Papankusha Ekadashi 2020: हिन्दू धर्म में पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) का बड़ा महात्म्य है. इस दिन भगवान पद्मनाभ (Padmanabha) की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस एकादशी (Ekadashi) का व्रत करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और भक्त संसार रूपी इस भवसागर को पार कर अंत में स्वर्ग लोक की प्राप्ति करता है. कहते हैं कि अगर अज्ञानतावश पाप हो जाएं और भक्त पापांकुशा एकादशी के दिन श्री हरि को हाथ जोड़कर नमस्कार कर लें तो उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं. हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी के बराबर दूसरा कोई व्रत नहीं है. कहते हैं जब तक मनुष्य श्री पद्मनाभ भगवान को समर्पित इस एकादशी का व्रत नहीं करता, तब तक उसकी देह में पाप वास करते रहते हैं.
पापांकुशा एकादशी का महत्व
पापांकुशा एकादशी का विशेष महत्व है. यह एकादशी सभी पापों को हरने वाली है इसलिए इसका नाम पापांकुशा एकादशी रखा गया है. कहते हैं कि इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं जीवन-मरण के बंधन से छुटकारा मिलने के बाद श्री हरि उसे अपने निवास स्थान बैकुंठ धाम में स्थान देते हैं. महाभारत काल में स्वयं श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठर को पापांकुशा एकादशी का महत्व बताते हुए कहा था कि यह एकादशी पाप का निरोध करती है. अर्थात पाप कर्मों से रक्षा करती है. इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं.
पापांकुशा एकादशी कब मनाई जाती है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन शुक्ल एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल अक्टूबर के महीने में आती है. इस बार यह एकादशी 26 अक्टूबर को है.
पापांकुशा की तिथि और शुभ मुहूर्त
पापाकुशा की तिथि: 26 अक्टूबर 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 26 अक्टूबर 2020 को सुबह 9 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 27 अक्टूबर 2020 को सुबह 10 बजकर 46 मिनट तक
पारण का समय: 28 अक्टुबर 2020 को सुबह 6 बजकर 30 मिनट से सुबह 8 बजकर 44 मिनट तक
पापांकुशा एकादशी की पूजा विधि
अगर आप पापांकुशा एकादशी का व्रत करना चाहते हैं तो द्वादशी यानी कि एक दिन पहले से ही व्रत के नियमों का पालन करें.
- दशमी के दिन कांसे की थाली या बर्तन में जौ और चावल से बना भोजन ग्रहण करें और नमक न खाएं.
- दशमी को जमीन पर सोएं और ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करें.
- एकादशी के दिन सुबह-सवेरे उठकर शौच से निवृत्त होकर 12 बार कुल्ला करें.
- अब स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- इसके बाद घर के मंदिर में आसन ग्रहण कर हाथ जोड़ें और मन ही मन व्रत का संकल्प लें.
- अब एक चौकी पर भगवान का आसन लगाएं और उस पर गेहूं की ढेरी रखें.
- एक कलश में जल भरकर उसे गेहूं की ढेरी के ऊपर रखें.
- कलश पर पान के पत्ते लगाकर नारियल रखें.
- अब श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या फोटो में गंगाजल छिड़कें.
- अब उन्हें वस्त्र अर्पित कर तिलक व अक्षत लगाएं.
- अब श्री हरि विष्णु को फूलों की माला पहनाएं.
- फिर उन्हें फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें.
- अब ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य से भगवान का पूजन करें.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय विधि-विधान से आरती उतारें और व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
- अब विष्णु जी को भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें.
- रात्रि में फलाहार ग्रहण करें. रात्रि जागरण कर भगवद् भजन गाएं.
- अगले दिन यानी कि द्वादश को किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर प्रणाम करें व विदा करें.
- स्थापित किए गए कलश के जल को अपने घर में छिड़क दें. बचे हुए जल को किसी पौधे या तुलसी में चढ़ा दें.
- इसके बाद आप घर के सभी सदस्यों के साथ मौन रहकर भोजन करते हुए व्रत का पारण करें.
पापांकुशा व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार बहुत पहले विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक महाक्रूर बहेलिया रहता था. उसने अपनी सारी जिंदगी, हिंसा,लूट-पाट, मद्यपान और झूठे भाषणों में व्यतीत कर दी. जब उसके जीवन का अंतिम समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाने की आज्ञा दी. यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है. मृत्यु भय से भयभीत वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहुंचा. महर्षि ने दया दिखाकर उससे पापाकुंशा एकादशी का व्रत करने को कहा. इस प्रकार पापाकुंशा एकादशी का व्रत-पूजन करने से क्रूर बहेलिया को भगवान की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति हो गई.
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