रघुवंश प्रसाद सिंह (Dr. Raghuvansh Prasad Singh, 1946-2020) का जाना सियासत की स्याह राह में जगमगाते एक दीपक के बूझ जाने की तरह है. आनेवाली पीढ़ी शायद यकीन नहीं करगी कि जब बिहार में भ्रष्टाचार की गंगा बह रही थी. जिस पार्टी पर भ्रष्टाचार के कई दाग लगे थे उस पार्टी में रघुवंश प्रसाद सिंह जैसा ईमानदार नेता भी हुआ करता था. बिहार की राजनीति में लंबे समय तक सक्रिय रहने के बाद भी पूरा जीवन उनका बेदाग निकल गया, न कोई आक्षेप, न आरोप. उन्होंने जैसे राजनीति की शुरुआत की वैसे ही इस दुनिया को छोड़कर चले गए... कबीर के शब्दों में जस की तस धर दीनी चदरिया.
आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसी सादगी और इमानदारी बीते दिनों की बात ही लगती है. विश्व को गणतंत्र का पाठ पढ़ाने वाली धरती वैशाली से डॉ़ रघुवंश प्रसाद सिंह लगातार पांच बार सांसद निर्वाचित हुए. वे 1996 में जनता दल तथा 1998, 1999, 2004 एवं 2009 में राजद के टिकट पर चुनाव जीते. 2014 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के प्रत्याशी लोजपा नेता रामा किशोर सिंह ने उन्हें शिकस्त दी.बाद में 2019 के चुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के उन चुनिंदा नेताओं में से हैं जिन्होंने पार्टी को बुलंदियों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई.
एच डी देवगौड़ा की सरकार में उन्हें बिहार कोटे से राज्य मंत्री बनाया गया था. इसके बाद इंद्र कुमार गुजराल के सरकार में भी रघुवंश प्रसाद सिंह को खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. 1996 से रघुवंश प्रसाद ने केंद्र की राजनीति शुरू की और उन्हें असली पहचान मिली 1999 से 2004 के बीच जब उन्होंने अटल बिहारी सरकार की जमकर आलोचना की थी. लोकसभा में एक बार भाषाण देते हुए उन्होंने बीजेपी पर "आया राम गया राम और बीच-बीच में जय श्रीराम " वाला काम करने का आरोप लगाया था. उनका यह नाारा काफी चर्चाओं में रहा था. उस समय वो राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष हुआ करते थे. मनमोहन सिंह की सरकार में रघुवंश प्रसाद सिंह को ग्रामीण विकास मंत्रालय का अहम जिम्मा सौंपा गया. ग्रामीण विकास मंत्री रहते हुए रघुवंश प्रसाद सिंह ने मनरेगा कानून को बनवाने और पास करवाने में अहम भूमिका निभाई.
इतिहास में जब-जब विचारधारा के प्रति समर्पण की चर्चा होगी तो रघुवंश प्रसाद सिंह को याद किया जाएगा. लोहिया और कर्पूरी के विचारों पर चलकर राजनीति की शुरुआत करने वाले रघुवंश बाबू ने सामाजिक न्याय के आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए कभी जात और जमात की परवाह नहीं की. 80 के दशक से ही लालू प्रसाद के हर फैसले में उनका साथ देने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह अपनी इमानदारी और बेबाक बयानबाजी के लिए हमेशा चर्चा में रहे. हालांकि वर्तमान में पार्टी के नेतृत्व से रघुवंश प्रसाद सिंह लगातार नाराज चल रहे थे. कुछ ही दिन पहले कथित तौर पर एक पत्र मीडिया में वायरल हुआ था जिसमें उन्होंने राजद छोड़ने की घोषणा कर दी थी. हालांकि लालू प्रसाद ने उनके पत्र के जवाब में लिखा था कि आप कहीं नहीं जा रहे हैं.
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