Padmini Ekadashi 2020: हिन्दू धर्म के अनुसार मलमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadasahi) या कमला एकादशी (Kamala Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार पद्मिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से मनुष्य को कीर्ति मिलती है और अंत में वह भगवान विष्णु के परम धाम बैकुंठ को प्राप्त होता है. आपको बता दें कि हिन्दू धर्म में हर महीने दो और पूरे साल में कुल 24 एकादशियां (Ekadashi) पड़ती हैं, लेकिन इस बार अधिकमास होने के कारण दो एकादशियां और जुड़ गईं हैं, जिनके कारण इनकी संख्या 26 हो गई है. आपको बता दें कि प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास (Adhikamas) लगता है.
पद्मिनी एकादशी कब मनाई जाती है?
पद्मिनी एकादशी अधिकमास में मनाई जाती है. हिन्दू पंचांग के अनुसार जो एकादशी अधिकमास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है उसे पद्मिनी एकादशी कहते हैं. यही वजह है कि पद्मिनी एकादशी के लिए कोई विशेष महीना तय नहीं है. ऐसे में अधिकमास के शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. अधिकमास में पड़ने के कारण ही पद्मिनी एकादशी को अधिक मास एकादशी (Adhikmas Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. इस बार पद्मिनी एकादशी 27 सितंबर को है.
पद्मिनी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
पद्मिनी एकादशी की तिथि: 27 सितंबर 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 26 सितंबर 2020 को शाम 6 बजकर 59 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 27 सितंबर 2020 को शाम 7 बजकर 46 मिनट तक
पारण का समय: 28 सितंबर 2020 को सुबह 6 बजकर 13 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक
पद्मिनी एकादशी की पूजा विधि
- अगर आप पद्मिनी एकादशी का व्रत करना चाहते हैं तो दशमी यानी कि एक दिन पहले से ही व्रत के नियमों का पालन करें.
- दशमी के दिन कांसे की थाली या बर्तन में जौ और चावल से बना भोजन ग्रहण करें और नमक न खाएं.
- दशमी को जमीन पर सोएं और ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करें.
- एकादशी के दिन सुबह-सवेरे उठकर शौच से निवृत्त होकर 12 बार कुल्ला करें.
- अब स्नान कर सफेद रंग के वस्त्र धारण करें.
- इसके बाद घर के मंदिर में आसन ग्रहण कर हाथ जोड़ें और मन ही मन व्रत का संकल्प लें.
- अब एक चौकी पर भगवान का आसन लगाएं और उस पर गेहूं की ढेरी रखें.
- एक कलश में जल भरकर उसे गेहूं की ढेरी के ऊपर रखें.
- कलश पर पान के पत्ते लगाकर नारियल रखें.
- अब श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या फोटो में गंगाजल छिड़कें.
- अब उन्हें वस्त्र अर्पित कर तिलक व अक्षत लगाएं.
- अब श्री हरि विष्णु को फूलों की माला पहनाएं.
- फिर उन्हें फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें.
- अब ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य से भगवान का पूजन करें.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय विधि-विधान से आरती उतारें और व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
- अब विष्णु जी को भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें.
- रात्रि में फलाहार ग्रहण करें. रात्रि जागरण कर भगवद् भजन गाएं.
- अगले दिन यानी कि द्वादश को किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर प्रणाम करें व विदा करें.
- स्थापित किए गए कलश के जल को अपने घर में छिड़क दें. बचे हुए जल को किसी पौधे या तुलसी में चढ़ा दें.
- इसके बाद आप घर के सभी सदस्यों के साथ मौन रहकर भोजन करते हुए व्रत का पारण करें.
पद्मिनी एकादशी की व्रत कथा
पद्मिनी एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है- त्रेतायुग में हैहय वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था. उस राजा की एक हजार परम प्रिय स्त्रियां थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो कि उनके राज्यभार को संभाल सके. देवता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकित्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए, लेकिन सब असफल रहे. तब राजा ने तपस्या करने का निश्चय किया.
महाराज के साथ उनकी परम प्रिय रानी, जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या थीं, राजा के साथ वन में जाने को तैयार हो गईं. दोनों अपने मंत्री को राज्यभार सौंपकर राजसी वेष त्यागकर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए.
राजा ने उस पर्वत पर 10 हजार वर्ष तक तप किया, परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई. तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अत्रि की पत्नी अनुसूया ने कहा, "12 मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है, जो 32 मास पश्चात आता है. उसमें द्वादशी युक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी. इस व्रत के करने से भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे."
रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एकादशी का व्रत किया. उन्होंने एकादशी के दिन निराहार रहकर रात्रि में जागरण किया. इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया. इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तवीर्य उत्पन्न हुए, जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था. तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था.
हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो कोई भी भक्त मलमास शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत करते हैं औ संपूर्ण कथा पढ़ते या सुनते हैं, वे भी यश के भागी होकर विष्णुलोक को प्राप्त होते हैं.
Leave Your Comment