रंग और भोग
नवरात्र के आठवें दिन महागौरी को नारियल का भोग लगाना चाहिए. मान्‍यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और भक्‍त की सभी इच्‍छाएं पूरी होती हैं. मां के इस स्‍वरूप की पूजा गुलाबी रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए.

9. मां सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri)
नवरात्र के आखिरी दिन यानी कि नवमी को मां दुर्गा के नौवें रूप मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है. नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं. अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा करने के बाद भक्‍त नौवें दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन करते हैं. इनकी पूजा करने के बाद ही भक्‍त की लौकिक-परलौकिक मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मान्‍यता है कि मां सिद्धिदात्री की आराधना भक्त को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि की प्राप्ति होती है.

मां सिद्धिदात्री का स्‍वरूप
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप बहुत सौम्य और आकर्षक है. उनकी चार भुजाएं हैं. मां ने अपने एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख धारण किया हुआ है. सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है.

मां सिद्धिदात्री का पसंदीदा रंग और भोग 
नवमी के दिन घर में कन्‍या पूजन करना चाहिए और मां सिद्धिदात्री को हल्‍वा, पूरी, नारियल और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. इस जामुनी रंग के कपड़े पहनकर मां गौरी की पूजा करनी चाहिए.

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