सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के कारण, बिहार में विधानसभा चुनाव को नहीं टाला जा सकता. सर्वोच्च अदालत ने इस बारे में दायर एक याचिका को ख़ारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘कोविड-19 को बहाना बनाकर बिहार में चुनाव को स्थगित नहीं किया जा सकता. हमें भरोसा है कि हालात को देखते हुए चुनाव आयोग सभी ज़रूरी क़दम उठाएगा.’
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई थी कि अदालत, चुनाव आयोग को आदेश दे कि वो बिहारा में चुनाव की अधिसूचना तब तक न जारी करे, जब तक सक्षम अधिकारी बिहार को कोरोना वायरस और बाढ़ से मुक्त न घोषित कर दें. अर्ज़ी लगाने वाले ने सुप्रीम कोर्ट से ये गुज़ारिश भी की थी कि वो बिहार सरकार को ये आदेश दे कि वो राज्य के बाशिंदों के लिए ज़रूरी सुविधाओं का इंतज़ाम करने पर ध्यान दे, न कि राज्य के चुनाव पर.
बिहार चुनाव को टालने कि मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने
— The Last Breaking (@thelastbreaking) August 28, 2020
की खारिज कर दी है और कहा है कि इसके लिए आप चुनाव आयोग के पास जाए. #biharelection2020 #BiharAssemblyElections #BiharAssemblyElections2020 #BiharChunav #बिहार_चुनाव pic.twitter.com/L2DSN3hfMd
बिहार में मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल, 29 नवंबर को ख़त्म होगा. उससे पहले राज्य में चुनाव कराने ज़रूरी होंगे. माना जा रहा है कि चुनाव आयोग अगले महीने राज्य में चुनाव की अधिसूचना जारी कर सकता है. राज्य में अक्टूबर नवंबर में कई चरणों में चुनाव कराए जा सकते हैं.
हालांकि, राज्य में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप और भयंकर बाढ़ के चलते अब तक चुनाव आयोग राज्य में मतदान की तारीख़ों को लेकर फ़ैसला नहीं कर पाया है.
वहीं, राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए हैं. मुख्य मुक़ाबला जेडीयू-बीजेपी के जनतांत्रिक गठबंधन और आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच है. हाल के दिनों में कई राजनेताओं का एक ख़ेमे से दूसरे ख़ेमे में जाने का सिलसिला तेज़ हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने महागठबंधन का दामन छोड़ कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हाथ थाम लिया है. तो, जेडी सरकार के मंत्री श्याम रजक, लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में चले गए हैं.
कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते इस बार चुनाव प्रचार के वर्चुअल दुनिया में अधिक तेज़ होने की संभावना है. ये भारत की चुनावी राजनीति में डिजिटल युग की शुरुआत होगी. क्योंकि, कोरोना वायरस के चलते नेता और जनता दोनों ही चुनाव प्रचार में भीड़ जुटने से परहेज़ करेंगे. चुनाव आयोग द्वारा भी इस बारे में सख़्त गाइडलाइन जारी करने की संभावना है. जिसमें घर-घर चुनाव के लिए पांच से ज़्यादा लोगों के साथ जाने प्रतिबंध लगाए जाने की आशंका जताई जा रही है. इसी तरह रोड शो पर भी बंदिशें होंगी, जैसे कि रोड शो में पांच या छह से ज़्यादा गाड़ियां न हों.
ऐसे में सभी दलों का ज़ोर वर्चुअल दुनिया में प्रचार पर अधिक होगा. यानी व्हाट्सऐप और फ़ेसबुक जैसे सोशल मीडिया के क्षेत्र में.
और राज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी तो डिजिटल इलेक्शन में बाक़ी पार्टियों से बहुत आगे है. पार्टी के पास आईटी सेल के तौर पर डिजिटल कार्यकर्ताओं की भारी-भरकम फ़ौज है. तो व्हाट्सऐप पर बीजेपी के क़रीब 72 हज़ार ग्रुप बताए जाते हैं.
बीजेपी की इस डिजिटल बढ़त के ख़िलाफ़ ही जून में नौ पार्टियों ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी. इन दलों ने चुनाव आयोग से कहा था कि वो बीजेपी को डिजिटल चुनाव प्रचार करने से रोके, क्योंकि इस वजह से सभी दलों को बराबरी से चुनाव प्रचार का मौक़ा नहीं मिल पाएगा.
बीजेपी ने तो चुनाव के रन अप में कई वर्चुअल रैलियां कर भी डाली हैं. मीडिया में ऐसी भी ख़बरें हैं कि बीजेपी चुनाव प्रचार के लिए एक विशेष ऐप भी लॉन्च करने वाली है. जो कम डिजिटिल संसाधन वाले बिहार जैसे राज्य में उसे लोगों से जोड़ने में मदद करेगा. बिहार के कुल मोबाइल उपभोक्ताओं में से केवल एक तिहाई के पास इंटरनेट की सुविधा है. और उनमें से भी आधे लोग ही फ़ेसबुक जैसे सोशल माध्यम पर सक्रिय हैं.
इन माध्यमों से चुनाव की औपचारिक घोषणा के बाद शुरू होने वाले प्रचार से पहले ही पार्टियां, मतदाताओं को रिझाने का काम शुरू कर देती हैं.
लेकिन, बिहार में सोशल मीडिया पर प्रचार की अपनी सीमाएं हैं. क्योंकि डिजिटल क्षेत्र में बिहार काफ़ी पिछड़ा हुआ राज्य है.
ऐसे में अगर हम ये कहें कि बिहार में इस बार के विधानसभा चुनाव पारंपरिक राजनीति और डिजिटल पॉलिटिक्स के बीच का संघर्ष होंगे, तो ग़लत नहीं होगा.
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