पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आज दिल्ली में अंतिम विदाई दी गई. राजधानी के लोदी रोड श्मशान घर में उनका अंतिम संस्कार किया गया. इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई दिग्गजों ने प्रणब मुखर्जी को श्रद्धांजलि की.
भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का कल शाम, दिल्ली के आर्मी हॉस्पिटल में निधन हो गया था.
राष्ट्रपति कोविन्द ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति, स्वर्गीय श्री प्रणब मुखर्जी के 10, राजाजी मार्ग, नई दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान पर जाकर श्रद्धा सुमन अर्पित किये। pic.twitter.com/g4ETP1D5xo
— President of India (@rashtrapatibhvn) September 1, 2020
क़रीब पचास साल लंबे अपने राजनीतिक करियर में प्रणब मुखर्जी ने कई रिकॉर्ड क़ायम किए. वो, देश के सिर्फ़ तीसरे ऐसे नेता थे, जिन्होंने सरकार की सबसे बड़ी कमेटी यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी में तीन मंत्रियों के रूप में जगह बनाई थी. वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री के तौर पर वो अलग अलग समय में CCS के सदस्य रहे थे.
यूपीए के कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी पार्टी और सरकार दोनों के सबसे बड़े ट्रबलशूटर थे. यूपीए के दस साल के कार्यकाल में प्रणब मुखर्जी सरकार के 95 ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स के या तो अगुवा थे या महत्वपूर्ण सदस्य थे.
अजॉय मुखर्जी की बांग्ला कांग्रेस से अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले प्रणब मुखर्जी बाद में कांग्रेस में आ गए और इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र बने. इंदिरा ने उन्हें अपनी सरकार में डिप्टी मिनिस्टर के तौर पर शामिल हुआ और इंदिरा के ही कार्यकाल में वो 1982 में पहली बार देश के वित्त मंत्री बने.
वित्त मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल को Exim Bank और NABARD की स्थापना के लिए याद किया जाता है. भारत के ग्रामीण क्षेत्र के विकास में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) आज अग्रणी बैंक कहा जाता है.
वहीं, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के माध्यम से प्रणब मुखर्जी ने बैंकिंग व्यवस्था को ग्रामीण लोगों तक पहुंचाने का दूरदर्शी काम किया.
वहीं, आयात और निर्यात को सुगम बनाने के लिए प्रणब मुखर्जी के वित्त मंत्री रहते हुए ही Exim Bank यानी Export Import बैंक की स्थापना की गई थी.
प्रणब मुखर्जी जितने शॉर्ट टेम्पर्ड थे, उनकी जानकारी का दायरा उतना ही व्यापक था. संवैधानिक जानकारी हो या भारत के प्राचीन ग्रंथों का ज्ञान, अपने दौर के नेताओं में वो दोनों ही मामलों में नंबर वन थे.
वाजपेयी सरकार के दौरान एक बार संसद में बहस में प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत के प्राचीन ग्रंथों में देवताओं के मदिरा पान करके नशे के शिकार होने का ज़िक्र है. जब, बीजेपी सांसदों ने प्रणब मुखर्जी के इस बयान का उल्लेख किया, तो उन्होंने एक ग्रंथ से संस्कृत श्लोक सुनाकर उन्हें चुप कर दिया था.
संवैधानिक मामलों की जानकारी होने के साथ-साथ प्रणब मुखर्जी, भारतीय संस्कृति के भी अध्येता रहे. भारत की संस्कृति में उनकी आस्था ही थी कि वो रोज़ सुबह क़रीब दो घंटे पूजा-पाठ किया करते थे. और दुर्गा पूजा के लिए नियमित रूप से अपने पुश्तैनी गांव मिराती जाया करते थे. जहां वो पारंपरिक कुर्ता धोती पहनकर बंगाली भद्रलोक का हिस्सा बन जाया करते थे.
प्रणब मुखर्जी के बारे में ये बात बहुत मशहूर है कि वो एक ऐसे सबसे बेहतरीन प्रधानमंत्री थे, जो भारत को नहीं मिल सका.
लेकिन, वो भारत की संवैधानिक व्यवस्था के शीर्ष पद यानी राष्ट्रपति पद तक पहुंचे.
प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि जब वो एक सांसद के तौर पर दिल्ली रहने आए थे, तो राष्ट्रपति भवन के पास सांसदों के लिए बने फ्लैट में रहा करते थे. एक दिन वहां खड़े होकर उन्होंने राष्ट्रपति भवन के अस्तबल के घोड़ों की क़िस्मत पर रश्क करते हुए ख़्वाहिश जताई थी कि अगले जनम में वो वही बनना चाहते हैं. तब, साथ खड़ी उनकी बहन अन्नपूर्णा देवी ने भविष्यवाणी की थी कि, ‘भाई, देखना एक दिन तुम उस राष्ट्रपति भवन में रहोगे.’ प्रणब मुखर्जी की ये भविष्यवाणी सच होने में चालीस बरस का समय लगा.
राष्ट्रपति के तौर पर, प्रणब मुखर्जी ने अपने संवैधानिक दायरे में रहते हुए कभी भी सरकार को सीख भरी चेतावनी देने में परहेज़ नहीं किया.
ताउम्र एक कांग्रेसी रहते हुए, प्रणब मुखर्जी ने जब 2018 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बुलावे पर उसके मुख्यालय नागपुर जाने का फ़ैसला किया, तो बहुत से कांग्रेसी नेताओं, यहां तक कि ख़ुद उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने इस पर ऐतराज़ जताया था. लेकिन, तमाम प्रतिवादों को दरकिनार करते हुए प्रणब मुखर्जी नागपुर में आरएसएस मुख्यालय गए और वहां पर पंडित जवाहरलाल नेहरू का ज़िक्र करते हुए राष्ट्रवाद की असली परिभाषा संघ को याद कराई.
दोस्ती दुश्मनी वाली इस सियासत के दौर में प्रणब मुखर्जी का कोई दुश्मन नहीं था. बस राजनीतिक विरोधी हुआ करते थे. इसीलिए, वामपंथी दल हों या समाजवादी नेता, या फिर बीजेपी जैसी दक्षिणपंथी पार्टी. सभी दलों में प्रणब मुखर्जी के दोस्त थे.
प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद से वंचित रखा. लेकिन, उन्हें देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद से नवाज़ा. तो, प्रणब मुखर्जी की वैचारिक विरोधी बीजेपी ने उन्हें भारत रत्न दिया.
दो धुर वैचारिक विरोधियों का प्रणब को सम्मान देना ये दिखाता है कि प्रणब किसी एक राजनीतिक खांचे का हिस्सा नहीं थे. वो वास्तव में भारत रत्न थे.
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