सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में मार्च-अंत और अप्रैल में होने वाले चुनावों से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया. चीफ जस्टिस एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा, "2018 में शुरू की गई योजना और 2018, 2019 और 2020 में बिना किसी बाधा के रिलीज होने के प्रकाश में, हम इस चरण में इस पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं देखते हैं."
एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा याचिका दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया है कि एक गंभीर आशंका है कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड की किसी भी तरह की बिक्री, शेल कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक दलों के अवैध धन को और बढ़ाएगी. एनजीओ की ओर से प्रशांत भूषण वकील थे.
एडीआर ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया था कि वह केंद्र सरकार को एडीआर की रिट याचिका की पेंडेंसी के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम, 2018 के तहत आगे इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री न करने दे.
याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने मार्च 2019 में और नवंबर 2019 में भी एक हस्तक्षेप आवेदन दायर किया. पिछले साल अक्टूबर में संगठन ने आगामी बिहार चुनावों के मद्देनजर जल्द सुनवाई के लिए एक आवेदन दायर किया था.
याचिका में दलील दी गई है कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम ने राजनीतिक दलों के लिए असीमित कॉर्पोरेट चंदा और भारतीय के साथ-साथ विदेशी कंपनियों द्वारा बेनामी धनराशि मिलने का रास्ता खोल दिया है, जिसका भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
केंद्र सरकार ने देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा की थी. इलेक्टोरल बॉन्ड यानी ऐसा बॉन्ड जिसके ऊपर एक करंसी नोट की तरह उसकी वैल्यू या मूल्य लिखा होता है. इस बॉन्ड का इस्तेमाल व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठनों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जा सकता है. इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों के नाम गोपनीय रखे जाते हैं. इन बांड्स पर बैंक कोई ब्याज नहीं देता है.
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