शिक्षाविद् प्रोफेसर (डॉ.) सत्या जांगिड के जन्मदिन पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए संभव इंटरनेशनल फाउंडेशन की सह संस्थापिका साध्वी प्रज्ञा भारती ने कहा कि डॉ. सत्या जांगिड एक लोकप्रिय शिक्षिका, मेधावी अर्थशास्त्री, कुशल लेखिका, सहज अनुवाद में दक्ष, जानी मानी प्रसारिका, स्त्री को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए कृत संकल्प, कल्पनाशील सम्पादिका, नए-नए विषयों में शोध करने के लिए सदैव तैयार रहने वाली और समाज के कमजोर वर्गों की पीड़ित स्त्रियों की समस्याओं का निराकरण करने तथा उन्हें स्वावलंबी बनने के लिए प्रयत्नशील रहने वाली निर्भीक एवं सिद्धांतों के लिए समर्पित महिला थीं.
मीडिया के लिए जारी संदेश में साध्वी प्रज्ञा ने लिखा, 'आज 10 अगस्त है. मेरी नानी स्वर्गीय प्रोफेसर (डॉ.) सत्या जांगिड जीवित होती तो आज हम उनका 83वां जन्मोत्सव मनाते. वह 82 वर्ष की हो जातीं. मगर विधाता ने उन्हें हमसे 26 अगस्त 2016 को छीन लिया. वह निराली और अद्भुत महिला थी. उन्होंने कभी किसी से कुछ नहीं लिया, केवल दिया ही दिया. वह लोकप्रिय शिक्षिका, मेधावी अर्थशास्त्री, कुशल लेखिका, नए-नए विषयों में शोध करने के लिए सदैव तैयार रहने वाली और समाज के कमजोर वर्गों की पीड़ित स्त्रियों की समस्याओं का निराकरण करने तथा उन्हें स्वावलंबी बनने के लिए प्रयत्नशील रहने वाली निर्भीक एवं सिद्धांतों के लिए समर्पित महिला थीं. वह बनाव श्रृंगार, दिखावे और विलासिता के प्रतीकों से दूर रहती थीं.
वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोराबाज़ार, गाज़ीपुर में जन्मी. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एमए (अर्थशास्त्र) करते ही अपने विश्वविद्यालय के ही महिला कालेज में 11 नवम्बर 1964 को प्राध्यापिका बन गयी. 10 मार्च 1966 को दिल्ली में पत्रकार डॉ. रामजीलाल जांगिड से विवाह के बाद वह दिल्ली विश्वविद्यालय के माडर्न कॉलेज फॉर वीमेन, डिफेंस कॉलोनी, नई दिल्ली (वर्तमान कमला नेहरु कॉलेज) में 1 अगस्त 1966 से प्राध्यापिका चुन ली गईं. 1967 में उन्हें पीएचडी की उपाधि मिली. 25 जुलाई 1968 से वह दिल्ली विश्वविद्यालय के दूसरे कॉलेज (कालिन्दी महिला कालेज, पूर्वी पटेल नगर, नई दिल्ली) में पढ़ाने लगीं. 21 नवम्बर 1972 को वह कालिन्दी कॉलेज की संचालन समिति (Governing Body) में शिक्षिकाओं की प्रतिनिधि नियुक्त की गईं. 29 मार्च 1990 को उन्हें कालिन्दी कॉलेज की कार्यवाहक प्राचार्या बनने का प्रस्ताव दिया गया. गोराबाज़ार, गाज़ीपुर की छात्रा से दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिन्दी कॉलेज की प्राचार्या तक की यात्रा बड़ी निरापद थी.
उन्होंने 1970 में अमृत कौर पुरी और देवनगर के ब्लॉक नं. 6 (करौल बाग, नई दिल्ली 110005) में रहने वाले अनुसूचित जातियों के परिवारों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थितियां जानने के लिए अपने ढ़ंग का पहला सर्वेक्षण किया जिससे पीड़ित स्त्रियों की राष्ट्रीय सेवा योजना के अंतर्गत मदद की जा सके.
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