Shardiya Navratri 2020: नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी (Katyayani) की पूजा की जाती है. महर्षि कात्यायन की कठीन तपस्या से प्रसन्न होकर, मां ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया. महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले इनकी पूजा की थी इसलिए इनका नाम कात्यायनी हो गया. ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं. भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा यमुना के तट पर की थी. मां कात्यायनी के पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है. मां अपने भक्तों को दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती हैं. मां को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप और भय हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं.
मां कात्यायनी का उदय
महिषासुर के वध के लिए मां पार्वती ने देवी कात्यायनी के रूप में जन्म लिया. यह मां पार्वती का सबसे अधिक संहारक रूप है. अपने इस स्वरूप में मां को युद्ध की देवी भी कहा जाता है. इन्हें शक्ति की आदि देवी माना जाता है. वामन पुराण में मां कात्यायनी के प्राकट्य का विस्तार से वर्णन किया गया है.
वामन पुराण के 18वें अध्याय के अनुसार एक बार महिष नाम के दैत्य ने तीनों लोकों में विजय प्राप्त कर हाहाकार मचा दिया था. उसके आतंक से भयभीत होकर देवता भी भूलोक में निवास करने लगे थे. वह स्वयं को परम शक्तिशाली समझने लगा था. ऐसे में सभी देवता विष्णु लोक पहुंचे और वहां बैठे महादेव, विष्ण्ु जी और ब्रह्मा जी से करुण निवेदन करने लगे. फिर त्रिदेव, भगवान इंद्र और अन्य देवताओं के मुख से एक तेज प्रकट हुआ जो कात्यायन ऋषि के आश्रम में एकत्रित हो गया. उस शक्ति पुंज में ऋषि कात्यायन का तेज भी समा गया. सहस्त्रों सूर्यों के समान चमकीले उस तेज से मां कात्यायनी का जन्म हुआ. महर्षि कात्यायन के घर जन्म लेने के कारण ही उन्हें मां कात्यायनी कहा गया.
मां कात्यायनी का स्वरूप
मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला है. इनकी चार भुजाएं हैं. माता के दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है. बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है. इनका वाहन सिंह है.
मां कात्यायनी की पूजा विधि
- नवरात्र के छठे दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें व स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में पूर्व दिशा की ओर मुख कर आसन पर बैठ जाएं.
- अब हाथ जोड़कर मां कात्यायनी का ध्यान करें.
- इसके बाद मां की मूर्ति को पहले पंचामृत और फिर गंगाजल से स्नान कराएं.
- अब मां को वस्त्र अर्पित करें.
- इसके बाद मां को रोली, अक्षत और कुमकुम का तिलक लगाएं.
- इसके बाद उन्हें फल, फूल और फूलों की माला अर्पित करें.
- अब उन्हें पान, सुपारी और लौंग अर्पित करें.
- इसके बाद धूप-दीप से मां की आरती उतारें.
- अब मां को भोग लगाएं.
- दिन भर उपवास रखें और मां के मंत्रों का जाप करें.
- शाम को फिर से मां की आरती उतारें और भोग लगाएं.
- घर के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित कर आप स्वयं फलाहार करें.
मां कात्यायनी का प्रिय भोग
मां कात्यायनी का प्रिय रंग लाल है. नवरात्र के छठे दिन भक्त को लाल कपड़े पहनकर इनकी पूजा करनी चाहिए और माता रानी को भी लाल वस्त्र पहनाने चाहिए. इस दिन मां को शहद और मीठे पान का भोग लगानाचाहिए. कहते हैं कि ऐसा करने से घर से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है.
मां कात्यायनी मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
मां कात्यायनी प्रार्थना
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
मां कात्यायनी स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कात्यायनी ध्यान
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
मां कात्यायनी स्तोत्र
कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते॥
कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क: ठ: छ: स्वाहारूपिणी॥
मां कात्यायनी कववच
कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी॥
मां कात्यायनी आारती
जय जय अम्बे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥
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