न तत्र वीरा जायन्ते निरोगो न शतायुष:।
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवार्जितम्।।
भावार्थ: ''जहां श्राद्ध नहीं होता वहां न तो वीर पुरुष उत्पन्न होते हैं और न नीरोग होते हैं और न शतायु ही होते हैं. वे कल्याण की प्राप्ति भी नहीं करते हैं.
सनातन धर्म में पितर पक्ष (Pitru Paksha) का विशेष महत्व है. 16 दिनों तक चलने वाले पितर पक्ष में पितरों यानी मृत आत्मा की शांति के लिए तपर्ण और श्राद्ध किया जाता है. पितरों की आत्मा की शांति के लिए जो भी श्रद्धापूर्वक अर्पित किया जाए, उसे श्राद्ध (Shradh) कहते हैं. हिन्दू धर्म के अनुसार अनुसार मृत्यु के उपरान्त मनुष्य का स्थूल शरीर तो यहीं पड़ा रह जाता है, लेकिन सूक्ष्म शरीर अपने कार्यों के अनुसार फल भोगने के लिए परलोक में चला जाता है. इस सूक्ष्म शरीर की तृप्ति के लिए ही श्राद्ध की व्यवस्था है.
पितृ पक्ष कब आता है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार 16 दिनों का पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार आमतौर पर पितृ पक्ष अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ता है. पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है, जबकि अंतिम श्राद्ध अमावस्या को होता है. इस बार पितृ पक्ष 2 सितंबर से 17 सितंबर तक है.
साल 2020 में श्राद्ध की तिथियां
02 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध , 03 सितंबर- प्रतिपदा, 04 सितंबर- द्वितीया, 05 सितंबर- तृतीया, 06 सितंबर- चतुर्थी, 07 सितंबर- पंचमी, महा भरणी, 08 सितंबर- षष्ठी, 09 सितंबर- सप्तमी, 10 सितंबर- अष्टमी, 11 सितंबर- नवमी, 12 सितंबर- दशमी, 13 सितंबर- एकादशी, 14 सितंबर- द्वादशी, 15 सितंबर- त्रयोदशी, 16 सितंबर- चतुर्दशी, 17 सितंबर- सर्वपित्र अमावस्या.
श्राद्ध की पौराणिक कथा
श्राद्ध पक्ष को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. इन कथाओं का पाठ तर्पण करते हुए किया जाता है. इनमें सबसे ज्यादा कथा कर्ण की कही जाती है जो महाभारत काल से सुनी जा रही है. कथा के अनुसार, महाभारत में कर्ण की मृत्यु हो जाने के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग में पहुंची तो उन्हें बहुत सारा सोना और गहने दिए गए.
कर्ण की आत्मा को कुछ समझ नहीं आया, उन्हें भोजन की तलाश थी. उन्होंने देवता इंद्र से पूछा कि उन्हें भोजन की जगह सोना क्यों दिया गया. तब देवता इंद्र ने कर्ण को बताया कि उन्होने अपने जीवित रहते हुए पूरा जीवन सोना दान किया लेकिन अपने पूर्वजों को कभी भी खाना दान नहीं किया.
तब कर्ण ने इंद्र से कहा उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे और इसी वजह से वह कभी उन्हें कुछ दान नहीं कर सके. इसके बाद इंद्र ने कर्ण को उनकी गलती सुधारने का मौका दिया गया.
कर्ण को 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया, जहां उन्होंने अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनका श्राद्ध कर उन्हें आहार दान किया. कर्ण के इन्ही 16 दिन के तर्पण अवधि को पितृ पक्ष कहा गया है.
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