सोमवार सुबह जब लोगों के घर पर अख़बार पहुंचे, तो पहले पेज पर ख़बर नहीं, बड़ा सा विज्ञापन था. यूं तो अख़बारों के पहले पन्ने पर विज्ञापन कोई नई बात नहीं. मगर, ये विज्ञापन असल में एक नई जंग का एलान है. इस जंग का एलान भारत की ई-कॉमर्स कंपनी पेटीएम ने किया है. असल में पेटीएम ने भारत में एंड्रॉयड ऐप निर्माताओं के लिए एक मिनी ऐप स्टोर लॉन्च किया है.
तकनीक की दुनिया में यूं तो ये कोई बड़ी बात नहीं. मगर, पेटीएम के मायने और मक़सद बड़े गहरे हैं. उसने, डिजिटल दुनिया के दो सबसे बड़े खिलाड़ियों, गूगल और एप्पल को चुनौती दी है.
पूरी कहानी समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा. 18 सितंबर को तकनीकी कंपनी गूगल ने अपने प्ले स्टोर से पेटीएम के ऐप को अस्थायी तौर पर हटा दिया था.
Dear Paytm'ers,
— Paytm (@Paytm) September 18, 2020
Paytm Android app is temporarily unavailable on Google's Play Store for new downloads or updates. It will be back very soon.
All your money is completely safe, and you can continue to enjoy your Paytm app as normal.
हालांकि, कुछ ही घंटों के बाद पेटीएम ऐप दोबारा गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध हो गया था. लेकिन, गूगल का आरोप था कि पेटीएम उसके प्लेस्टोर की नीतियों का उल्लंघन करके डिजिटल जुआख़ोरी को बढ़ावा दे रहा था.
ऊपरी तौर पर तो आपको लगेगा कि ये नैतिकता का तकाज़ा था, जो पेटीएम ऐप को गूगल प्ले स्टोर से हटा लिया गया. लेकिन, डिजिटल दुनिया की नैतिकताएं बिल्कुल अलग धरातल पर होती हैं. तो, असल कहानी ये थी कि पेटीएम अपने ऐप के ज़रिए जो गेम खिला रहा था, उसमें यूज़र्स को इन ऐप परचेज़ यानी प्वाइंट्स या अन्य सिम्बोलिक चीज़ें बेची जा रही थीं.
और गूगल इन-ऐप परचेज़ के पेटीएम और अन्य ऐसे ही ऐप के मुनाफ़े में अपनी हिस्सेदारी यानी तीस प्रतिशत कमीशन मांग रहा था. जब पेटीएम ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, तो गूगल ने दंड के तौर पर पेटीएम के ऐप को अस्थायी तौर पर अपने प्ले स्टोर से हटा दिया.
पूरे लेन-देन को ऐसे समझिए. मान लीजिए कि आप प्ले स्टोर से कोई ऐप डाउनलोड करते हैं. और वो ऐप मुफ़्त है. अब ऐप बनाने वाले ने तो उसे डेवेलप करने में काफ़ी पैसा लगाया हुआ है. उसे लागत भी वसूलनी है और ऐप डेवेलप करने में किए गए इन्वेस्टमेंट पर मुनाफ़ा भी कमाना है.
तो, वो अपने ऐप के ज़रिए आपको वर्चुअल सामान बेचता है. जो आप हाथ से छू नहीं सकते. महसूस नहीं कर सकते. लेकिन, वो आपके एकाउंट में दर्ज रहेगा. उसका एक मूल्य जो ऐप के डेवेलपर तय करेंगे, वो आपके खाते में दिखेगा. इन ऐप परचेज़ को डेटिंग ऐप्स से लेकर गेमिंग ऐप्स तक बढ़ावा देते हैं.
डेटिंग ऐप्स पर आप प्वाइंट ख़रीद सकते हैं. जिसकी मदद से आपको डेटिंग पार्टनर को खोजने में मदद मिलती है. जैसे कि टिंडर ऐप डाउनलोड करके इन्सटॉल करने में आपको पैसे नहीं ख़र्च करने होंगे. मगर, डेटिंग पार्टनर की तलाश के लिए आपको उनकी कुछ स्कीम में से किसी एक को लेना होगा. ऐप डेवेलपर्स का दावा है कि ये पैसे ख़र्च करके आपको डेटिग पार्टनर तलाशने में आसानी हो जाएगी.
इसी तरह गेमिंग के ऐप्स हैं, जो जीतने पर कुछ प्वाइंट या ऐसे ही वर्चुअल इनाम देते हैं. और आप अगर हारने लगते हैं, तो यही वर्चुअल प्वाइंट आप उनसे ख़रीदकर गेम में बने रह सकते हैं.
इससे ऐप डेवेलपर्स को काफ़ी कमाई होती है. गूगल और एप्पल इन ऐप परचेज़ पर तीस प्रतिशत कमीशन लेते हैं.
एप्पल तो इस मामले में हमेशा ही सख़्त रहा है. वो अपने ऐप स्टोर पर मौजूद किसी भी ऐप की इन ऐप परचेज़ पर 30 फ़ीसद कमीशन लेता रहा है. लेकिन, इस मामले में गूगल अब तक सख़्त नहीं था. लेकिन, हाल के कुछ महीनों के दौरान गूगल ने भी एप्पल की तरह इन ऐप परचेज़ पर अपने कमीशन को सख़्ती से वसूलना शुरू किया है.
पेटीएम समेत कई भारतीय ऐप ऐसे हैं, जिनसे गूगल ने अब ये वसूली करनी शुरू की है, जिससे बहुत से भारतीय स्टार्ट अप ऐप को अपने मुनाफ़े का एक बड़ा हिस्सा गूगल से शेयर करना पड़ रहा है.
नतीजा ये कि पेटीएम की अगुवाई में अब इन स्टार्ट अप कंपनियों ने भारत सरकार से मांग की है कि वो आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत एक अलग ऐप स्टोर विकसित करे, जिससे इन स्टार्ट अप कंपनियों को अपना मुनाफ़ा गूगल जैसे टेक जायंट से शेयर न करना पड़े.
और इसी कड़ी का नया सिलसिला सोमवार को अख़बार के पहले पन्ने पर विज्ञापन के तौर पर दिखा है.
मगर, स्टोरी इतनी सिम्पल है नहीं.
भारत के ऐप स्टोर बाज़ार में गूगल के एन्ड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम का बोलबाला है. इंडिया में 50 करोड़ से ज़्यादा स्मार्टफ़ोन हैं. इनमें से 95 प्रतिशत, गूगल के एन्ड्रॉयड सिस्टम से चलते हैं. वहीं, एप्पल के आईओएस (iOS) की हिस्सेदारी साढ़े तीन प्रतिशत के आस-पास है.
ज़ाहिर है, अगर गूगल के ऑपरेटिंग सिस्टम की मोनोपोली है, तो शर्तें भी वही तय करेगा और लागू भी वही करेगा.
भारत में गूगल के प्ले स्टोर और एप्पल के ऐप स्टोर के अलावा एक सरकारी ऐप स्टोर भी है, जिस पर सरकारी ऐप्स उपलब्ध हैं. इस ऐप स्टोर को C-DAC ने विकसित किया है. हालांकि, इनमें से कोई ऐप स्टोर अभी गूगल या एप्पल से मुक़ाबला करने की स्थिति में नहीं है.
और, पेटीएम व सरकार के अपने मिनी ऐप स्टोर भी गूगल के ही ऑपरेटिंग सिस्टम एन्ड्रॉयड पर उपलब्ध हैं.
गूगल और एप्पल जैसी कंपनियां, अपने प्ले स्टोर पर अरबों डॉलर का निवेश करती हैं. फिलहाल न तो सरकार, और न ही कोई भारतीय तकनीकी या स्टार्ट अप कंपनी इस हैसियत में है कि इतनी भारी रक़म का निवेश करके, स्मार्टफ़ोन के लिए एक अलग ऑपरेटिंग सिस्टम या प्ले स्टोर को गूगल या एप्पल के मुक़ाबले खड़ा कर सके.
ऐसे में पेटीएम का मिनी ऐप स्टोर लॉन्च करना एक प्रतीकात्म विरोध अधिक है.
इसका फ़ायदा भी हुआ है. भारतीय स्टार्ट अप कंपनियों द्वारा गूगल के 30 प्रतिशत कमीशन काटने का विरोध होने पर अब गूगल ने एलान किया है कि वो अपने प्ले स्टोर की बिलिंग पॉलिसी भारत में अप्रैल 2022 तक नहीं लागू करेगा.
गूगल के लिए भारत सबसे बड़ा बाज़ार है और दुनिया भर में चीन के बाद इंटरनेट का दूसरा सबसे बड़ा मार्केट. ऐसे में यहां की कंपनियों का विरोध, गूगल को बहुत महंगा पड़ सकता है.
लेकिन, एक समस्या ये है कि भारत, गूगल का सबसे बड़ा यूज़र मार्केट भले हो, पर यहां से उसे आमदनी बहुत कम होती है. ऐसे में देर सबेर उसे प्ले स्टोर बिलिंग नीति को लागू करना ही होगा.
वैसे, ऐसा नहीं है कि गूगल को अपने प्ले स्टोर की बिलिंग पॉलिसी को लेकर सिर्फ़ भारत में ही विरोध का सामना करना पड़ रहा हो.
अमेरिका की बड़ी गेमिंग कंपनी एपिक गेम्स ने गूगल और एप्पल के ख़िलाफ़ इसी का मुक़दमा कर रखा है. एपिक गेम्स का कहना है कि गूगल और एप्पल इन ऐप परचेज़ के नाम पर बहुत अधिक वसूली कर रहे हैं.
भारत के मुक़ाबले, अमेरिका में गूगल और एप्पल ने एप्स को इन ऐप परचेज़ के मामले में कोई रियायत नहीं दी है.
असल में पेटीएम की तरह एपिक गेम्स के गेम फोर्टनाइट को गूगल और एप्पल ने अपने अपने प्ले स्टोर से हटा दिया था. इसकी वजह ये थी कि ये गेमिंग ऐप भारी मुनाफ़ा कमाने के बावजूद, यूज़र्स से हो रही कमाई गूगल और एप्पल से शेयर नहीं कर रहा था.
एपिक गेम्स अरबों डॉलर की गेमिंग कंपनी है. उसने भी एक मिनी ऐप स्टोर लॉन्च किया. लेकिन, गूगल और एप्पल के विशाल बाज़ार के मुक़ाबले एपिक गेम्स का मिनी ऐप स्टोर भी कहीं खड़ा नहीं होता.
एपिक गेम्स का कहना है कि गूगल और एप्पल मुनाफ़े में 30 प्रतिशत हिस्सेदारी मांगते हैं, जो बहुत ज़्यादा है. एपिक गेम्स अपने ऐप पर 12 प्रतिशत कमीशन देना चाहता है. जिसमें से पांच प्रतिशत तो उसके हिसाब से किसी भी प्ले स्टोर की लागत है. और बाक़ी का सात प्रतिशत मुनाफ़ा है.
अब एपिक गेम्स और गूगल-ऐप्पल की मोनोपोली की लड़ाई किस दिशा में जाती है, ये देखना दिलचस्प होगा.
वहीं, भारत में स्टार्ट अप ऐप्स की गूगल को दी गई चुनौती की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि गूगल कितने दिनों तक अपनी बिलिंग पॉलिसी को लागू करना टालता है.
Comments (1)
बहुत अच्छी और सामयिक जानकारी