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Parivartini Ekadashi 2020: जानिए परिवर्तिनी एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्‍व

PujaPandit Desk

27 Aug, 2020 12:39 pm

Parivartini Ekadashi 2020: हिन्‍दू धर्म में परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) का बड़ा महात्‍म्‍य है. इसे वामन एकादशी (Vamana Ekadashi) या पद्मा जयंती (Padma Jayanti) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु की पूजा का विधान है. मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से भक्‍त को मोक्ष की प्राप्‍ति होती है और उसके लिए स्‍वर्ग के द्वार खुल जाते हैं. इस एकादशी को सभी पापों का शमन करने वाली माना गया है.

परिवर्तिनी एकादशी कब मनाई जाती है
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद यानी कि भादो महीने के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. आमतौर पर यह अनंत चतुर्दशी से तीन दिन पहले आती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार ये एकादशी हर साल अगस्‍त या सितंबर के महीने में आती है. इस बार परिवर्तिनी एकादशी 29 अगस्‍त को है.

परिवर्तिनी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
परिवर्तिनी एकादशी की तिथि: 29 अगस्‍त 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 28 अगस्‍त 2020 को सुबह 8 बजकर 38 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्‍त: 29 अगस्‍त 2020 को सुबह 8 बजकर 17 मिनट तक
पारण का समय: 30 अगस्‍त 2020 को सुबह 5 बजकर 58 मिनट से सुबह 8 बजकर 21 मिनट तक


परिवर्तिनी एकादशी का महत्‍व
परिवर्तिनी एकादशी को कई नामों से जाना जाता है. इस एकादशी को डोल ग्‍यारस, जयझूलनी एकादशी, वामन एकादशी, पद्मा एकादशी और पार्श्‍व एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं कि इस डोल ग्‍यारस का व्रत किए बिना जन्‍माष्‍टमी का व्रत पूर्ण नहीं होता है. इस दिन भगवान विष्‍णु के वामन रूप की पूजा की जाती है, इसलिए इसे वामन एकादशी भी कहा जाता है. मान्‍यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु के वामन रूप की पूजा करने से तीनों लोकों की पूजा हो जाती है.

इस एकादशी का महत्‍व इसलिए भी है क्‍योंकि इस दिन भगवान विष्‍णु शयन मुद्रा में करवट लेते हैं. करवट बदलने से उनके स्‍थान में परिवर्तन हो जाता है इसलिए परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं. दरअसल चौमास यानी कि आषाढ़, श्रावण, भादो और अश्विन में भगवान विष्‍णु सोते रहते हैं और फिर देवउठनी एकादशी के दिन ही उठते हैं. लेकिन इस दौरान एक समय ऐसा भी आता है जब सोते हुए श्री हरि विष्‍णु अपनी करवट बदलते हैं. यह समय भादो मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी यानी परिवर्तिनी एकादशी का होता है. पौराणिक मान्‍यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से भक्‍त को वाजपेय यज्ञ के बराबर फिल मिलता है और उसके सभी ज्ञात व अज्ञात पाप नष्‍ट हो जाते हैं. इसे पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ये देवी लक्ष्मी का आह्लादकारी व्रत है इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन करना श्रेष्ठ माना गया है. 

परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि
 अगर आप एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं तो दशमी यानी एक दिन पहले से ही व्रत के नियमों का पालन करें.
- दशमी से ही ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें.
- एकादशी के दिन स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें.
- अब एक लोटे में पानी लेकर उसमें गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं और उसे अपने ऊपर छिड़कें.
- इसके बाद घर के मंदिर में आसन ग्रहण कर हाथ जोड़ें और मन ही मन व्रत का संकल्‍प लें.
- अब एक चौकी पर भगवान का आसन लगाएं और उस पर गेहूं की ढेरी रखें.
- एक कलश में जल भरकर उसे गेहूं की ढेरी के ऊपर रखें.
- कलश पर पान के पत्ते लगाकर नारियल रखें.
- अब श्रीहरि विष्‍णु की मूर्ति या फोटो में गंगाजल छिड़कें. अगर संभव हो तो भगवान विष्‍णु के वामन रूप की मूर्ति या फोटो रखें.
- अब उन्‍हें वस्‍त्र अर्पित कर तिलक व अक्षत लगाएं. 
- अब श्री हरि विष्‍णु को फूलों की माला पहनाएं.
- फिर उन्‍हें फूल, ऋतु फल और तुलसी दल अर्पित करें.
- अब धूप-दीप से विष्‍णु जी की आरती उतारें.
- दिन भर उपवास रखें.
- शाम के समय विधि-विधान से आरती उतारें और व्रत कथा पढ़ें या सुनें.
- अब विष्‍णु जी को भोग लगाएं और परिवार के सभी सदस्‍यों में प्रसाद वितरित करें.
- भगवान विष्‍णु के साथ ही इस दिन मां लक्ष्‍मी की भी विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए.
- रात्रि में फलाहार ग्रहण करें. रात्रि जागरण कर भगवद् भजन गाएं.
- अगले दिन यानी कि द्वादश को किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान देकर प्रणाम करें व विदा करें.
- स्‍थापित किए गए कलश के जल को अपने घर में छिड़क दें. बचे हुए जल को किसी पौधे या तुलसी में चढ़ा दें.
- इसके बाद आप स्‍वयं भी व्रत का पारण करें.

परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है.

पाण्डुनन्दन अर्जुन ने कहा- "हे प्रभु! भादो की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसके वत का क्या विधान है? उस एकादशी के उपवास को करने से किस फल की प्राप्ति होती है. हे कृष्ण! कृपा कर यह सब समझाकर कहिए.'

श्रीकृष्ण ने कहा, "हे पार्थ! भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जयंती एकादशी भी कहते हैं. इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही सभी पापों का शमन हो जाता है और मनुष्य स्वर्ग का अधिकारी बन जाता है. इस जयंती एकादशी की कथा से नीच पापियों का भी उद्धार हो जाता है. यदि कोई धर्मपरायण मनुष्य एकादशी के दिन मेरा पूजन करता है तो मैं उसको संसार की पूजा का फल देता हूं. जो मनुष्य मेरी पूजा करता है, उसे मेरे लोक की प्राप्ति होती है. इसमें तनिक भी सन्देह नहीं. जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भगवान श्रीवामन का पूजन करता है, वह तीनों देवता अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश की पूजा करता है. हे पार्थ! जो मनुष्य इस एकादशी का उपवास करते हैं, उन्हें इस संसार में कुछ भी करना शेष नहीं रहता. इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं.'

ये सुन विस्मित होकर अर्जुन ने कहा, "हे जनार्दन! आपके वचनों को सुनकर मैं भ्रम में पड़ गया हूं कि आप किस प्रकार सोते तथा करवट बदलते हैं? आपने बलि को क्यों बांधा और वामन रूप धारण करके क्या लीलाएं कीं. चातुर्मास्य व्रत का विधान क्या है तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्त्तव्य है, कृपया कर सब आप विस्तारपूर्वक कहिए.'

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! अब तुम समस्त पापों का शमन करने वाली इस कथा का ध्यानपूर्वक श्रवण करो. त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर था. वो अत्यन्त भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था. वह सदा यज्ञ, तप आदि किया करता था. अपनी इसी भक्ति के प्रभाव से वह स्वर्ग में देवेन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा. देवराज इन्द्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन नहीं कर सके और भगवान श्रीहरि के पास जाकर प्रार्थना करने लगे. अन्त में मैंने वामन रूप धारण किया और तेजस्वी ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की." यह सुनकर अर्जुन ने कहा- "हे लीलापति! आपने वामन रूप धारण करके उस बलि को किस प्रकार जीता, कृपा कर यह सब विस्तारपूर्वक बताइए.''

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "मैंने वामन रूप धारण करके राजा बलि से याचना की- हे राजन! तुम मुझे तीन पग भूमि दान दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा."

"राजा बलि ने इस छोटी-सी याचना को स्वीकार कर लिया और भूमि देने को तैयार हो गया. जब उसने मुझे वचन दे दिया, तब मैंने अपना आकार बढ़ाया और भूलोक में पैर, भुवन लोक में जंघा, स्वर्ग लोक में कमर, महलोक में पेट, जनलोक में हृदय, तपलोक में कण्ठ और सत्यलोक में मुख रखकर अपने शीर्ष को ऊंचा उठा लिया. उस समय सूर्य, नक्षत्र, इन्द्र तथा अन्य देवता मेरी स्तुति करने लगे. तब मैंने राजा बलि से पूछा कि हे राजन! अब मैं तीसरा पग कहां रखूं. इतना सुनकर राजा बलि ने अपना शीर्ष नीचे कर लिया."

"तब मैंने अपना तीसरा पग उसके शीर्ष पर रख दिया और इस प्रकार देवताओं के हित के लिए मैंने अपने उस असुर भक्त को पाताल लोक में पहुंचा दिया तब वह मुझसे विनती करने लगा. मैने उससे कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा."

"भादों के शुक्ल पक्ष की परिवर्तिनी नामक एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है."

परिवर्तिनी एकादशी की कथा समाप्‍त हुई.

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