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Navratri 2020: नवरात्र के सातवें दिन ऐसे करें मां कालरात्रि की पूजा

Babita Pant

नई द‍िल्‍ली 23 Oct, 2020 11:39 pm

Navratri 2020: नवरात्र के सातवें दिन यानी महासप्‍तमी (Maha Saptami) को मां कालरात्रि (Maa Kalaratri) की पूजा की जाती है. मां काली को कई नामों से जाना जाता है, जिनमें प्रमुख हैं- काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा और चंडी. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं. दानव, दैत्य, राक्षस, भूत और प्रेत इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं. मां के भक्‍तों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय और रात्रि-भय कभी नहीं होते. अर्थात् इनकी कृपा से भक्‍त सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है. नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और दुश्मनों का नाश होता है.

मां कालरात्रि का उदय
जब देवी पार्वती ने शुंभं-निशुंभ नाम के राक्षसों के वध के लिए अपनी बाहरी सुनहरी काया को हटा दिया तो वह मां कालरात्री कहलाईं. कालरात्रि मां पार्वती का सबसे भयंकर और उग्र रूप हैं. अपने इस स्‍वरूप में देवी मां भक्‍तों को अभय और वर देती हैं. देवी का यह स्‍वरूप दिखने में भयंकर होते हुए भी भक्‍तों के लिए अत्‍यंत शुभकारी है. इस वजह से मां कालरात्रि को शुभंकरी देवी भी कहा जाता है. मान्‍यता है कि मां कालरात्रि शनि ग्रह की स्‍वामिनी हैं. 

मां कालरात्रि का स्‍वरूप
मां कालरात्रि का स्‍वरूप देखने में अत्‍यंत भयानक है. लेकिन मां का यह स्‍वरूप दुष्‍टों के संहार के लिए है और भक्‍तों के लिए शुभप्रद है. मां कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है और उनके बाल बिखरे हुए हैं. उन्‍होंने अपने गले में विद्युत की तरह चमकने वाली रुंड माला धारण की हुई है. मां के तीन नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं. मां की नासिका यानी नाक के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. मां अपने ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं. दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है. बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है. इनका वाहन गदहा है. 

मां कालरात्रि की पूजा विधि
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नवरात्र के सातवें दिन नित्‍य कर्म से निवृत्त होकर स्‍नान करें व स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में पूर्व दिशा की ओर मुख कर आसन पर बैठ जाएं.
- अब हाथ जोड़कर मां कालरात्रि का ध्‍यान करें.
- इसके बाद मां की मूर्ति को पहले पंचामृत और फिर गंगाजल से स्‍नान कराएं.
- अब मां को वस्‍त्र अर्पित करें.
- इसके बाद मां को रोली, अक्षत और कुमकुम का तिलक लगाएं.
- इसके बाद उन्‍हें फल, रात की रानी के फूल और फूलों की माला अर्पित करें.
- अब उन्‍हें पान, सुपारी और लौंग अर्पित करें.
- इसके बाद धूप-दीप से मां की आरती उतारें.
- अब मां को गुड़ भोग लगाएं.
- दिन भर उपवास रखें और मां के मंत्रों का जाप करें.
- शाम को फिर से मां की आरती उतारें और भोग लगाएं.
- घर के सभी सदस्‍यों में प्रसाद वितरित कर आप स्‍वयं फलाहार करें.

मां कालारात्रि का प्रिय रंग और भोग
नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाना चाहिए. इस दिन मां को रात की रानी के फूल अर्पित करने चाहिए. मान्‍यता है कि ऐसा करने से रोग व शोक से मुक्ति मिलती है और घर में सकारात्‍मक ऊर्जा प्रवेश करती है. मां के इस स्‍वरूप की पूजा नीले रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए.

मां कालरात्रि मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥

मां कालरात्रि प्रार्थना
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

मां कालरात्रि स्‍तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां कालरात्रि ध्‍यान
करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

मां कालरात्रि स्‍तोत्र
हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

मां कालरात्रि कवच
ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥

मां कालरात्रि आरती
कालरात्रि जय जय महाकाली। काल के मुंह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतारा॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवे। महाकाली माँ जिसे बचावे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥

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