Parama Ekadashi 2020: अधिक मास (Adhik Maas) में दो एकादशियां पड़ती है. शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी (padmini Ekadashi), जबकि कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा एकादशी (Parama Ekadashi) कहते हैं. परमा एकादशी के दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की पूजा का विधान है. मान्यता है कि परमा एकादशी का व्रत करने से भक्त को दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है.
परमा एकादशी कब है?
अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी परमा एकादशी के नाम से जानती जाती है. यह एकादशी अधिकमास के महीने में आती है इसलिए कोई दिन सुनिश्चित नहीं है. जिस तरह अधिकमास तीन साल में एक बार आता है, उसी तरह परमा एकादशी भी तीन साल में एक बार आती है. इस बार परमा एकादशी 13 अक्टूबर को है.
परमा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
परमा एकादशी की तिथि: 13 अक्टूबर 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 12 अक्टूबर 2020 को शाम 4 बजकर 38 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 13 अक्टूबर 2020 को शाम 2 बजकर 35 मिनट तक
पारण का समय: 14 अक्टूबर 2020 को सुबह 6 बजकर 21 मिनट से सुबह 8 बजकर 40 मिनट तक
परमा एकादशी का महत्व
अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा, पुरुषोत्तमी या कमला एकादशी के नाम से जाना जाता है. हिन्दू धर्म में परमा एकादशी का विशेष महत्व है. मान्यता है कि जो कोई भी भक्त सच्चे मन, श्रद्धा और भक्ति भाव व विधि पूर्वक परमा एकादशी का व्रत करता है उसे सभी दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है. कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने से दुख-दरिद्रता दूर होती है और धन-वैभव, ऐश्वर्य व सुख-संपदा का आगमन होता है. सभी सिद्धियों की दाता हाने के कारण ही इसे परमा एकादशी कहा जाता है.
परमा एकादशी की पूजा विधि
- एकादशी के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में आसन पर बैठें और व्रत का संकल्प लें.
- अब एक चौकी पर भगवान का आसन लगाएं और उस पर गेहूं की ढेरी रखें.
- एक कलश में जल भरकर उसे गेहूं की ढेरी के ऊपर रखें.
- कलश पर पान के पत्ते लगाकर नारियल रखें.
- अब श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या फोटो में गंगाजल छिड़कें.
- अब उन्हें वस्त्र अर्पित कर तिलक व अक्षत लगाएं.
- अब श्री हरि विष्णु को फूलों की माला पहनाएं.
- फिर उन्हें फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें.
- अब ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य से भगवान का पूजन करें.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय विधि-विधान से आरती उतारें और व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
- अब विष्णु जी को भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें.
- रात्रि में फलाहार ग्रहण करें. रात्रि जागरण कर भगवद् भजन गाएं.
- अगले दिन यानी कि द्वादश को किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर प्रणाम करें व विदा करें.
- स्थापित किए गए कलश के जल को अपने घर में छिड़क दें. बचे हुए जल को किसी पौधे या तुलसी में चढ़ा दें.
- इसके बाद आप भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
परमा एकादशी की कथा
काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास करता था. ब्राह्मण बहुत धर्मात्मा था और उसकी पत्नी पतिव्रता स्त्री थी. यह परिवार बहुत सेवाभावी था. दोनों स्वयं भूखे रह जाते परंतु अतिथियों की सेवा हृदय से करते थे. धनाभाव के कारण एक दिन ब्राह्मण ने अपनी पत्नी कहा- "धनोपार्जन के लिए मुझे परदेस जाना चाहिए क्योंकि इतने कम धनोपार्जन से परिवार चलाना अति कठिन काम है."
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा, "मनुष्य जो कुछ पाता है वह अपने भाग्य से ही पाता है. हमें पूर्व जन्म के कर्मानुसार उसके फलस्वरूप ही यह गरीबी मिली है अत: यहीं रहकर कर्म कीजिए जो प्रभु की इच्छा होगी वही होगा."
पत्नी की बात ब्राह्मण को जंच गई और उसने परदेस जाने का विचार त्याग दिया. एक दिन संयोगवश कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे तो ब्राह्मण के घर पधारे. ऋषि कौण्डिल्य को अपने घर पाकर दोनों अति प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि की खूब आव--भगत की.
उनका सेवा भाव देखकर ऋषि काफी खुश हुए और पति-पत्नी द्वारा गरीबी दूर करने का प्रश्न पूछने पर ऋषि ने उन्हें मलमास के कृष्ण पक्ष में आने वाली पुरुषोत्तमी एकादशी करने की प्रेरणा दी. व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए. इसके बाद भगवान की पूजा करनी चाहिए. फिर ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए.
उन्होंने कहा इस एकादशी का व्रत दोनों रखें. यह एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है. धनाधिपति कुबेर ने भी इस एकादशी व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया.
ऋषि की बात सुनकर दोनों आनंदित हो उठे और समय आने पर सुमेधा और उनकी पत्नी ने विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत रखा जिससे उनकी गरीबी दूर हो गई और पृथ्वी पर काफी वर्षों तक सुख भोगने के पश्चात वे पति-पत्नी श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गए.
अत: हे नारद! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा भगवान विष्णु निश्चित ही कल्याण करते हैं.
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