अब अनाज, दालें, तेल के बीज, खाने के तेल, और आलू-प्याज़ की गिनती आवश्यक वस्तुओं में नहीं होगी. राज्यसभा ने एसेंशियल कमोडिटीज़ एक्ट या आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) बिल को 22 सितंबर को ध्वनि मत से पास कर दिया. ये नया क़ानून, जून महीने में सरकार द्वारा जारी उस अध्यादेश की जगह लेगा जिसके तहत इन सभी चीज़ों को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से बाहर कर दिया गया था.
सरकार का कहना है कि वो इस क़ानून के ज़रिए इन वस्तुओं के कारोबार में निजी निवेशकों के निवेश से डर को दूर करने की कोशिश है. क्योंकि, इन नियमों के चलते ही निजी निवेशक इन वस्तुओं के कारोबार में इन्वेस्ट करने से बचते रहे हैं. इस बिल के पास हो जाने से इन सभी सामानों का उत्पादन करने, उन्हें लाने-ले जाने, डिस्ट्रीब्यूशन करने और आपूर्ति करने में अब सरकारी नियम क़ायदे बाधा नहीं बनेंगे. और इससे अर्थव्यवस्था, कृषि क्षेत्र और उत्पादकों को फ़ायदा होगा. सरकार ने ये दावे उस समय भी किए थे जब ये अध्यादेश जारी किया गया था.
संसद ने आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया
— पीआईबी हिंदी (@PIBHindi) September 22, 2020
यह कानून कोल्ड स्टोरेज में ज्यादा निवेश, खाद्य आपूर्ति श्रृंखला का आधुनिकीकरण, मूल्य स्थिरता का निर्माण, प्रतिस्पर्धी बाजार का वातावरण और कृषि उपज की बर्बादी को रोकने में सहायता करेगाhttps://t.co/QWjTlbSSHf pic.twitter.com/0u9McCAuz8
इस मुद्दे पर राज्यसभा में संक्षिप्त परिचर्चा का जवाब देते हुए उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री रावसाहेब पाटिल दानवे ने कहा कि इन सामानों की गिनती आवश्यक वस्तुओं में होने के कारण इनका स्टॉक जमा करने में बाधाएं आ रही थीं. और, इसी कारण से कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे का विकास नहीं हो पा रहा था.
आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act)को आज से 65 साल पहले वर्ष 1955 में बनाया गया था. इसका मक़सद था कि जनता के इस्तेमाल की ज़रूरी चीज़ों के उत्पादन, भंडारण और बिक्री पर सरकारी कंट्रोल रखा जा सके. लेकिन, अब इस क़ानून में बदलाव के बाद सरकार इन सामानों की स्टॉक लिमिट पर बेहद असाधारण परिस्थितियों जैसे कि राष्ट्रीय आपदा, अकाल या दाम में बेतहाशा वृद्धि के समय में ही पाबंदियां लगा सकेगी. यानी अब कोई भी असीमि मात्रा में इन वस्तुओं का स्टॉक रख सकेगा.
भारत इनमें से ज़्यादातर सामानों का अपनी ज़रूरत से अधिक उत्पादन करता है. लेकिन, स्टॉक लिमिट होने और कोल्ड स्टोरेज की क्षमताएं न होने के कारण किसानों को अक्सर अपनी उपज का भरपूर मूल्य नहीं मिल पाता है. अक्सर सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम को लगाकर इन चीज़ों के दाम सीमित करने की कोशिश करती है. राज्यसभा ने ये क़ानून उस समय पास किया, जब विपक्ष ने संसद का बहिष्कार कर रखा है. यानी, सरकार ये क़ानून बिना किसी विरोध के पास कराने में सफल रही.
इस क़ानून का विरोध करने वालों का कहना है कि इससे निजी व्यापारी भारी मात्रा में अनाज, दालें, तेल के बीज, खाने के तेल, और आलू-प्याज़ जैसे ज़रूरी सामान का भंडारण करके पहले इसकी किल्लत पैदा करेंगे. और फिर इसके दाम बढ़ाकर बेचेंगे. इससे मुनाफ़ाखोरी को बढ़ावा मिलेगा.
जब सरकार ने इस साल जून में आवश्यक वस्तु अधिनियम को बदलने वाला अध्यादेश जारी किया था, तब भी इसका विरोध किया गया था. आपको बता दें कि सरकार कोई भी क़ानून संसद की मंज़ूरी के बिना नहीं लागू कर सकती. और जिस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा हो और कोई क़ानून ज़रूरी हो जाए, तो उसके लिए सरकार के पास अध्यादेश जारी करने का अधिकार है. लेकिन, छह महीनों के भीतर इस अध्यादेश को संसद और राष्ट्रपति से मंज़ूरी मिलनी ज़रूरी होती है.
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