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Pitru Paksha 2020: पितृपक्ष शुरू, जानिए श्राद्ध में पितरों को प्रसन्न करने की पूरी विधि

PujaPandit Desk

नई दिल्‍ली 03 Sep, 2020 01:46 pm

Pitru Paksha 2020: हिन्‍दू धर्म में पितृपक्ष का बहुत महत्व माना जाता है. पितृपक्ष में 16 दिनों तक पितरों का पिंडदान (Pind Daan) किया जाता है और ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है. मान्यता है कि इन दिनों पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं और श्रद्धा भाव से प्रसन्न होकर अपने परिजनों को आशीर्वाद देते हैं. हिन्‍दू पंचांग के अनुसार श्राद्ध (Shraddh) पक्ष हर वर्ष भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से आश्विन माह की सर्वपितृ अमावस्या यानी 16 दिनों तक  चलता है. इन 16 दिनों तक पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है. 

इस बार पितृपक्ष की शुरूआत 2 सितंबर से हो रही है. मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में पितर देव धरती पर किसी न किसी रूप में आते हैं इसलिए इन दिनों भूलकर भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए. शास्त्रों में कहा गया है कि पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का तर्पण ना करने वालों को पितृदोष लग सकता है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार श्राद्ध अगर पूरे विधि-विधान से न किया जाये तो उसका फल नहीं मिलता है और पूर्वजों की आत्मा भी तृप्त नहीं होती है.

पितृ पक्ष कब आता है? 
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार 16 दिनों का पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार आमतौर पर पितृ पक्ष अगस्‍त या सितंबर के महीने में पड़ता है. पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है, जबकि अंतिम श्राद्ध अमावस्‍या को होता है. इस बार पितृ पक्ष 2 सितंबर से 17 सितंबर तक है.

साल 2020 में श्राद्ध की तिथियां
02 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध , 03 सितंबर- प्रतिपदा, 04 सितंबर-  द्वितीया, 05 सितंबर- तृतीया, 06 सितंबर- चतुर्थी, 07 सितंबर- पंचमी, महा भरणी, 08 सितंबर- षष्ठी, 09 सितंबर- सप्तमी, 10 सितंबर- अष्टमी, 11 सितंबर- नवमी, 12 सितंबर- दशमी, 13 सितंबर- एकादशी, 14 सितंबर- द्वादशी, 15 सितंबर- त्रयोदशी, 16 सितंबर- चतुर्दशी, 17 सितंबर- सर्वपित्र अमावस्या.

श्राद्ध करने की विधि
श्राद्ध कर्म यानी पिंडदान और तर्पण किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा ही करवाना चाहिए. श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को दान करने के अलावा किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता करने से बहुत पुण्य मिलता है. इन दिनों गाय, कुत्ते, कौवे जैसे पशु-पक्षियों के लिये भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए.

श्राद्ध पितरों की मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए. कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आ जाती है कि जिनका श्राद्ध किया जाना है उनकी मृत्यु तिथि याद नहीं रहती है. ऐसे में आश्विन अमावस्या का दिन श्राद्ध कर्म के लिये श्रेष्ठ होता है क्योंकि इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है. 

जिस दिन आपको पितरों का श्राद्ध करना हो उस दिन तेल ना लगाएं, दूसरे का अन्न ना खाएं और स्त्री प्रसंग से परहेज करें.

श्राद्ध करवाने की जगह का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है. संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिये. हालांकि मौजूदा हालात में ये हर किसी के लिए संभव नहीं हैं. ऐसे में इसे घर पर भी किया जा सकता है. 

श्राद्ध कर्म करने वालों को उस दिन व्रत रखना चाहिये. 

श्राद्ध पूजा दोपहर के समय आरंभ करनी चाहिये. ब्राह्मण द्वारा बताया गए मंत्रो का उच्चारण करें, हवन-पूजा करें इसके बाद जल से तर्पण करें. जो भोग लगाया जा रहा है उसमें गाय, काले कुत्ते, कौवे का हिस्सा अलग से निकाल लें और मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करें. 

तिल, जौ, कुशा, तुलसी के पत्ते, मिठाई और अन्य पकवानों से ब्राह्मण देवता को भोजन करवाएं और भोजन कराने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करें.

पूरे विधि विधान से श्राद्ध पूजा करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है. श्राद्ध पक्ष में किये गए तर्पण से पितर प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.

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